‘‘परमाणु’’ जैसी फिल्म बनाने वाले निर्माता को हमारा सेल्यूट। किसी भी देश का इतिहास विदेशी आक्रान्ताओं का नहीं, बल्कि निवासियों की सभ्यता-सांस्कृति और आध्यात्मिक यात्रा का होता है। अपने देश के प्रति प्रेम और समर्पण का होता है। इसी क्रम में फिल्म ‘‘पोखरण’’ बनायी गयी है। भारत में नवराष्ट्रवाद का उदय। अपने शौर्य पुरूषों के पराक्रम का वास्तविक चित्रण।
वर्ष 1998 में भारत में अटल बिहारी वाजपेयी की अस्थिर सी सरकार होने के बाद भी निर्णय किया जाता है कि, परमाणु ऊर्जा के विकास और शोध के लिये कुछ परमाणु विस्फोट करने की आवश्यकता है।
पहले तो देश के अपने भीतर की राजनैतिक अस्थिरता। फिर अन्तराष्ट्रीय महाशक्तियों का राजनैतिक दबाव। इन सब विषम परिस्थितियों के बीच राष्ट्र के परमाणु विकास के लिये जोखिम भरा निर्णय।
आज से लगभग 20 वर्ष पहले अनेको प्रतिभाशाली वैज्ञानिकों और डॉ. अब्दुल कलाम के प्रयासों से भारत परमाणु शक्ति की दिशा में आगे बढ सका। कुल छः परमाणु विस्फोट किये गये। जिससे परमाणु ऊर्जा के व्यापक उपयोग का मार्ग प्रशस्त हुआ।
दिल्ली के सत्ता के गलियारों से लेकर पोखरण रेंज तक विदेशी शक्तियों और जासूसों का जाल। आकाश में घूमते अमरीकी जासूस उपग्रह, जो कि जमीन पर खड़ी एक गाडी की नम्बर प्लेट भी पढ़ सकते है। इन सबकी पैनी दृष्टि के बाद भी पूरे मिशन को सफलतापूर्वक गोपनीय बनाये रखना। फिर परमाणु विस्फोट। रूचिकर बात यह है कि परीक्षण हो जाने के बाद भी दुनियाँ को भनक भी नहीं लगी और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की घोषणा के बाद ही महाशक्तियों सहित सारे विश्व को पता चला। फिर भारत पर कुछ अन्तराष्ट्रीय प्रतिबन्ध लगाये गये, जिन्हें बाद में हटा लिया गया।
किसी फिल्म के अच्छे या बुरे होने को केवल उसकी बाक्स ऑफिस सफलता से नहीं आँका जा सकता है। फिल्म पोखरण के निर्माता जॉन अब्राहम है, जिन्होंने मुख्य पात्र की भूमिका भी निभाई है। निर्देशक पटकथा लेखक अभिषेक शर्मा है।
हालांकि फिल्म की कहानी में कुछ सिनेमैटिक लिबर्टी ली गयी है। फिर भी यह एक ऐतिहासिक दस्तावेज जैसी ही है। कहानी में नायक जॉन अब्राहम प्रतिभाशाली, कुछ कर गुजरने की इच्छा रखने वाला सरकारी अफसर है। किन्तु अक्षम राजनैतिक नेतृत्व के कारण जंक लगा सरकारी ढांचा उत्साहविहीन और दिग्भ्रमित है। किन्तु योग्य राजनैतिक नेतृत्व उन्हीं कर्मचारियों का प्रयोग करके सफल परिणाम ले आता है। बीच-बीच में राजस्थानी जीवन और संगीत का भी प्रदर्शन है, जो अच्छा लगता है।
नायक के पारिवारिक जीवन की अस्थिरता भी चुनौती बनकर उभरती है। यह परिस्थिति कहानी में और गोपनीय मिशन पर कार्य करते हुये नायक के जीवन में जटिलता और उत्तेजना भर देती है।
मुख्य पात्र जॉन अब्राहम, डायना पेन्टी, बोमन इरानी, आदित्य हितकारी और अभिराय सिंह है। गीत भी निर्देशक अभिषेक शर्मा के है। फिल्म के कुछ संवाद प्रभावशाली है।
वास्तविकता लाने के लिए प्रधान मंत्री वाजपेयी, पाकिस्तान के प्रधान मंत्री नवाज शरीफ और अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के प्रेस वार्ता के वास्तविक फूटेज दिखाये गये हैं। परिपक्व होता भारतीय सिनेमा अब नायक-नायिका की प्रेम कहानी और पेड़ो-बगीचों के बीच नाचने-गाने को बहुत पीछे छोड़ चुका है।
फिल्म पहले सप्ताह में करीब 35 करोड का कारोबार कर लेगी। भारत ने परमाणु विस्फोट कैसे किया उस घटना चक्र के भीतर की कहानी। सक्षम राजनैतिक नेतृत्व, समर्पित वैज्ञानिक और पराक्रमी सेना के सम्मिलित प्रयासों से इस घटना को अन्जाम दिया गया। पूरी तरह सत्य घटनाओं पर आधारित फिल्म है। एक गंभीर फिल्म, फिर भी मनोरंजक । युवाओं को यह फिल्म देखनी चाहिए। यकीन मानिये पूरी फिल्म के दौरान आपको पॉपकार्न और कोल्ड ड्रिंक की एक बार भी याद नहीं आयेगी।
– मनु त्रिपाठी