पढ़े-लिखों का जिहाद

downloadजिहादी इस्लाम और जिहादी आतंकवाद अशिक्षा का परिणाम नहीं बल्कि कट्टरपंथ की लगातार खुराकका परिणाम है, जो गैर मुस्लिमों के विरुद्ध नफ़रत और खून की प्यास से भरे जंगजुओं का उत्पादन औद्योगिक स्तर पर कर रही है।

“देश के अमन-चैन और सुरक्षा से जुड़े मामलों पर स्पष्टता और ईमानदारी की आवश्यक्ता है। ज़रुरत है कि जो नहीं समझते उन्हें समझाया जाए और जो सब समझते हुए अनजान बन रहे हैं उनका पर्दाफ़ाश किया जाए।”
– प्रशांत बाजपेई, पाञ्चजन्य

 

” इस्लाम क़ुबूल करो या मरो। ….. हम तुम्हें जिबह करने आ रहे हैं।…. इस्लाम को अमन का मज़हब कहने वाले झूठ बोलते हैं। इस्लाम एक दिन के लिए भी अमन का मज़हब नहीं रहा है। ” इस्लामिक स्टेट ने पहली बार भारत को केंद्रित कर वीडियो जारी किया है। जिसमें भारतीय मुस्लिम युवक, जो अब बगदादी के प्यादे हैं, भारत को रक्त में डुबोने की धमकी दे रहे हैं।  एक और मामले को देखें। ” हमें आज शाम 4 बजे जन्नत में होने वाले अल-इसरा के जलसे में शामिल होना है। हम 50 जिहादी हैं। हमें आज अल्लाह के सामने हाज़िर होना है। मुझे गोली मार दो। ” उत्तरी इराक़ के मोसुल में आत्मघाती हमला करने वाले इस्लामिक स्टेट के जिहादियों में से एक को पेशमर्गा सैनिकों ने पकड़ लिया तो उसने उन ‘काफिरों’ को खुद से दूर रहने की चेतावनी  देते हुए ये मांग की।

इसके पहले कि आप  इसे अनपढ़ आदमी का दिमागी फितूर कहें, आपको सउदी ह्रदय रोग विशेषज्ञ मोशरी अल अंजी की याद दिलाना चाहूँगा जिसने जिहादी आत्मघाती हमले में खुद को उड़ा लिया था। एक अन्य 25 वर्षीय चिकित्सक  फैसल बिन शामन ने अपनी विस्फोटकों से भरी कार को एक सुरक्षा नाके से टकराकर दो दर्जन लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। और इस्लामिक स्टेट के ताज़ा वीडियो में भारत की तबाही का ख्वाब देखने वाले अमान टांडेल, फहद शेख और उनके साथी भी अच्छीतरह शिक्षित हैं।
हाल ही में इटैलियन समाजशास्त्री डिएगो गैम्बेत्ता की किताब आई। नाम है – ‘इंजीनियर्स ऑफ़ जिहाद’। पुस्तक में अध्ययन प्रस्तुत किया गया है कि किस प्रकार जिहादियों और इस्लामी कट्टरपंथियों में पढ़े-लिखों की संख्या अच्छी खासी है। पश्चिमी देशों में से निकल रहे जिहादियों में से 25 प्रतिशत और अरब जगत से निकल रहे जिहादियों में से 46 प्रतिशत विश्वविद्यालयों में पढ़े हैं। यूरोप के उच्चशिक्षित इस्लामी कट्टरपंथियों में से 45 प्रतिशत इंजीनियर हैं। जिहाद की तरफ मुड़े चिकित्सकों की संख्या भी आश्चर्यजनक रूप से ज्यादा है। अल कायदा का वर्तमान मुखिया अल जवाहिरी शल्य चिकित्सक है।  लादेन इंजीनियर था। अबु बकर अल बगदादी भी उच्च शिक्षित है। बगदादी की बर्बरता में हाथ बँटाने के लिए मुंबई से जाने वाले मुस्लिम युवा भी कॉलेज में तकनीकी शिक्षा प्राप्त कर रहे थे।
सिमी और इंडियन मुजाहिदीन के आतंकी भी प्रायः कॉलेज शिक्षित है। भारत से इस्लामिक स्टेट के लिए भर्तियाँ करते हुए कुछ लोगों को राष्ट्रीय जाँच एजेंसी ने गिरफ्तार किया , जिनमें से 46 वर्षीय अब्दुल अहद, जो इस्लामिक स्टेट के लिए भर्तियां कर कर रहा था, ने अमरीका के कैनेडी-वेस्टर्न विश्वविद्यालय, कैलफोर्निया से स्नातकोत्तर की डिग्री ली है। सब मध्यमवर्गीय परिवारों से हैं। 33 वर्षीय मुदब्बिर शेख एक आईटी फर्म के लिए काम करता था।  सार रूप में कहा जा सकता है कि जिहादी इस्लाम और जिहादी आतंकवाद अशिक्षा का परिणाम नहीं बल्कि एक विशेष प्रकार की लगातार कट्टरपंथी खुराक का परिणाम है, जो गैर मुस्लिमों के विरुद्ध नफ़रत और खून की प्यास से भरे जंगजुओं का उत्पादन औद्योगिक स्तर पर कर रही है।

