भारत को अभिमान तुम्हारा…
—राजस्थान से भी रहा है संबंध
—1914 में आए थे जयपुर
—बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक
—पहला आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय खुलवाने का भी है श्रेय
—’मुण्डक उपनिषद’ से निकाला था ‘सत्यमेव जयते’
जयपुर। सच्ची धर्मनिरपेक्षता के पक्षधर थे मदन मोहन मालवीय। महामना के रूप में पहचाने जाने वाले वे एक भारतीय शिक्षाविद् और स्वतंत्रता सेनानी थे। जिन्होंने 1916 में बसंत पंचमी के पुनीत दिवस पर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। वे 1919 से 1939 तक इसके कुलपति भी रहे। उन्होंने पहले आयुर्वेदिक विश्वविद्यालय की भी स्थापना करवाई थी। बीएचयू संस्थान के साथ भारतीय शिक्षा में उन्होंने इतिहास रचा। जो देश में अपनी तरह का पहला संस्थान था। उन्होंने इस स्थान के लिए बनारस को चुना, क्योंकि इस स्थान में निहित शिक्षा, ज्ञान और आध्यात्मिकता की सदियों पुरानी परंपरा थी। उनका दृष्टिकोण शिक्षा के प्राचीन केंद्रों, तक्षशिला, नालंदा और अन्य पवित्र संस्थानों की सर्वोत्तम भारतीय शिक्षा को पश्चिम के आधुनिक विश्वविद्यालयों की परंपरा के साथ मिलाना था।
ऐसे ही महान व्यक्तित्व के धनी मदन मोहन मालवीय की जयंती आज यानी 25 दिसंबर को मनाई जाती है। मालवीय जी का उद्देश्य महज देश में विश्वविद्यालय की स्थापना करना ही नहीं था, बल्कि ऐसे विश्वविद्यालयों के माध्यम से समाज, राष्ट्र एवं विश्व को उच्च शिक्षा की सम्यक दृष्टि प्रदान करना था। एनी बेसेंट, महात्मा गांधी, रवीन्द्रनाथ टैगोर, श्यामा चरण डे और कई अन्य महान व्यक्तित्वों ने ज्ञान की उनकी खोज में उनके साथ हाथ मिलाया, भारत में राष्ट्रीय भावना जगाई और शिक्षा और धार्मिकता की शक्ति से स्वतंत्रता हासिल की।
आए थे गुलाबी नगरी में भी-
मालवीय का संबंध राजस्थान से भी रहा है। वे 1914 में जयपुर आए थे। उस समय के यादगार होटल जो वर्तमान में पुलिस कंट्रोल रूम के नाम से जाना जाता है, में ठहरे थे।
बीएचयू निर्माण में महाराजा माधोसिंह ने दिए थे पांच लाख रुपए-
ऐसा माना जाता है कि, उन्होंने जयपुर के तत्कालीन शासक महाराजा माधोसिंह द्वितीय से बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के निर्माण में सहायता मांगी थी, तो महाराजा माधोसिंह ने तुरंत पांच लाख रुपए का सहयोग दिया था। बीकानेर के तत्कालीन महाराजा गंगासिंह भी मालवीय के भक्त थे और उन्होंने भी काशी विवि के निर्माण में आर्थिक सहायता की। इस दौर में मदन मोहन मालवीय के चिंतन पर गौर करना जरूरी है। उनका मानना था कि लोकतंत्र की आधारशिला सच्ची राष्ट्रभक्ति और राष्ट्रप्रेम है। गांवों के विकास के बारे में मालवीय का चिंतन था कि विश्व विद्यालयों के विद्यार्थियों को छुटिट्यों में गांवों में जाकर ग्रामवासियों को अपनी सेवाएं देनी चाहिए।
