कुमार नारद
चाहे कितने ही असुर, राक्षस और दुष्ट प्रवृति के लोग राम काज में अड़ंगा लगाएं, भारत के इतिहास पुरुष मर्यादा पुरुषोत्तम का स्थान अयोध्या में पूरी भव्यता के साथ बनेगा।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का विरोध कोई आज की बात नहीं है। त्रेता काल से रामद्रोह की परंपरा चली आ रही है। इसलिए इस घोर कलिकाल में आम आदमी पार्टी के संजय सिंह, समाजवादी के अखिलेश यादव और कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी के राम काज पर सवाल उठाना, उसे बदनाम करने का प्रयास करना कोई नई घटना नहीं है। लेकिन जैसे रामद्रोहियों को हर काल में मुंह की खानी पड़ी है, इस बार भी कलयुगी रामद्रोहियों को दंड मिलेगा।
वैसे भी इन तीनों ही पार्टियों का इतिहास रामविरोधी मानसिकता का रहा है। कांग्रेस तो भगवान राम के अस्तित्व तक को नकारती रही है। मूलरूप से ईसाई समुदाय से संबंध रखने वाली कांग्रेस अध्यक्षा के नेतृत्व वाली तत्कालीन यूपीए सरकार से सनातन महापुरुष श्रीराम के बारे में और अपेक्षा भी क्या की जा सकती थी। यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दायर एक किए गए शपथ पत्र में कहा था कि ‘एडम्स ब्रिज’ को लेकर ऐसे कोई प्रमाण कभी नहीं मिले जिससे एएसआई को इसका सर्वेक्षण करने की ज़रुरत महसूस हुई हो। एएसआई ने अपने एएसआई ने अपने जवाब में कहा है कि रामायण एक मिथकीय कथा है जिसका आधार वाल्मिकी रामायण और रामचरित मानस है. ऐसा कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है जिससे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रुप से इस कथा के प्रामाणिक होने और इस कथा के पात्रों के होने का प्रमाण मिलता हो। लेकिन इसका परिणाम क्या निकला। भारतीय समाज के जबरदस्त दबाव में सरकार को अपना हलफनामा वापस लेना पड़ा। लेकिन इससे कांग्रेस की मंशा उजागर हो गई। कितनी दिलचस्प बात है कि आज उसी कांग्रेस अध्यक्षा के दो होनहार पुत्र-पुत्री रामजी का भक्त बनने का सियासी ड्रामा रच रहे हैं। लेकिन हिंदुस्तान की आम जनता जानती है कि जब भगवान राम के मंदिर का निर्णय सुप्रीम कोर्ट में लंबित था तो वे कौन लोग थे, जो चाहते थे कि सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले को टाल दें। वे कौन लोग थे जो नहीं चाहते थे कि अयोध्या में रामजी का स्थान बनें। फिर उनके होनहार पुत्र-पुत्रियों के होनहार बयानों से क्या अंदाजा लगाएं। यह कितने दुर्भाग्य की बात है कि जिनके घर में न रामजी को माना जाता है, न पूजा जाता है, न जिनके घर में रामायण हैं और न ही रामचरितमानस, वे रामजी के काज में लगे लोगों की भावनाओं पर सवाल उठाते हैं।
दूसरे महापुरुष हैं समाजवाद के नाम पर अपने ही परिजनों को सांसद, विधायक, मुख्यमंत्री, चेयरमैन बनाकर सत्ता हासिल करने वाले तथाकथित कुछ समाजवादी लोग। उनका इतिहास कारसेवकों से बेहतर कौन जानता है। राम मंदिर आंदोलन में उसने कसम खाई थी कि मैं किसी भी कारसेवक को बाबरी ढांचे के करीब नहीं पहुंचने दूंगा। उस व्यक्ति ने हनुमानगढ़ी जा रहे निर्दोष कारसेवकों पर गोली चलवाकर मुस्लिम समाज में वाहवाही लूटने की कोशिश की। समाजवाद की उसी बेल के बडबोले होनहार सपूत भी उसी राह पर हैं। तथाकथित समाजवाद के नाम पर कई दशकों से सत्ता की मलाई काट रहे इन लोगों का अचानक रामजी के प्रेम उमड़ना लोगों को हैरान नहीं करता। इसकी वजह है उत्तरप्रदेश में अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनाव। उत्तरप्रदेश में समाजवाद के आतंकवाद को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुरी तरह ध्वस्त कर दिया है। इसलिए समाजवादी परिवार को चुनावों में कोई संभावना नजर नहीं आती। इसीलिए उन्होंने राम मंदिर के काम में टांग अड़ाकर हिंदू समाज के बीच विभाजन के बीज डालने की नाकाम कोशिश की है।
और तथाकथित आम आदमी पार्टी के अतिउत्साही और ढीठ नेता। वह तत्काल उत्तर प्रदेश में सत्ता हासिल करना चाहते हैं। किसी भी कीमत पर। चाहे रामजी के नाम पर लोगों को भड़काना ही क्यों न पड़ा। लेकिन राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट ने तत्काल इन लोगों का भंड़ाभोड़ कर उन्हें उनकी बदनियति से सामना करवा दिया। दरगाहों और मस्जिदों में सफेद टोपी पहनकर और हाथ फैलाकर मुस्लिम वोटों की दुआ मांगने वाले आप नेता इतने निर्लज्ज है कि अपनी झूठी बात को सही साबित करने के लिए सोश्यल मीडिया पर नए नए प्रोपेगेंडा रचते हैं और खुलासा होने पर मैदान से भाग भी जाते हैं। कितनी ही बार ये अपनी नादानियों के अदालतों में माफी मांग चुके हैं। मगर ढीठ व्यक्ति की ढीठता आसानी से नहीं जाती।
लेकिन यह निश्चित है कि राममंदिर के लिए पिछले सदियों से चल रहा संघर्ष भव्य राम मंदिर के रूप में भारत के सामने प्रकट होगा। चाहे कितने ही असुर, राक्षस और दुष्ट प्रवृति के लोग राम काज में अड़ंगा लगाएं, भारत के इतिहास पुरुष मर्यादा पुरुषोत्तम का स्थान अयोध्या में पूरी भव्यता के साथ बनेगा।