कारसेवक श्रंखला- 13
यह वो दौर था जब, मुलायम सरकार थी। उसने दम्भ पूर्वक घोषणा की थी कि, ”अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार पाएगा।” हम जब नई दिल्ली रेल्वे स्टेशन पहुंचे तब सोहन सिंह जी मिले, उन्होंने कहा कि नारायण , ”देखो तुम्हारे साथ क्षेत्र के भोले भाले वनवासी हैं, तुम्हें उनका पूरा ध्यान रखना है, यह सुनिश्चित करना है कि यह सभी सुरक्षित अपने घरों को लौटे। तुम्हें एक कार्य करना होगा पूरे रास्ते चैकिंग और पूछताछ होगी। यदि पुलिस वालों को संतोषजनक उत्तर नहीं मिला तो तुम्हें गिरफ्तार कर लेंगे। तुम्हें इस बात का ध्यान रखना है, जहां कहीं पर भी एक भी वनवासी बन्धु को गिरफ्तार कर लिया जाए तब आगे नहीं बढ़ना है, वहीं गिरफ्तारी दे देनी है।”
याद है मुझे वो दिन जब 1990 में मुझे जिला कार सेवा संयोजक की जिम्मेदारी मिली थी। मैं साढ़े चार सौ से अधिक कारसेवक साथियों जिनमें वनवासी बंधु भी शामिल थे, उनके साथ अयोध्या के लिए रवाना हुआ था। नए दायित्व के साथ अयोध्या पहुंचने की एक बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई थी मुझे। इसीलिए सोहन सिंह जी ने मुझे बहुत ही गंभीरता के साथ समझाते हुए कहा था, उनकी इस सीख के साथ हम दिल्ली से आगे की ओर बढ़ चले। तभी मैंने देखा कि अलीगढ़ के समीप आते ही पुलिस की पूछताछ तेज हो गई। कुछ कारसेवक संतोषप्रद उतर नहीं दे पाए और वे गिरफ्तार कर लिए गए। इसके बाद हम सभी को गिरफ्तारी देनी ही थी।
इसके बाद सभी कारसेवकों ने जमकर नारे लगाना शुरू कर दिए ” राम लला हम आएंगे….।” यहां से हमें अलीगढ़ जेल भेजा गया। जेल में नौ दिन तक एक कैदी के रूप में रहे। पहले दो दिनों तक हमें काली दाल और मोटी रोटियां ही खाने को मिली। लेकिन ये राम की ही कृपा थी जब वहां भी हमें रामभक्त मिल गए, जिन्होंने अच्छे भोजन की व्यवस्था कर दी थी। जेल से छूटने के बाद हम सभी बांसवाड़ा पहुंचे। मुझे 1992 में हुई कारसेवा में जाने का भी अवसर मिला। उस समय मैं राजसमंद में वकालत कर रहा था। यहां से लगभग 30 कारसेवकों का एक जत्था 2 दिसंबर 1992 को रवाना होकर 4 दिसंबर को अयोध्या पहुंचा था। उस समय हमारे जत्थे का नेतृत्व कांकरोली के दिनेश जी पालीवाल कर रहे थे। 6 दिसंबर की सुबह रामलला के स्थान के पास वाले मैदान पर चल रही सभा में भीड़ जुटने लगी थी। सभा में स्व. अशोक सिंघल, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, साध्वी ऋतम्भरा,साध्वी उमा भारती,आचार्य धर्मेंद्र आदि मंच पर थे। सुबह लगभग साढ़े दस बजे का समय था जब, आडवाणी जी भाषण कर रहे थे। तभी अचानक से हौ हल्ला मच गया। चारों तरफ भगदड़ मची हुई थी। आडवाणी जी मंच से भीड़ को अनियंत्रित होने से रोक रहे थे लेकिन भीड़ बेकाबू थी, किसी ने उनकी नहीं सुनी।
मंच पर साध्वी ऋतम्भरा और उमाभारती ने भी मोर्चा सम्हाला। मैं इस दिन और इस क्षण को कभी नहीं भूल सकता। शायद उसी की परिणिति हैं, जो आज अयोध्या में भव्य राम मंदिर बन पाया है।
वो अद्भुत दृश्य था जिसका मैं साक्षी हूं। मैंने देखा कि,कारसेवकों के हाथों में मूर्तियां थी जिसे वे बाहर लेकर आ रहे थे। जिसे अस्थाई चबूतरे पर विराजित किया गया। आज प्रभु श्री राम अपने भव्य मंदिर में विराजमान हो गए हैं। जीवन में इससे सुखद क्षण मेरे लिए क्या हो सकता है।