जयपुर (विसंकें)। स्वामी विवेकानंद के जीवन के कई ऐसे प्रसंग विभिन्न पुस्तकों में मिलते हैं, जिनसे काफी कुछ सीखा जा सकता है, नई दृष्टि प्राप्त की जा सकती है, इन प्रसंगों से गुजरना जीवन को लेकर एक सकारात्मक सोच विकसित करने के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण माना जा सकता है।
स्वामी विवेकानंद अमेरिका में भ्रमण कर रहे थे। एक जगह से गुजरते हुए उन्होंने पुल पर खड़े कुछ लड़कों को नदी में तैर रहे अंडे के छिलकों पर बंदूक से निशाना लगाते देखा। किसी भी लड़के का एक भी निशाना सही नहीं लग रहा था, तब उन्होंने एक लड़के से बंदूक ली और खुद निशाना लगाने लगे।
उन्होंने पहला निशाना लगाया और वह बिलकुल सही लगा। फिर एक के बाद एक उन्होंने कुल 12 निशाने लगाये और सभी बिलकुल सटीक लगे। ये देख लड़के दंग रह गए और उनसे पूछा, भला आप ये कैसे कर लेते हैं? स्वामी जी बोले, तुम जो भी कर रहे हो अपना पूरा दिमाग उसी एक काम में लगाओ। अगर तुम निशाना लगा रहे हो, तो तम्हारा पूरा ध्यान सिर्फ अपने लक्ष्य पर होना चाहिए। तब तुम कभी चूकोगे नहीं। अगर तुम अपना पाठ पढ़ रहे हो, तो सिर्फ पाठ के बारे में सोचो। मेरे देश में बच्चों को यही करना सिखाया जाता है।
स्वामी जी की इस बात से बालक बड़े प्रभावित हुए। एक अन्य प्रसंग में स्वामी जी जब विदेश यात्रा पर गये थे, उनका भगवा वस्त्र और आकर्षक पगड़ी देख कर लोग अचंभित रह गये और वे यह पूछे बिना नहीं रह सके, आपका बाकी सामान कहां है? स्वामी जी बोले, मेरे पास बस यही सामान है।
तो कुछ लोगों ने व्यंग्य किया, अरे! यह कैसी संस्कृति है आपकी? तन पर केवल एक भगवा चादर लपेट रखी है। कोट-पतलून जैसा कुछ भी पहनावा नहीं है? इस पर स्वामी विवेकानंद जी मुस्कुराये और बोले, हमारी संस्कृति आपकी संस्कृति से भिन्न है। आपकी संस्कृति का निर्माण आपके दर्जी करते हैं, जबकि हमारी संस्कृति का निर्माण हमारा चरित्र करता है। संस्कृति वस्त्रों में नहीं, चरित्र के विकास में है।
कहने का तात्पर्य है कि धन से अधिक महत्व चरित्र का माना गया है। अमेरिका के प्रसिद्ध विचारक इमर्सन ने लिखा था कि ‘उत्तम चरित्र ही सबसे बड़ा धन है।’ इसी तरह ग्रीन नामक विद्वान का कथन था, ‘चरित्र को सुधारना ही मनुष्य का परम लक्ष्य होना चाहिए।’
स्वामी विवेकानंद भी प्राय: युवाओं को संबोधित करते हुए कहा करते थे, ‘युवाओ! उठो! जागो! अपने चरित्र का विकास करो।’ इस तरह विभिन्न विद्वानों ने चरित्र के महत्व पर प्रकाश डाला है और मानव जीवन में इसे सर्वोपरि माना है। वस्तुत: आज इसी चरित्र को बनाए रखने की परम आवश्यकता है।
हम चाहें किसी भी क्षेत्र में कार्य कर रहे हों, किसी भी पद पर अपना योगदान कर रहे हों, हमें चरित्र को बनाकर और बचाकर रखना चाहिए। युवावस्था में तो चरित्र का महत्व और भी बढ़ जाता है। इस अवस्था में हम देश-निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकते हैं।