विसंके जयपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि भारत वैदिक दर्शन का देश है, तर्कपूर्ण योग्य बातों को यहाँ का समाज मानता आया है। किन्तु कालांतर में बाहर के आक्रमणकारियों के आने के साथ कुछ रूढ़ियाँ, पाखण्ड और दोष इसमें जुड़ते गए। स्वामी श्रद्धानंद ने इन अनेक प्रकार की भ्रांतियों से समाज को निकालने का काम किया। वेदों के निर्माण में ऋषिकाओं/विदुशियों के योगदान को सामने लाकर स्वामी श्रद्धानंद ने भारत में महिलाओं का पुनः सम्मान बढ़ाया। सह सरकार्यवाह जी स्वामी श्रद्धानंद जी के 91 वें बलिदान दिवस के अवसर पर आर्य केंद्रीय सभा, दिल्ली के तत्वाधान में “अन्धविश्वास मिटाओ देश बचाओ” के ध्येय को लेकर आयोजित समारोह में मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे।
डॉ. कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि जो वैदिक मन्त्र को अनुभूत करता था, वैदिक मन्त्र का दाता हो जाता था वह ऋषि हो जाता था। जाति, वर्ण, महत्वपूर्ण नहीं थे। वैदिक ऋषियों में अनेक ऋषि शूद्र वर्ण से भी थे, जिन्होंने अपनी साधना से ऋषि पद पाया था। लेकिन कालांतर में कुछ लोगों के लिए वेदों का अध्ययन प्रतिबंधित हो गया। महर्षि दयानंद, महर्षि श्रद्धानंद ने प्रयत्न करके वैदिक परंपरा में श्रद्धा रखने वाले सभी वर्गों को वैदिक मन्त्रों को बोलने, वादिक कर्म करने की अनुमति दी। स्वामी श्रद्धानंद स्वयं वैदिक छात्रावासों में ऐसे वर्गों के बालकों को लेकर आये, जिन्हें शूद्र कहा जाता था और वे सभी बालक आर्य हो गए। एक नया संस्कार, नई प्रथा व नया प्रकाश देने का यह कार्य स्वामी श्रद्धानंद ने किया।
उन्होंने कहा कि आक्रमणकारियों के लम्बे शासन के कारण इस देश में तलवार के बल पर लाखों लाख लोग जबरदस्ती हिन्दू धर्म से दूर ले जाए गए। हिन्दू धर्म में वापसी करने वाले और वापसी करवाने वाले दोनों के लिए मृत्यु दंड का नियम था। स्वामी श्रद्धानंद ने इस नियम को तोड़ते हुए पूर्वजों के स्वधर्म में वापसी के लिए सैकड़ों स्थानों पर शुद्धिकरण यज्ञ करवाए। जो हिन्दू अज्ञानवश, भय अथवा किसी लोभ के कारण धर्मान्तरित हो गए थे, ऐसे लाखों धर्मान्तरित लोग शुद्धिकरण के इन यज्ञों से पुनः सनातन धर्म में वापस आने लगे। यह एक युगांतकारी परिवर्तन था। धर्म में वापसी के मार्ग में खड़ी रूढ़ियों की दीवारें स्वामी श्रद्धानंद के प्रयास से टूट गयीं। शुद्धिकरण के उनके तर्कपूर्ण व धर्म पर चर्चा करने के अभियानों से भयभीत होकर कुछ लोगों ने उनकी हत्या कर दी।
डॉ. कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि अंग्रेजों द्वारा थोपी गयी शिक्षा पद्धति के कारण अपनी जड़ों से कटे सभी जाति के बच्चों के लिए सरकार से कोई अनुमति, कोई धन राशि लिए बिना, हजारों शिक्षण संस्थाएं स्थापित करने का बड़ा दायित्व स्वामी श्रद्धानंद ने लिया। गुरुकुल कांगड़ी उसमें से एक है, सारे देश में दयानंद एंग्लो वैदिक विद्यालय खोलने का काम प्रारंभ किया। स्वामी श्रद्धानंद ने वर्तमान की लौकिक शिक्षा और पूर्वजों की महान परंपरा की शिक्षा को सभी जाति के विद्यार्थियों के लिए इन शिक्षण संस्थानों में प्रचलित किया। स्वामी श्रद्धानद के मार्ग पर चलते हुए जो योग्य विचार और कार्य है, उसको हम करते रहेंगे। इस अवसर पर मेघालय के राज्यपाल गंगा प्रसाद जी, महाशय धर्मपाल जी, डॉ. सतपाल सिंह जी, डॉ. विद्यालंकार जी, मोनिका अरोड़ा जी, कीर्ति शर्मा जी सहित हजारों की संख्या में नागरिक उपस्थित थे।