यह सेना की बहुत बड़ी सफलता है कि उसने पुलवामा हमले के मास्टरमाइंड अब्दुल रशीद गाज़ी को आखिरकार मार गिराया, हालांकि इस ऑपरेशन में एक मेजर सहित हमारे चार जांबाज़ सिपाही वीरगति को प्राप्त हुए. देश इस समय बेहद कठिन दौर से गुज़र रहा है क्योंकि हमारे सैनिकों की शहादत का सिलसिला लगातार जारी है. अभी भारत अपने 40 वीर सपूतों को धधकते दिल और नम आँखों से अंतिम विदाई दे भी नहीं पाया था, सेना अभी अपने इन वीरों के बलिदान को ठीक से नमन भी नहीं कर पाई थी, राष्ट्र अपने भीतर के घुटन भरे आक्रोश से उबर भी नहीं पाया था, कि 18 फरवरी की सुबह फिर हमारे पांच जवानों की शहादत की एक और मनहूस खबर आई.
पुलवामा की इस हृदयविदारक घटना में सबसे अधिक पीड़ादायक बात यह है कि वो 40 सीआरपीएफ के जवान किसी युद्ध के लिए नहीं गए थे. वे तो छुट्टियों के बाद अपनी अपनी डयूटी पर लौट रहे थे. “जिहाद” की खातिर एक आत्मघाती हमलावर ने सेना के काफिले पर इस फियादीन हमले को अंजाम दिया. हैवानियत की पराकाष्ठा देखिए कि पाक पोषित आतंकवादी संगठन जैश ए मोहम्मद न सिर्फ हमले की जिम्मेदारी लेता है, बल्कि उस सुसाइड बॉम्बर का हमले के लिए जाने से पहले का एक वीडियो भी रिलीज़ करता है. इंसानियत का इससे घिनौना चेहरा क्या हो सकता है. इससे किसे क्या हासिल हुआ कहना मुश्किल है. लेकिन इस घटना ने इतना तो साबित कर ही दिया कि बिना स्थानीय मदद के ऐसी किसी वारदात को अंजाम देना संभव नहीं था. कहने की आवश्यकता नहीं कि इस वीभत्सता में कश्मीरियत जम्हूरियत और इंसानियत ने कब का दम तोड़ दिया है. वो घाटी जो जन्नत हुआ करती थी, आज केसर से नहीं लहू से लाल है. वो कश्मीर जो अपनी सूफी संस्कृति के लिए जाना जाता था, आज आतंक का पर्याय बन चुका है.
घाटी में आतंक का ये सिलसिला जो 1987 से शुरू हुआ था वो अब निर्णायक दौर में है. देश के प्रधानमंत्री ने कहा है कि जवानों के खून की एक एक बूंद और हर आंख से गिरने वाले एक एक आँसू का ऐसा बदला लिया जाएगा कि विश्व इस नए भारत को महसूस करेगा.
इस समय जो देश का माहौल बना हुआ है, वो शायद इससे पहले कभी देखने को नहीं मिला. आज देश की हर आंख नम है, हर दिल शहीदों के परिवार के दर्द को समझ रहा है, हर शीश उस माता पिता के आगे नतमस्तक है, जिसने अपना जिगर का टुकड़ा भारत माँ के चरणों में समर्पित किया. हर हृदय कृतज्ञ है उस वीरांगना का, जिसने अपनी मांग का सिंदूर देश को सौंप दिया और हर भारत वासी ऋणी है उस बालक का जो पिता के कंधों पर बैठने की उम्र में अपने पिता को कंधा दे रहा है.
ये वाकई में एक नया भारत है, जिसमें आज हर दिल में देशभक्ति की ज्वाला धधक रही है. यह एक अघोषित युद्ध का वो दौर है, जिसमें हर व्यक्ति देश हित में अपना योगदान देने के लिए बेचैन है. कोई शहीदों के बच्चों की पढ़ाई की जिम्मेदारी ले रहा है तो कोईअपनी एक महीने की तनख्वाह दे रहा है. स्थिति यह है कि “भारत के वीर” में मात्र दो दिन में 6 करोड़ से ज्यादा की राशि जमा हो गई. आज देश की मनःस्थिति का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि देश का बच्चा बच्चा और महिलाएं तक कह रही हैं कि हमें सीमा पर जाने दो हम पाकिस्तान से बदला लेने को बेताब हैं. पूरा देश अब पाकिस्तान से बातचीत नहीं बदला चाहता है.
यह नए भारत की ताकत ही है कि कश्मीर के अलगाववादी नेताओं को मिलने वाली सुरक्षा और सुविधाओं के छीने जाने पर फारूख अब्दुल्लाह और महबूबा मुफ्ती जैसे घाटी के नेता शांत हैं. और नए भारत की यह ताकत सिर्फ देश में ही नहीं दुनिया में भी दिखाई दी. जब आतंकवाद की इस घटना पर विश्व के 48 देशों ने भारत को समर्थन दिया. अमेरिका से लेकर रूस ने कहा कि भारत को आत्मरक्षा का अधिकार है और वे भारत के साथ हैं.
और यह नए भारत की शक्ति ही है कि आज पाकिस्तान बैकफुट पर है. आज वो अपने परमाणु हथियार सम्पन्न होने के दम पर युद्ध की धमकी नहीं दे रहा, बल्कि इस हमले में अपना हाथ न होने की सफाई दे रहा है. यह नए भारत का दम है कि यह हरकत उस पर उल्टी पड़ गई. दरअसल अमरीका की ट्रम्प सरकार द्वारा अफगानिस्तान से अपनी फौज वापस बुलाने के फैसले से आतंकी संगठनों और पाक दोनों के हौसले फिर से बुलंद होने लगे थे. इस समय को उन्होंने इस क्षेत्र में अपनी ताकत दिखाने के मौके के रूप में देखा. क्योंकि सेना की मुस्तैदी और ऑपरेशन ऑल आउट के चलते वे काफी समय से देश या घाटी में कोई वारदात नहीं कर पा रहे थे, जिससे उन्हें अपने अस्तित्व पर ही खतरा दिखने लगा था और वो जबरदस्त दबाव में थे. उन्होंने सोचा था कि भारत में चुनाव से पहले “कुछ बड़ा” करके वो भारत पर दबाव बनाने में कामयाब हो जाएंगे जबकि हुआ उल्टा. क्योंकि आज आर्थिक रूप से जर्जर पाकिस्तान सामाजिक रूप से भी पूरी दुनिया में अलग थलग पड़ चुका है. वो पाक अपनी नापाक हरकतों से विश्व में आर्थिक सामाजिक कूटनीतिक और राजनैतिक मोर्चे पर बेहद बुरे दौर से गुज़र रहा है. अपने दुश्मन की इस आधी पराजय को अपनी सम्पूर्ण विजय में बदलने का इससे श्रेष्ठ समय हो नहीं सकता, जब देश के हर बच्चे में सैनिक, हर युवा में एक योध्दा और हर नारी में दुर्गा का रूप उतर आया हो.
डॉ. नीलम महेंद्र