मुम्बई फिल्म इण्डस्ट्री में काम करने वाली युवा पीढ़ी शिक्षित है, अतः अच्छे विषयों पर शोध करके फिल्में बनाई जा रही है। शिक्षित व जागरूक दर्शक वाकई प्रभाव छोड़ने वाली फिल्में हाथो हाथ स्वीकार भी कर रहा है। दुनिया भर में हॉलीवुड की फिल्मों का प्रभाव है, जो कि भारत में भी क्रमशः बढ़ता जा रहा है। किन्तु भारत की सांस्कृति और भारतीयता का चित्रण करने वाली फिल्मों का अपना एक बाजार है। इसी क्रम में बनायी गयी है, फिल्म राजी! भारत की फिल्मों में भारत की कहानियों का चित्रण हो। इस विचार से फिल्म अछूती नहीं है।
2 घण्टे 20 मिनिट लम्बी फिल्म का निर्देशन-पटकथा लेखन मेघना गुलजार और भवानी अय्यर का है। गुलजार का लिखा गीत ऐ वतन जो कि शंकर अहसान द्वारा संगीतबद्ध है पसन्द किया जा रहा है। पूरी तरह महिला प्रधान जासूसी फिल्म होने के कारण केवल और केवल आलिया भट्ट की ही है। हालांकि अन्य कलाकारों जैसे विक्की कौशल, रजत कपूर, जयदीप महलावत, ओर शिशिर शर्मा का अभिनय सराहनीय है। इस फिल्म में आलिया भट्ट ने अपने आपको मंजी हुई अभिनेत्री के रूप में स्थापित कर ही दिया है। घरेलू नौकर के रूप में आरिफ जाकरिया की घूरती हुई आखें, हड्डियों तक भय पैदा करती है।
भारतीय जल सेना से रिटायर्ड लेफ्टीनेन्ट कर्नल हरिन्दर सिक्का कारगिल युद्ध के दौरान कश्मीर में थे और एक पत्रकार के रूप में लोगों से मिल रहे थे। वहाँ उन्हेंं एक फौजी अफसर ने अपनी माँ के जीवन की कहानी सुनाई, और उस पर कई वर्ष परिश्रम करके पूरी तरह सत्य घटनाओं पर आधारित उपन्यास लिखा। ‘‘कॉलिंग सहमत’’। जो कि 1971 की भारत-पाक युद्ध की परिस्थियों पर है।
भारत में कश्मीर का एक देश भक्त परिवार, देश की सेवा के लिये अपनी बेटी की शादी, एक पाकिस्तानी परिवार में कर देता है। इस परिवार के सभी सदस्य पाकिस्तानी सेना के बड़े पदो पर है। इस तरह यह साधारण सी लड़की सुरक्षित रावलपिण्डी मिलिटरी कैन्टोनमेन्ट के अन्दर पहुंच जाती है। वहाँ पर वह भारत के लिये जासूसी करती है और आवश्यक सूचनायें भारत तक पहुंचाती है। ससपेंस और थ्रिल से भरी यह फिल्म दर्शकों को पलक झपकने का मौका भी नहीं देती।
पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच गृह युद्ध की स्थिति थी, तब पाकिस्तान भारत पर हमला करने वाला था। भारत को भनक नहीं थी। बड़ा हमला, चिटगांव स्थित पाकिस्तानी पनडुब्बी गाजी के द्वारा विशाखापट्टनम स्थित भारतीय जहाज आईएनएस विराट पर किया जाना था। इसकी सूचना वह लड़की देती है, और युद्ध की दिशा ही बदल जाती है ।
एक जासूस दोहरा जीवन जी कर भी आखिर एक मासूम इन्सान ही होता है। आलिया भट्ट ने अपने किरदार को पूर्णतः आत्मसात किया है। सामाजिक जीवन में कोई कार्य बदले में कुछ ज्यादा मिलेगा, इस आशा से किया जाता है। स्कूल जाने वाले बच्चे को भी यही कहा जाता है कि अच्छा पढ़ोगे तो अच्छा ग्रेड मिलेगा। किन्तु एक जासूस के साथ ऐसा नहीं होता है। उसे उसके किये अच्छे काम का पुरस्कार नहीं मिलता। जब मुसीबत में होता है, तो उसके खुद के भरोसे छोड़ दिया जाता है। जासूस को अपना आदमी स्वीकार कर दुनियाँ की कोई सरकार बदनामी नहीं लेती। न जाने कितने गुमनाम लोग तन-मन से काम कर देश के झण्डे को ऊँचा रखा है।
आज जब कश्मीर की स्थितियों पर फिल्म बनती है, तो शूटिंग कश्मीर नहीं, बल्कि पंजाब, हिमाचल प्रदेश में होती है। यह स्थिति मन को कचोटती है।
फिल्म पहले सप्ताह में लगभग 50 करोड़ का कारोबार कर चुकी है। अपने महान इतिहास से परिचित कराती यह फिल्म युवा पीढ़ी को देखनी चाहिए।