ऐसे में, भारत में भी, खारिजियों (इस्लाम से बाहर करने वाले) की बढ़ती जमात, वअज़ीबुल क़त्ल ( क़त्ल करने योग्य) की लंबी  होती फेहरिस्त, ‘काफिरों’ के विरुद्ध उबलती घृणा और धरती को दारुल इस्लाम में बदलने की बढ़ती ललक हमें चेता रही है कि सतह के नीचे बारूद सुलग रही है।

भारत की विडम्बना ये है कि इस विषय पर बात करना, यहां तक कि इस ओर इंगित करना भी निषिद्ध हो गया है। भारत, जहाँ शास्त्रार्थ की कई हज़ार साल पुरानी परम्परा है। आज़ाद भारत में अल्पसंख्यकवाद ऐसा सर चढ़कर बोलने लगा कि जहाँ प्रचलित हिंदू परंपरा के दोषों पर चोट करना (जो कहीं उचित था तो कहीं हद से ज्यादा पूर्वाग्रहग्रस्त अथवा अतिरेकी रहा ) तो प्रगतिशीलता कीनिशानी माना गया लेकिन सेमेटिक सोच के विश्लेषण को  घोर दुस्साहस और दुर्भावनापूर्ण निरूपित किया गया। परिणामस्वरूप भारत में जिहादी आतंकवाद की समस्या पर हमारे पास कोई ठोस अध्ययन नहीं है। इसके विपरीत पाकिस्तान में, जहाँ सर्वशक्तिमान फौजी इस्टैब्लिशमेंट स्वयं जिहाद का पोषण -संरक्षण करता है, कई लेखकों और शोधार्थियों ने उपयोगी और साहसपूर्ण विश्लेषण प्रस्तुतकिये हैं। भारत और पाकिस्तान की राजनैतिक परिस्थितियाँ बिलकुल भिन्न हैं,  लेकिन परम्परागत इस्लाम का स्वरुप एक होने के कारण तथा पाकिस्तान के पंजाब में समाज के वहाबीकरण के कारण सामने आ रही चुनौतियों के मद्देनज़र ये अध्ययन उपयोगी हो सकते हैं। ध्यान रहे कि यहाँ पर बात अल्लामा इकबाल के ‘शिकवा’ और ‘जवाब-ए -शिकवा ‘ तथा  मौलाना मौदूदी की विरासत को ध्यान मेंरखते हुए करनी होगी क्योंकि सीमा के दोनों तरफ दोनों को ही मान्यता प्राप्त है।
मनोवैज्ञानिक और लेखक सोहेल अब्बास  ने किताब ‘ प्रॉबिंग द जिहादी माइंडसेट’ में 17 से 72 आयुवर्ग के  517 जिहादियों पर एक शोधपूर्ण प्रस्तुति दी है। लगभग आधे जिहादियों का कहना  था कि पास-पड़ोस और नातेदारों के बीच उनका परिवार अधिक इस्लाम में ज्यादा गहरा विश्वास रखता था। तिस पर भी , ये जिहादी अपने परिवार में भी सबसे ज्यादा “पक्के मुसलमान” थे जो अपने परिवार  के सदस्यों  को भी और ‘शुद्ध मुसलमान ‘  बनने के लिए प्रेरित करते थे। अधिकाँश जिहादी मज़हबी नेताओं द्वारा जिहाद में दीक्षित हुए।  वो परिवार की महिलाओं को हिज़ाब पहनने के लिए ज़ोर देते थे। परिवार  सदस्यों को मज़ारों-दरगाहों पर जाने जैसी “गैर -इस्लामी आदतों ” से दूर करने की कोशिश करते थे। इन जिहादियों ने अपने परिवार के प्रति जिम्मेदारियों  चिंताओं की भी परवाह नहीं की।  न ही खुद के बाद परिवार के जीवन यापन के बारे में सोचा। हाल ही में भारत में हुई गिरफ्तारियों में भी ऐसे अनेक मामले सामने आये, जहां शादी शुदा बाल-बच्चेदारों ने भी बेहिचक जिहाद का रास्ता चुना। 65. 5प्रतिशत जिहादी इस मामले में  स्पष्ट सोच नहीं रखते थे कि लादेन 9/11 के हमलों में शामिल था कि नहीं, लेकिन 74 प्रतिशत इस बात पर स्पष्ट थे कि अमरीका ने “इस्लाम के विनाश के उदेश्य” से अफगानिस्तान पर हमला किया। सभी इस बात पर एकमत थे कि वे जिहाद की इस लड़ाई में जीतें या हारें, अथवा मरें या जियें, दुनिया में उनका ओहदा और प्रतिष्ठा बढ़ना तय है और जन्नत में 72 हूरें उनका  इंतज़ार कर रही हैं। अब सामान्य विश्वास के विपरीत सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात,जिहादियों में शिक्षा का प्रतिशत पाकिस्तान के राष्ट्रीय प्रतिशत से अधिक था। और उनमे से ज्यादातर मुख्यधारा के समाज से आए थे। जिहाद की वैश्विक घटना में ये कारक सार्वभौमिक हैं।

