नवरात्रों में भक्त प्रार्थना, मौन और ध्यान के माध्यम से अपने सच्चे स्रोत की ओर यात्रा करता है। रात को भी रात्रि कहते हैं, क्योंकि वह भी नवीनता और ताजगी लाती है। वह हमारे अस्तित्व के तीन स्तरों पर राहत देती है- स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर को। उपवास के द्वारा शरीर विषाक्त पदार्थ से मुक्त हो जाता है, मौन के द्वारा हमारे वचनों में शुद्धता आती है, बातूनी मन शांत होता है और ध्यान के द्वारा अपने अस्तित्व की गहराइयों में डूबकर हमें आत्मसाक्षात्कार का मौका मिलता है।
नवरात्रि के नौ दिन तीन मौलिक गुणों से बने इस ब्रह्मांड में आनंदित रहने का भी एक अवसर है। यद्यपि हमारा जीवन इन तीन गुणों के द्वारा ही संचालित है, परंतु हम उन्हें कम ही पहचान पाते हैं या उनके बारे में विचार करते हैं। नवरात्रि के पहले तीन दिन तमोगुण के हैं, दूसरे तीन दिन रजोगुण के और आखिरी तीन दिन सतोगुण के लिए हैं। हमारी चेतना इन तमोगुण और रजोगुण के बीच बहती हुई सतोगुण के आखिरी तीन दिनों में खिल उठती है।
जब भी जीवन में सत्व बढ़ता है, तब हमें विजय मिलती है। इस ज्ञान का सार तत्व उत्सव के रूप में दसवें दिन विजयदशमी द्वारा मनाया जाता है। यह तीन मौलिक गुण हमारे भव्य ब्रह्मांड की स्त्री शक्ति माने गये हैं। नवरात्रि के दौरान देवी मां की पूजा करके, हम त्रिगुणों में सामंजस्य लाते हैं और वातावरण में सत्व के स्तर को बढ़ाते हैं। इस स्थूल संसार के भीतर ही सूक्ष्म संसार समाया हुआ है, लेकिन उनके बीच अलगाव की भावना ही द्वंद का कारण है।
एक ज्ञानी के लिए पूरी सृष्टि जीवन्त है, जैसे बच्चों को सबमें जीवन दिखता है ठीक उसी प्रकार उसे भी सब में जीवन दिखता है। देवी मां या शुद्ध चेतना ही सब नाम और रूप में व्याप्त हैं। हर नाम और हर रूप में एक ही देवत्व को जानना ही नवरात्रि का उत्सव है।