राष्ट्र की सनातन पहचान से परहेज कैसा?
हिन्दुस्थान में हिन्दुत्व का विरोध हो, तो हिन्दुस्थानियों के लिए इससे दुर्भाग्यपूर्ण और क्या हो सकता है? इसके लिए वर्तमान राजनीतिक वातावरण जिम्मेदार है और इस वातावरण को बनाया है उन लोगों ने जिन्हें राष्ट्र और समाज की भारतीय अवधारणा से कुछ भी लेना-देना नहीं है. इस प्रकार के दलों, संगठनों और संस्थाओं के अज्ञान और सीमित मानसिकता ने हिन्दुत्व की विशालता को टुकड़ों में बांटकर रख दिया है. परिणामस्वरूप ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ और ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ जैसे उच्च मानवतावादी विचारों से परिपूर्ण हिन्दुत्व को राजनीतिक गलियारों में अपनी परिभाषा खोजनी पड़ रही है.
आज भारत में जितने भी जातीय, मजहबी और क्षेत्रीय झगड़े दिखाई दे रहे हैं वे सभी हिन्दुत्व अर्थात् भारतीयता की ढीली पड़ रही पकड़ के कारण ही हैं. इसलिए जाति, मजहब और क्षेत्र पर आधारित राजनीतिक दल ही हिन्दुत्व के व्यापक दृष्टिकोण से दूर भागते हैं. लॉर्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति, साम्यवाद की धर्मविहीन विचारधारा और पश्चिम की भौतिकतावादी चकाचौंध से भरी हुई संस्कृति हावी होती दिख रही है.
यही वजह है कि 11 सितम्बर 1995 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक फैसले में हिन्दुत्व को भारतीय उपमहाद्वीप की जीवनशैली, सर्वकल्याणकारी जीवनदर्शन और भारत की पहचान को स्वीकार करते हुए इसे मजहब से पूर्णतया भिन्न बताया तो अनेक राजनीतिक दलों और संगठनों ने न्यायालय के फैसले को ही कटघरे में खड़ा कर दिया.
विश्व और भारत के अधिकांश विद्वानों ने इस सच्चाई को स्वीकार किया है कि हिन्दुत्व भारतभूमि का जीवनदर्शन है, इस देश की राष्ट्रीयता है और मानव के समग्र विकास की गारंटी है. चिरंतन काल से चली आ रही इस चिंतनधारा ने अनेक प्रकार के व्यवधानों और संकटों के समक्ष भारतीय समाज को न केवल एकजुट बनाए रखा, अपितु विदशी शक्तियों को उखाड़ फैंकने के लिए निरंतर संघर्षशील भी बनाया.
हिन्दुत्व सभी भारतीयों का प्राण तत्व है और यह तब से है जब भारत तो क्या समस्त मानवता पंथिक वर्गों में विभाजित नहीं थी. भारतभूमि पर विकसित हुआ यह विचारतत्व समस्त मानवता के विकास के लिए है. इसी वैचारिक धारा को कालांतर में हिन्दुत्व कहा गया.
अतः हिन्दुत्व का सम्बन्ध न केवल हिन्दुओं से है अपितु मुसलमान, ईसाई, यहूदी और भारत में उत्पन्न बौद्ध, जैन, सिख, शैव, वैष्णव और लिंगायत इत्यादि सैकड़ों पंथों से है. यह सभी सम्प्रदाय अपनी भिन्न उपासना पद्धतियों के साथ विशाल हिन्दुत्व की ही अभिव्यक्तियां हैं. लिहाजा जो भी भारत को अपनी मातृभूमि, पितृभूमि और पुण्यभूमि मानता है वह किसी भी पूजा पद्धति को मानता हुआ भी हिन्दुत्वगामी है, हिन्दू है.
हिन्दुत्व का सम्बन्ध धर्म से है, सम्प्रदाय से नहीं. हिन्दुत्व का सम्बन्ध संस्कृति से सभ्यता से नहीं और हिन्दुत्व का सम्बन्ध राष्ट्र से राज्य से नहीं. राष्ट्र एक सांस्कृतिक अवधारणा है, जबकि राज्य एक राजनीतिक इकाई है. भारत एक बहुराज्यीय राष्ट्र है, बहुराष्ट्रीय राज्य नहीं. भारत में हिन्दुत्व एक राष्ट्रीय जीवन प्रणाली का उद्बोधन है, जिसके साथ यहां के मुसलमान और ईसाई भी जुड़े हुए हैं. हिन्दुत्व तो हिन्दू, ईसाई और मुसलमान इत्यादि सभी की संयुक्त सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक विरासत है. हम सभी समान पूर्वजों की संतानें हैं. समान इतिहास, समान संस्कृति, समान पूर्वज और समान धरती होने से सबकी राष्ट्रीयता भी एक ही है. यही हिन्दुत्व है. जब पूजा के तौर-तरीके बदल जाने से पूर्वज नहीं बदलते तो उनकी विरासत यानि राष्ट्रीयता कैसे बदल सकती है? अतः सभी भारतवासी हिन्दू हैं और हिन्दुत्व हमारी राष्ट्रीयता है.
