जो लोग रमजान के चलते चुनावों की तारीख बदलने की वकालत कर रहे हैं उन्हें यह भी पता होगा कि पिछले साल रमजान के दिनों में ही सुरक्षाबलों पर पत्थरबाजी की जा रही थी। रमजान के दिनों में पत्थरबाजी तो हो सकती है लेकिन चुनाव नहीं ये क्या बात हुई भला..
हिन्दुओं की आबादी उतनी तेजी से नहीं बढ़ी जितनी तेजी से मुसलामानों की आबादी बढ़ती चली गई. मगर अभी एक मांग उठनी शुरू हुई है जिसको सुनने के बाद किसी को भी यह एहसास होने में देर नहीं लगेगी कि इस देश में अगर मुसलमानों की आबादी बहुसंख्यक तक पहुंच जाय तो वो लोग इस्लामिक क़ानून लागू करने की मांग शुरू कर देंगे. लोकतंत्र के सबसे बड़े महापर्व – लोकसभा चुनाव – की तिथियां काफी सोच विचार के बाद घोषित हो गयी. किसी को कोई दिक्कत नहीं हुई मगर इस देश के 20 करोड़ मुसलमानों की दुहाई देते हुए कुछ नामी – गिरामी मुसलमान परेशान है. तर्क है कि रमज़ान में मुसलमान अपने मताधिकार का प्रयोग करने घर से नहीं निकल पायेगा. रमजान में वो रोज़े से रहेगा और प्रचंड गर्मी में वह घर से कम निकलेगा इसलिए उसका वोट कम पड़ेगा. आरोप लगाने से भी कुछ लोग नहीं चूके हैं , उनका आरोप है कि यह जानबूझ कर कराया गया है.
कुछ मौलानाओं की तरफ से बयान जारी होने के बाद इस मांग को आम आदमी पार्टी एवं तृणमूल कांग्रेस ने भी उठाया . चुनाव आयोग ने इस मांग को खारिज कर दिया. गत वर्ष रमजान के महीने को देखते हुए जम्मू – एवं कश्मीर में सैन्य कार्रवाई पर रोक लगा दी गयी थी. गृह मंत्रालय की तरफ से जारी हुए आदेश में कहा गया था कि केंद्र सरकार ने यह फैसला शांति में विश्वास रखने वाले मुसलमानों के लिए किया गया है. इस्लाम में हिंसा और आतंक को अलग करना जरूरी है. जब तक मासूम जनता पर कोई हमला न हो तब तक कोई गोली ना चलाई जाए. गृह मंत्रालय की इस शान्ति पूर्ण पहल के बावजूद कश्मीर में जमकर पत्थरबाजी हुई. अब सवाल यह उठता है कि रमजान के महीने में पत्थरबाजी हो सकती है तो चुनाव क्यों नहीं हो सकता!
ईदगाह के ईमाम खालिद रशीद फरंगी महल ने चुनाव की तिथियों पर आपत्ति जाहिर की थी. उनके मुताबिक “ 6 मई , 12 मई और 19 मई को होने वाले चुनाव में मुसलामानों को परेशानी का सामना करना पड़ेगा इसलिए चुनाव आयोग को इन तारीखों को बदलने पर विचार करना चाहिए.”
समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ता सरताज़ आलम ने अपनी फेसबुक वॉल पर थोड़ा एक कदम और आगे बढ़ते हुए आरोप लगाया है कि रमज़ान के महीने में चुनाव कराया जा रहा है. तो क्या यह मान लिया जाय कि चुनाव आयोग से भूल हो गई है या जानबूझ कर ऐसा किया जा रहा है ताकि मुसलमान घरों से कम निकले और मुसलमानों का वोट कम पड़े.
भारतीय जनता पार्टी के विधान परिषद् सदस्य बुक्कल नबाब ने पांचजन्य से कहा कि इसके पहले भी ऐसा हुआ है कि रमजान के दौरान चुनाव हुए हैं. जबरदस्ती के लिए इस तरह की बात उठाई जा रही है. बारिश होती है तो लोग छाता लगा कर वोट देने जाते हैं . बहुत ठंडक पड़ती है तब कुछ लोग इस तरह की बात करते हैं कि ठण्ड बहुत ज्यादा है लोग अपने घरों से निकलना नहीं चाहेंगे. कई बार ऐसा देखा गया कि कड़ाके की ठण्ड के बावजूद लोगों ने लाइन लगा आकर वोट दिया. सभी लोगों को अपने देश से मोहब्बत है और चुनाव की तारीख में रमजान का हवाला देना बिल्कुल गलत बात है.
चुनाव आयोग ने इस मांग को पूरी तरह से खारिज कर दिया. चुनाव आयोग ने कहा कि ईद की तारीख का ध्यान रखा गया है. जहां तक बात रमजान की है तो रमजान पूरे एक माह का होता है और दैनिक कार्यो को प्रभावित नहीं करता है. 2 जून के पहले चुनाव कराना जरूरी है इसलिए चुनाव को और अधिक नहीं टाला जा सकता है.
लेखक
सुनील राय
साभार पात्र्चजन्य