वे चाहते थे कि विद्यार्थीगण गांवों में जाकर ग्रामवासियों को पढ़ाएं, लिखाएं तथा गणित की शिक्षा दें। उनका चिंतन था कि जब तक भारत में विज्ञान और तकनीकी ज्ञान को बढ़ावा नहीं दिया जाएगा, तब तक भारत का औद्योगिक विकास नहीं हो सकता। इसलिए उन्होंने सन 1919 में बनारस इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना की।
नारी शक्ति के प्रबल समर्थक-
मदन मोहन मालवीय नारी शिक्षा के भी प्रबल समर्थक थे। उनका मानना था कि मां ही भावी पीढ़ी का निर्माण करती है क्योंकि नारी ही धर्म को संरिक्षका, संस्कृति की संपोषिका तथा परम्पराओं का संरक्षण-संवर्धन करने वाली है। इसलिए नारी शिक्षा की महत्ती आवश्यकता है। इसके लिए उन्होंने बीएचयू में महिला महाविद्यालय का भी निर्माण कराया।
अपना सुख छोड़ देश को समर्पित-
मदन मोहन मालवीय ने अपनी सुख-सुविधा छोड़कर अपना पूरा जीवन देश के भविष्य निर्माण में लगा दिया। उनका मानना था कि अपनी योग्यता, क्षमता, समय, संसाधन आदि सभी कुछ समाज के लिए, उसके सुंदर भविष्य के लिए लगाना पड़े तो पीछे नहीं हटना चाहिए।
सम्मान में बसे नगर-
मदन मोहन मालवीय के सम्मान में देश के कई शहरों में नगर बसे हुए हैं। गुलाबी शहर जयपुर में भी ‘मालवीय नगर’ उन्हीं के सम्मान में बसाया गया था। इसके अलावा प्रयागराज, लखनऊ, दिल्ली, देहरादून, भोपाल ओर दुर्ग में भी उनके सम्मान में नगर बसे हुए हैं।
समुदाय की पहचान जाति से नहीं भारतीय रूप में हो-
मालवीय विश्वबंधुत्व, धार्मिक सहिष्णुता और मानव कल्याण में विश्वास रखते थे। वे चाहते थे किसी भी समुदाय की पहचान हिन्दू, मुस्लिम या अन्य किसी समुदाय के रूप में होकर एक भारतीय के रूप में हो।
मुण्डक उपनिषद से निकाला ‘सत्यमेव जयते’-
मदन मोहन मालवीय ही थे जो ‘मुण्डक उपनिषद’ से सत्यमेव जयते का मंत्र निकालकर लाए और उसे एक नारे के रूप में आजादी के संघर्ष में प्रचारित किया था।
जब कविता से दी मैथलीशरण गुप्त ने श्रद्धांजलि-
प्रसिद्ध कवि मैथलीशरण गुप्त ने मालवीय जी को ”भारत को अभिमान तुम्हारा, तुम भारत के अभिमानी, पूज्य पुरोहित थे हम सबके, रहे सदैव समाधानी…” इस कविता के माध्यम से भावभीनी श्रद्धांजलि दी थी।
कुछ अन्य तथ्य-
1— प्रयाग में 1861 में एक शिक्षित हिंदू परिवार में जन्में।
2— राष्ट्र के प्रति उनकी सेवा के सम्मान में, महामना को वर्ष 2014 में मरणोपरांत सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न से सम्मानित।
3— भारत की बहुलता में दृढ़ विश्वास रखते थे।
4— जनवरी 1906 में सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार करने के लिए कुम्भ पर इलाहाबाद में सनातन धर्म महासभा बुलाई।
5— सेवा समिति द्वारा 1918 में स्काउट एसोसिएशन का गठन।
6— 19-अप्रैल 1919 को बम्बई में हिन्दी साहित्य सम्मेलन की अध्यक्षता की।
7— लाहौर में 1922 में हिन्दू मुस्लिम सद्भावना पर भाषण।
8— गोरक्षा मण्डल की स्थापना की।
9— 12 नवंबर 1946 को निधन।