ध्येय साधना अमर रहे… दिवंगत संघ प्रचारक धनप्रकाश को दी श्रद्धांजलि

जयपुर । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दिवंगत वरिष्ठतम प्रचारक धनप्रकाश की श्रद्धांजलि सभा रविवार को आदर्श विद्या मंदिर अंबाबाड़ी में आयोजित हुई। अपराहन 3 बजे शुरु हुई श्रद्धांजलि सभा में समाज जीवन से जुड़े अनेकों लोगों समेत प्रबुद्ध लोगों ने दिवंगत धनप्रकाश के चित्र पर पुष्पांजलि देकर श्रद्धा सुमन अर्पित किए।

उनके जीवन प्रसंग बताते हुए संघ के अखिल भारतीय गौ सेवा प्रमुख शंकरलाल ने कहा कि धनप्रकाश जी वर्ष 1943 में संघ के प्रचारक बने थे, उसके बाद वे समाज जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करते हुए स्वयंसेवकों के आदर्श बनें। आपातकाल के दौरान भी धनप्रकाश स्वयंसेवकों को जागरूक करने तथा सूचनाएं पहुंचाने का काम किया। वे ऐसे पहले स्वयंसेवक थे जिन्होंने सर्वाधिक प्रचारक जीवन व्यतीत किया। वे कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी उत्कृष्ट कार्य करते हुए स्वयंसेवकों को प्रेरणा देते रहते थे।

श्रद्धांजलि सभा में सेवा भारती विद्यालय की विमला देवी, भारतीय मजदूर संघ तथा संघ के कई वरिष्ठ कार्यकर्ताओं ने दिवंगत धनप्रकाश के साथ किए संघ कार्य के दौरान के अनुभवों को साझा किया। श्रद्धांजलि सभा में संघ के सह क्षेत्र प्रचारक निंबाराम ने ध्येय साधना अमर रहे गीत गायन कराया। इस दौरान संघ के क्षेत्र कार्यवाह हनुमान सिंह, क्षेत्र प्रचारक दुर्गादास, प्रांत प्रचारक डॉ. शैलेंद्र, शिवप्रसाद समेत बडी संख्या में प्रबुद्धजन व जनप्रतिनिधि उपस्थित रहे। मंच संचालन भारतीय मजदूर संघ के प्रदेश महामंत्री दीनानाथ रुंथला ने किया।

सरकार्यवाह भैयाजी जोशी को तपाक से दिया उत्तर

संघ के राजस्थान क्षेत्र संघचालक डॉ. रमेश अग्रवाल ने कहा कि धनप्रकाश की उम्र 100 वर्ष पूरे होने पर अजमेर में सरकार्यवाह भैयाजी जोशी ने उनका अभिनंदन करते हुए कहा कि धनप्रकाश जी मेरी 100 वर्ष की उम्र होने पर आप मुझे आशीर्वाद दें। यह सुनकर धनप्रकाश में तपाक से उत्तर दिया कि भगवान के घर से आने जाने का किराया कौन देगा।

एक बार तत्कालीन सरसंघचालक बाला साहब देवरस एक बैठक के दौरान परिचय कर रहे थे कि उस दौरान धनप्रकाश त्यागी ने अपना परिचय दिया। तब सरसंघचालक देवरस जी ने कहा कि प्रचारक और धन का तो कोई तालमेल ही नहीं है। इसके बाद धनप्रकाश जी ने उत्तर दिया कि नाम तो धनप्रकाश हूं, लेकिन त्यागी भी हूं। यह सब सुनते ही बैठक में मौजूद स्वयंसेवकों के ठहाके गूंज उठे। वे स्वयंसेवकों के आदर्श प्रेरणा पुंज थे।

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

one × three =