जयपुर (विसंकें)। गांधी स्मृति और दर्शन समिति, राजघाट नई दिल्ली में देशभर के विद्यालयों व महाविद्यालयों द्वारा शिक्षा में नवाचारों व अभिनव प्रयोगों की तीन दिवसीय प्रदर्शनी के उद्घाटन शुक्रवार 6 अप्रैल को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत द्वारा किया गया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि भारत में जो भारतीय शिक्षा प्रणाली चल रही थी उसको आक्रमणकारियों ने विजयी होने पर ध्वस्त कर दिया और जो शिक्षा लादी गयी वो हमारे देश की शिक्षा की आवश्यकता पूरी करने वाली नहीं है इसका अनुभव सबने किया है। शिक्षा केवल व्यवस्थागत नीति का प्रश्न नहीं है, समाज का मन भी इस ओर बनना चाहिए। नीति और समाज को लक्ष्य करके अनेक प्रयोगों को सतत चलने की आवश्यकता है। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा भी ऐसे सारे प्रयोग होते हैं साठ एक प्रयोगों का प्रत्यक्ष प्रदर्शन यहां प्रदर्शनी में है। यह प्रयोगधर्मिता उम्मीद खोये बिना चलती रहनी चाहिए क्योंकि आखिर इसी के बलबूते कल चलके जनमानस बनेगा। जनमानस बनेगा तो नीति में परिवर्तन अवश्य आएगा। डॉ. भागवत ने बताया कि शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने ऐसे सभी प्रयोगों को एकत्रित करने का बीड़ा उठाया है। प्रयोगधर्मिता लेकर काम करने वाले शक्तियां परस्पर पूरक बनकर चलें। भारतीय शिक्षा का , व्यवस्थित, सार्थक और सर्वसुलभ उत्तम रूप विश्व के सामने उदाहरण बन सके ऐसा अपने देश में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास का प्रयास चल रहा है। हम सभी को अपनी शक्ति और सामर्थ्य के अनुसार अपने स्तर पर करने की भी आवश्यकता है।उन्होंने कहा कि मनुष्य को मनुष्य बनाने वाली शिक्षा जब तक नहीं मिलती तब तक मनुष्य, मनुष्य होकर भी मानव से दानव बन सकता है , लेकिन नर करणी करे तो नर का नारायण भी बन सकता है। यह दिशा चुनने का विवेक उसको शिक्षा देती है। ऐसी शिक्षा सबको प्राप्त हो , ऐसी शिक्षा में ज्ञान वृद्धि भी हो कर्म करने की क्षमता भी बने। नई-नई आधुनिकतम तकनीक का ज्ञान प्रदान करने के प्रयोगों के साथ-साथ सबको शिक्षा मिले। शिक्षा के साथ-साथ मनुष्य मनुष्य बने , सुसंस्कृत बने इसकी व्यवस्था करने वाले भी अनेक प्रयोगों का यहां प्रदर्शन हो रहा है। प्रदर्शनी के उद्घाटन के अवसर पर केंद्रीय संस्कृति राज्य मंत्री डॉ. महेश शर्मा, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के राष्ट्रीय सचिव श्री अतुल कोठारी, श्री दीनानाथ बत्रा उपस्थित थे।
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Harish says:Good. Jeevan charitra of Shiva ji
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