पौराणिक मान्यता अनरूप पृथ्वी पर माँ गंगा का अवतरण ज्येष्ठ शुक्ल की दशमी को हुआ । इसी तिथि को गंगा दशहरा का पर्व अनादि काल से मनाया जा रहा है।
धार्मिक दृष्टिकोण में राजा भगीरथ के कठिन तप के बाद माँ गंगा पृथ्वी पर आने को तैयार हुई । अवतरण के चिन्तन से सामने आया कि गंगा के प्रचंड वेग को पृथ्वी सम्भाल नहीं पायेगी । अन्ततः समाधान के तौर पर भगवान शिव ने अपनी विशाल जटाओं में गंगा के आवेग को समाहित किया ।
यथार्थ में देखें तो हिमालय व जलागम क्षेत्र में शिव की विशाल जटाओं के प्रतीक स्वरुप प्रचंड वेग वाली गंगा विभाजित होकर अलग-अलग धाराओं के रुप में प्रवाहित हुई । इसीलिए हमारे देश में सप्त नदियां गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, सिंधु, कावेरी सहित अन्य सभी छोटी-बड़ी नदी को गंगा सदृश्य मानने की परम्परा रही है।
मध्य हिमालयी भाग में हिमानी और गैर हिमानी स्रोतों से निकलने वाली कई आंचलिक नदियों के नाम गंगा से जुड़े: यथा-रामगंगा, कालीगंगा, सरयू गंगा, गोमती गंगा, कैल गंगा, धौली गंगा व खीर गंगा आदि। इसी कारण ‘गंगा दशहरा’ पर्व मनाये जाने की परम्परा है ।