वास्तव में हिन्दुत्व को न समझने की समस्या अथवा मानसिकता धर्म और सम्प्रदाय के घालमेल से उपजी है. धर्म को जब रिलीजन कहा गया तो इसका सम्प्रदाय हो जाना स्वभाविक ही था. इसलिए हिन्दुत्व भी साम्प्रदायिक बना दिया गया. जबकि हिन्दुत्व तो देश के किसी मजहब (रिलीजन) का नाम नहीं, बल्कि एक राष्ट्रवाचक शब्द है जो भारत के भूगोल और संस्कृति का परिचायक है. धर्म जीवन पद्धति का नाम है जबकि मजहब पूजा पद्धति है.
मजहब अथवा सम्प्रदाय के लिए चार बातों को आवश्यक माना गया है. एक- संस्थापक (पैगम्बर), एक पुस्तक, पूजा का एक तरीका और अनुयायियों का एक नाम. जैसे इस्लाम के एक पैगम्बर हैं हजरत मोहम्मद, एक पुस्तक है कुरुआन, एक पूजा पद्धति है नमाज और अनुयाइयों का एक नाम है मुसलमान. ईसाईयों के एक संस्थापक हैं ईसा मसीह, एक पुस्तक है बाइबल, एक पूजा का मार्ग है चर्च और अनुयाइयों का एक नाम है ईसाई. पारसियों के एक संस्थापक हैं जरथ्रुस्ट, एक पुस्तक है जेंदाअवेस्ता, पूजा का एक तरीका है अग्निपूजा, और अनुयाइयों का एक नाम है पारसी.
हिन्दुत्व का कोई एक संस्थापक या पैगम्बर नहीं हैं. समय-समय पर अवतारी पुरुषों, महर्षियों और राष्ट्रीय नेताओं ने हिन्दुत्व के आदर्शों और सिद्धान्तों को विकसित किया और युगानुकूल इनकी भिन्न मार्गों एवं ग्रंथों के माध्यम से व्याख्या की. हिन्दुत्व को किसी ने शुरु नहीं किया, बनाया नहीं और न ही किसी ने इसका आविष्कार किया. हिन्दुत्व तो अनादिकाल से विकसित होती चली आ रही जीवन पद्धति है, जिसे भारत में राष्ट्रीय चिंतनधारा कहते हैं. हिन्दुओं का कोई एक ग्रंथ भी नहीं है. हजारों पुस्तकें हैं जो समय की आवश्यकतानुसार समाज के नैतिक शिक्षण के लिए तैयार की गईं. बौद्ध, जैन, सिख, शैव और वैष्णव इत्यादि जो भिन्न-भिन्न सम्प्रदाय दिखाई देते हैं, वह सब राष्ट्र और समाज की आवश्यकतानुसार अस्तित्व में आए हैं.
पूजा के हजारों मार्ग भारतभूमि पर विकसित हुए हैं. हिन्दुत्व में आस्था रखने वाले लोग अपने स्वभाव, रुचि एवं आवश्यकतानुसार अपनी पूजा पद्धति चुनने को स्वतंत्र हैं. किसी को भी किसी विशेष उपासना पद्धति के साथ बांधा नहीं जाता. हिन्दुत्व के अनुयाइयों का कोई एक विशेष नाम भी नहीं है. हमारे सैकड़ों हजारों पंथों/मतों के नाम ही हिन्दुत्व का सम्बोधन हैं.
जिस तरह राष्ट्रीय नदी पवित्र गंगा के विशाल प्रवाह को गंगा, गंगोत्री, जान्ह्वी, भागीरथी, हुगली इत्यादि कई नामों से पुकारा जाता है परन्तु सनातन प्रवाह एक ही है. इसी तरह भारत में हिन्दुत्व के राष्ट्रीय प्रवाह को भी जैन, बुद्ध, सिख इत्यादि अनेक नामों से पुकारा जाता है. हिन्दू तत्वज्ञान के सिद्धान्त और व्यवहार समस्त मानवता को धर्म की मर्यादा में रहने के मार्ग दिखाते हैं. महर्षि पतंजलि ने धर्म की व्याख्या करते हुए कहा है कि ‘यतोऽभ्युदय निःश्रेयस सिद्धः स धर्मः.’ अर्थात् जिससे भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त हो वही धर्म है. धर्म के लक्ष्णों पर भारतीय ऋषियों ने कहा है कि धृति, क्षमा, कुविचारों का दमन, चोरी न करना,शुद्धता, इंद्रिय निग्रह, धि, विद्या, सत्य और अक्रोध, धर्म के यह दस लक्ष्ण सारी मानवता के लिए हैं.
अतः भारत में जितनी भी राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक समस्याएं हैं उनका एकमात्र समाधान हिन्दुत्व में ही है. राष्ट्रीय अखंडता/ सुरक्षा से लेकर साधारण भारतीय की झोंपड़ी में दो वक्त के भोजन तक की व्यवस्था करने में हिन्दुत्व पूर्णतः सक्षम है. इसे ही अष्टांग योग में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का जीवन दर्शन कहा गया है. यह तत्वज्ञान समस्त मानवता की भलाई के लिए है. समय की जरूरत है कि अनेक राजनीतिक लोगों द्वारा दुष्प्रचार करके आम लोगों के मन-मस्तिष्क में बैठाई गई अनेक प्रकार की हिन्दुत्व विरोधी गलत धाराणाओं को निकाल बाहर किया जाए. राष्ट्र के व्यापक संदर्भ में हिन्दुत्व सभी भारतवासियों को जोड़ने वाली सशक्त कड़ी है.
लेखक – नरेन्द्र सहगल