एक भारतीय आत्मा माखनलाल चतुर्वेदी – 4 अप्रैल जन्म-दिवस

एक भारतीय आत्मा माखनलाल चतुर्वेदी – 4 अप्रैल जन्म-दिवस

एक भारतीय आत्मा माखनलाल चतुर्वेदी - 4 अप्रैल जन्म-दिवस

एक भारतीय आत्मा माखनलाल चतुर्वेदी 

श्री माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अपै्रल, 1889 को ग्राम बाबई, जिला होशंगाबाद, मध्य प्रदेश में श्री नन्दलाल एवं श्रीमती सुन्दराबाई के घर में हुआ था। उन पर अपनी माँ और घर के वैष्णव वातावरण का बहुत असर था। वे बहुत बुद्धिमान भी थे। एक बार सुनने पर ही कोई पाठ उन्हें याद हो जाता था। चैदह वर्ष की अवस्था में उनका विवाह हो गया। इस समय तक वे ‘एक भारतीय आत्मा’ के नाम से कविताएँ व नाटक लिखने लगे थे।

1906 में कांग्रेस के कोलकाता में सम्पन्न हुए अधिवेशन में माखनलाल जी ने पहली बार लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के दर्शन किये। अपने तरुण साथियों के साथ उनकी सुरक्षा करते हुए वे प्रयाग तक गये। तिलक जी के माध्यम से वे क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में आये। महाराष्ट्र के क्रान्तिवीर सखाराम गणेश देउस्कर से दीक्षा लेकर उन्होंने अपने रक्त से प्रतिज्ञा पत्र पर हस्ताक्षर किये। फिर उन्होंने पिस्तौल चलाना भी सीखा।

इसके बाद उनका रुझान पत्रकारिता की ओर हो गया। उन्होंने अनेक हिन्दी और मराठी के पत्रों में सम्पादन एवं लेखन का कार्य किया। इनमें कर्मवीर, प्रभा और गणेशशंकर विद्यार्थी द्वारा कानपुर से प्रकाशित समाचार पत्र प्रताप प्रमुख हैं। वे श्रीगोपाल, भारत सन्तान, भारतीय, पशुपति, एक विद्यार्थी, एक भारतीय आत्मा आदि अनेक नामों से लिखते थे। खंडवा से उन्होंने ‘कर्मवीर’ साप्ताहिक निकाला, जिसकी अपनी धाक थी।

1915 में उनकी पत्नी का देहान्त हो गया। मित्रों एवं रिश्तेदारों के आग्रह पर भी उन्होंने पुनर्विवाह नहीं किया। अब वे सक्रिय रूप से राजनीति में कूद पड़े और गान्धी जी के भक्त बन गये। गांधी जी द्वारा 1920, 1930 और 1940 में किये गये तीन बड़े आन्दोलनों में माखनलाल जी पूरी तरह उनके साथ रहे।

गांधी जी के अतिरिक्त उन पर स्वामी रामतीर्थ, विवेकानन्द, रामकृष्ण परमहंस आदि सामाजिक व आध्यात्मिक महापुरुषों का बहुत प्रभाव था। उनके ग्रन्थालय में अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, धर्मशास्त्र, दर्शन, मनोविज्ञान आदि अनेक विषयों की पुस्तकों की भरमार थी। खंडवा (मध्य प्रदेश) में रहकर उन्होंने अपनी पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से समाजसेवा का आलोक चहुँदिश फैलाया।

माखनलाल जी को सन्तों की कविताएँ बहुत पसन्द थीं। निमाड़ के सन्त सिंगाजी से लेकर निर्गुण और सगुण सभी तरह के भक्त कवियों और सूफियों की रचनाएँ उन्हें प्रिय थीं। वे पृथ्वी को अपनी माता और आकाश को अपने घर की छत मानते थे। विन्ध्याचल की पर्वतशृंखलाएँ एवं नर्मदा का प्रवाह उनके मन में काव्य की उमंग जगा देता था। इसलिए उनके साहित्य में बार-बार पर्वत, जंगल, नदी, वर्षा जैसे प्राकृतिक दृश्य दिखायी देते हैं।

माखनलाल जी के साहित्य में देशप्रेम की भावना की सुगन्ध भी भरपूर मात्रा में दिखायी देती है। ‘एक फूल की चाह’ उनकी प्रसिद्ध कविता है –

मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर देना तुम फंेक।
मातृभूमि हित शीश चढ़ाने, जिस पथ जायें वीर अनेेक।।

गांधी जी के अनन्य भक्त होने के कारण उन पर माखनलाल जी ने बहुत सी कविताएँ एवं निबन्ध लिखे हैं। लोकमान्य तिलक एवं जवाहरलाल नेहरु पर भी उन्होंने प्रचुर साहित्य की रचना की है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत में उन्हें राष्ट्रकवि एवं पद्मभूषण के सम्मान से विभूषित किया गया।

माखनलाल चतुर्वेदी ने हिन्दी साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में नये प्रतिमान स्थापित किये। 30 जनवरी, 1968 को उनका देहान्त हुआ।

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

one + 1 =