भारत में बुद्धिजीवियों के एक बड़े वर्ग को लगता है कि जिहादी आतंक के पनपने की मुख्य वजह समाज में आधुनिकता की कमी है। बात विचारणीय हो सकती है परंतु आधुनिकता की परिभाषा क्या है ? क्या आधुनिकता की परिभाषा आधुनिक साधन-संसाधनों से है ? क्योंकि साधन संपन्नता तेल पर तैर रहे अरब राष्ट्रों में दुनिया के किसी भी हिस्से अधिक है। क्या आधुनिकता का अर्थ आधुनिक जीवन शैली से है ? यदि हाँ, तो याद करें  ब्रिटेन की सैली जोन्स उर्फ़ जिहादी ब्राइड और समेंथा लुईस ल्यूथवेट उर्फ़ व्हाइट विडो की। जो पश्चिम के  डिस्कोथेक से सीधे जिहाद के कारखाने में पहुँच गईं । जब ये पंक्तियाँ लिखी जा रही है ठीक उसी समय जिहादी ब्राइड ने ट्वीट्स की श्रृंखला जारी कर ब्रिटेन
वासियों से सिलसिलेवार बम धमाकों का वादा किया है। ट्वीट्स का सार ये है कि घर से बाहर निकलो तो जान हथेली पर रखकर ही निकलना। ये जिहादी ब्राइड कभी एक रॉक बैंड की मुख्य गिटार वादक हुआ करती थी। एक सर्वे के मुताबिक़, ब्रिटेन में सेना में जाने वाले मुस्लिम युवाओं की तुलना में इस्लामिक स्टेट में भर्ती होने वाले मुस्लिम युवकों की संख्या काफी ज्यादा है।

निश्चित रूप से हमारे लिए भी ये आत्मावलोकन का समय है। आखिरकार सत्रह करोड़ मुस्लिम जनसंख्या वाले देश में मुस्लिम युवकों को बगदादी की आतंक फैक्ट्री और आईएसआई की महत्वाकांक्षा का चारा बनने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता। जटिल होती इस समस्या पर सभी को ज़िम्मेदारी के साथ सोचना होगा। लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं होता। बाटला हाउस से संबंध रखने वाला एक आतंकी इस्लामिक स्टेट के ताज़ा वीडियो में भारत को धमका रहा है। बाटला हाउस मामले पर सलमान खुर्शीद का बयान था कि बाटला हाउस के आतंकियों पर हुई पुलिस कार्यवाही के बारे में सुनकर   सोनिया जी के आँसू निकल आए वो रात भर सो नहीं सकीं।  सोनिया गाँधी ने कभी इस बात का खंडन नहीं किया। अब लादेन को ‘ओसामा जी’ संबोधित करने वाले दिग्विजय सिंह ने इस कार्यवाही को एक बार फिर गलत कहा है। सकुचाई कांग्रेस इस बयान से किनारा कर रही है। अरविंद केजरीवाल ने तो बकायदा बाटला मामले का जिक्र करते हुए मुस्लिमों के नाम पत्र लिख डाला था।सारी दुनिया का सरदर्द बन चुकी इस समस्या से इस तरह नहीं निपटा जा सकता। देश के अमन-चैन और सुरक्षा से जुड़े मामलों पर स्पष्टता और ईमानदारी की आवश्यक्ता है। ज़रुरत है कि जो नहीं समझते उन्हें समझाया जाए और जो सब समझते हुए अनजान बन रहे हैं उनका पर्दाफ़ाश किया जाए।

 

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