फिल्म समीक्षा – मुल्क

 mulkइस्लाम का असली चेहरा छिपा मुखौटा दिखाती फिल्म है मुल्क। वकील मुराद अली मुहम्मद (ऋषि कपूर) का भतीजा शाहिद (प्रतीक बब्बर) जिहाद करने निकलता है और एक बस में बम विस्फोट कर 16 लोगों की हत्या कर देता है, अनेक घायल हो जाते हैं। सबके समझाने पर भी सरेण्डर नहीं करता।  जिहाद के उद्देश्यों और पीड़ित लोगों की व्यथा-कथा पर मौन रहती फिल्म हत्यारे की मौत पर संदेश देती दिखती है कि भले ही कुछ पुलिसकर्मी मारे जाते पर हत्यारे को जीवित गिरफ्तार किया जाना चाहिए था।
हत्यारे जिहादी के परिवार को इन्वेस्टीगेट ना किया जाये, उसे परेशानी होती है। उसके परिवार के प्रति कोई वैर भाव नहीं रखे, परिवार को पीड़ा होती है। मजहब के नाम पर जिहाद करके आम जन के हत्यारे के परिवार की देशभक्ति पर कोई शक नहीं करना चाहिए, ऐसा न करके आप उन्हें आहत करते हैं। काण्ड में हत्यारे के परिवार की सन्लिप्तता जानने की कोशिश नहीं की जानी चाहिए। कोई यह नहीं सोचे कि हत्याकांड में परिवार का कोई रोल है। सबसे पहले उसे क्लीन चिट दे दी जाये। चूंकि परिवार मुसलमान है, अतः पूछताछ में सख्ती न बरती जाये। जिहाद करते मुसलमान के परिवार के प्रति पास-पड़ोस के लोगों का बर्ताव बदल जाता है तो, उन्हें बुरा लगता है। पूरी फिल्म इस तथ्य पर आधारित है, कि हम मुसलमानों के प्रति नकारात्मक पूर्वाग्रह से ग्रसित है।
यह फिल्म ऐलानिया धमकी जैसी जान पड़ती है कि इस्लाम इस देश में आ चुका है, इस देश पर उसका हक है। चूंकि वह इस देश से प्यार करता है, इसलिये कुछ भी करेगा। किन्तु इस देश के प्रति कर्तव्यों के लिए पूरी फिल्म मौन है। मुसलमान आतंकी जिहाद, आर्थिक जिहाद, जनसंख्या जिहाद, लव जिहाद और सुन्नत आदि सब करेगा। यह उसका अधिकार है।
पटकथा लेखक, निर्देशक और निर्माता अनुभव सिन्हा ने फिल्म निर्माण से मुसलमानों को दूर रखा है। फिल्म से जुड़े सब लोग हिन्दू ही है। परोक्ष रूप से कहने का प्रयास है, इस देश का हिन्दू भी यही मानता है, कि मुसलमानों के साथ अन्याय होता है, वे पीड़ित हैं, पुलिस और सरकार उन्हें झूठे मुकदमों में फंसा कर प्रताड़ित करती है। वे हर कदम पर भेदभाव के शिकार हैं। उसके बाद भी सभी के प्रति बहुत अच्छे हैं। यह एक प्रोपेगंडा फिल्म है।
आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता और हर मुसलमान आतंकवादी नहीं होता है। इस प्रकार की घिसी पिटी बातों को दोहराया गया है। किन्तु यह बात छिपाने की कोशिश की गयी है कि ‘‘रेडिकल इस्लाम’’ और ‘‘मॉडरेट इस्लाम’’ में कोई अन्तर नहीं है। समाज में ‘‘कन्फयूजन’’ बनाये रखते हुए दोनों एक दूसरे को संरक्षण देकर आगे बढ़ते है। सारे ही मुसलमान मानते तो उन्ही हदीसों और कुरान को हैं। हत्या करने वाले और नहीं करने वाले में अन्तर क्यों किया जाये? फिल्म में सच्चे प्रश्नों से बचने की भरपूर कोशिश की गई है। अधिकांश दर्शक जिहाद और आतंकवाद के शाब्दिक और पारिभाषिक अन्तर को नहीं जानते हैं, इसी अज्ञान का लाभ उठा कर दर्शकों को गुमराह करने का प्रयास करती फिल्म है मुल्क।
फिल्म की नायिका आरती (तापसी पुन्नू) हिन्दू, सेक्यूलर, पढ़ी लिखी पेशे से वकील, लव-जिहाद की शिकार महिला है। जो वकील मुराद अली (ऋषि कपूर) के बेटे से शादी करके दुःख और पारिवारिक झगड़े में उलझी है। जब गैर मुस्लिम लड़की इस्लाम के वास्तविक चरित्र को जाने बिना किसी मुसलमान से निकाह कर लेती है, तो उसे बाद में पता चलता है कि जिस व्यक्ति के प्रेम में पड़कर उसने शादी की, वह शादी के बाद बिलकुल भिन्न निकलता है। जीवन में सदैव स्वतंत्रता पूर्वक जीने वाली हिन्दू लड़की, मुसलमान पति के इस्लामिक फौलादी शिकंजे की बढ़ती जकड़न के कारण घुटन महसूस करती है। शादी के पहले और बाद में पति का बदलता बर्ताव उसे टूटन और सदमे की ओर ले जाता है। किन्तु हिन्दू घर में मिली अच्छी शिक्षा-दीक्षा और संस्कारों के कारण नायिका मुसीबत में पड़े अपने ससुराल का साथ देती है। अब ससुर और हिन्दू बहू दोनों मिलकर मुकदमा लड़ते हैं। यह परिवार उसे एक दिन का भी सुख नहीं देता है। उसे अपनी ससुराल की रक्षा करने के लिये सारी शक्ति झोंकनी पड़ती है। क्या इस्लाम स्वयं ही दुःख और पीड़ा उत्पन्न नहीं करता है? और फिर इन पीड़ाओं को दूर करने का ढोंग करता जान पड़ता है। जिसके चपेटे में मुसलमान और गैर मुसलमान दोनों ही आ जाते हैं।
बनारस की गलियों में फिल्माई गयी और कोर्ट रूम ड्रामा करती, एक कम बजट की किन्तु, अब तक की सबसे साम्प्रदायिक फिल्म मुल्क ने लगभग 16 करोड़ का कारोबार किया। इण्टरनेट पर आ जाने के बाद इस फिल्म को बारीकी से देखा जाना चाहिए।
– मनु त्रिपाठी

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2 Responses

  1. Mahendra Raval says:

    आपने सही शब्दोंमें फिल्म की सच्चाई ऊजागर कि है. यह फिल्म एक नकारात्मक असर पैदा करती है, जिसकी हम सभी कड़ी निंदा करते हैं. फिल्म में बहुत कुछ सत्य के विरुद्ध या सत्य को कुचल कर प्रस्तुत किया गया है.
    संक्षेप में, फिल्म कोई हिडन एजेंडा के तहत, वामपंथी विचारधारा फैला ने वाले, कोंग्रेसीयो या सुडोसेक्युलरो द्वारा आयोजित होगी… ऐसा लगता है.
    सही मुद्दा उठाने के लिए धन्यवाद. ?

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