जयपुर (विसंके)। हम अपनी मात्र भाषा की पहचान खो रहे हैं। देश से अंग्रेज तो चले गए, लेकिन अंग्रेजियत छोड़ गए। अंग्रेजी भाषा का लोगों पर हव्वा हावी है। हमें अपनी भाषा पर स्वाभिमान होना चाहिए, लेकिन हम इसे सीखने में शर्म महसूस करते हैं। अगर कोई अंग्रेजी नहीं जानता तो उसे गंवार व अनपढ़ समझा जाता है। आज भारत में सबकुछ पढ़ाया जा रहा है, सिवाय भारत के। ये विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सह सरकार्यवाह डॉ. मनमोहन वैद्य जी ने उत्तराखंड के देहरादून स्थित ग्राफिक एरा हिल विश्वविद्यालय में ‘राष्ट्र निर्माण एवं पत्रकारिता के सरोकार’ विषय पर पत्रकारिता एवं संचार के छात्रों के समक्ष व्यक्त किए। मनमोहन वैद्य जी ने कहा कि 91 फीसदी देशों में अपनी भाषा में ही पढ़ाई होती है और काम भी। वह देश किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं। अंग्रेजी या कोई भी दूसरी भाषा का ज्ञान अर्जित करना गलत नहीं है, लेकिन हमें अपनी भाषा अच्छी तरह आनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अध्यात्म भारत के चिंतन का आधार है, जो भारत को दुनिया में विशेष बनाता है। देश की अनेक विविधताओं को जोड़ने वाले तत्व भी अध्यात्म है। मतलब, हम सभी में एक ही तत्व विद्यमान है, हम सभी एक ही ईश्वर के अंश हैं। इसी कारण हम अनेकता में एकता को आसानी से स्वीकार कर लेते हैं। सदियों से संपूर्ण राष्ट्र एक है और यह हमारे दृष्टिकोण पर आधारित है। उन्होंने आगे कहा कि कुछ लोग सवाल उठाते हैं कि पिछले कुछ सालों से अभिव्यक्ति की आजादी नहीं रही। जबकि, यह गलत है और यह आजादी पहले की तरह है। मीडिया जनसंवाद का माध्यम है। पत्रकारों को समाज में हो रहे अच्छे कार्यों को लोगों तक पहुंचाना चाहिए। लेकिन, लूट, हत्या, दुष्कर्म जैसी घटनाओं को ही प्राथमिकता दी जाती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव राव बलीराम हेडगेवार के जीवन पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि संघ का उद्देश्य पहले भी और अब भी समाज को जोड़ना है। हमारा उद्देश्य शाखा में जाना है। बल्कि हमें समाज के लिए काम करना है। संघ से जुड़ने के लिए वेबसाइट पर व्यवस्था की है। हर साल इस माध्यम से 1.25 लाख लोग आ रहे हैं।