वक़्त 15 वी शताब्दी दिल्ली के मुग़ल बादशाह ने मेवाड़ चित्तौड़ पर आक्रमण की योजना की और खुद 60000 मुगलो की सेना लेकर मेवाड़ आया।उस वक़्त महाराणा उदय सिंह भी लोहा लेने को तैयार हुए अपने पूर्वज बाप्पा रावल, राणा हमीर, राणा कुम्भा, राणा सांगा के मेवाड़ी वंशज तैयार हुए पर मेवाड़ के तत्कालीन ठाकुरो/उमरावो ने उदय सिंह जी को मेवाड़ हित में कहा की आप न लडे क्यों की आपको कुंभलगढ़ में सेना मजबूत करनी है ।अंत ना मानने पर भी उमरावो ठाकुरो ने उन्हें कुंभलगढ़ भेज दिया और फैसला किया मेड़ता के दूदा जी पोते वीरो के वीर शिरोमणि जयमल मेड़तिया को चित्तोड़ का सेनापति बना भार सोपने का और जयमल के साले जी फत्ता जी चुण्डावत को उनके साथ नियुक्त किया गया।
खबर मिलते ही जयमल जी और उनके भाई बन्धु प्रताप सिंह और दूसरे भाई भतीजे राठौड वीरो की तीर्थ स्थली चित्तोड़ की और निकल पड़े ।निकलते ही अजमेर के आगे मगरा क्षेत्र में उनका सामना हुआ वहा बसने वही आदिवासी जाति के लूटेरो से!!!!!
भारी लाव लश्कर और जनाना के साथ जयमल जी को लूटेरो ने रोक दिया एक लूटरे ने सिटी बजायी देखते ही देखते एक पेड़ तीरो से भर गया सभी समझ चुके थे की वे लूटेरो से घिरे हुए है ।
तभी भाई प्रताप सिंह ने कहा की “अठे या वटे” जयमल जी ने कहा “वटे” तभी जनाना आदि ने सारे गहने कीमति सामान वही छोड़ दिया और आगे चल पड़े लूटेरो की समझ से ये बाहर था कि एक राजपूत सेना जो तलवारो भालो से सुसज्जित है वो बिना किसी विवाद और लडे इतनी आसानी से कैसे छोड़ जा सकते है।अभी जयमल की सेना अपने इष्ट नाथद्वारा में श्रीनाथ जी के दर्शन ही कर रही थी कि तभी लूटेरे फिर आ धमके और सरदार ने जयमल जी से कहा की ये “अटे और वटे” क्या है ????
तब वीर जयमल मेड़तिया ने कहा की यहाँ तुमसे धन के लिए लडे या वहा चित्तौड़ में तुर्को से ?
तभी लूटेरे सरदार की आँखों में आंसू आ गए और उसने जयमल जी के पैेरो में गिर कर माफ़ी मांगी और अपनों टुकड़ी को शामिल करने की बात कही पर जयमल जी ने कहा की तुम लूटपाठ छोड़ यहाँ मुगलो का सामना करो।अतः लूटेरे आधे रास्ते वीरो को छोड़ने आये और फिर लोट गए।
मेड़ता के वीर अब चित्तोड़ में प्रवेश कर गए और किले की प्रजा को सुरक्षित निकालने में जुटे ही थे कि तभी खबर मिली की मुग़ल सेना ने 10 किमी दूर किले के नीचे डेरा जमा दिया है। सभी 9 दरवाजे बंद किये गए 8000 राजपूत वीर वही किले में रहे।
मुगलो ने किले पर आक्रमण किया पर हर बार वो असफल हुये आखिर में मुगलो ने किले की दीवारो के निचे सुरंगे बनाई पर रात में राजपूत फिर उसे भर देते थे ।आखिर में किले के दरवाजो के पास दीवारे तोड़ी पर योद्धा उसे रात में फिर बना देते थे।ये जद्दोजहद 5 माह तक चलती रही पर किले के निचे मुगलो की लाशे बिछती गई।उस वक़्त मजदूरी इंतनी महगी हो गयी की एक बाल्टी मिट्टी लाने पर एक मुग़ल सैनिक को एक सोने का सिक्का दिया गया।वहाँ मिटटी सोने से अधिक महंगी हो गयी थी।
अब अकबर ने जयमल जी के पास अपना दूत भेजकर प्रलोभन दिया कि अगर मेरे अधीनता स्वीकार करे तो जयमल को उसके पुरखों का राज्य मेड़ता सहित पूरे मेवाड़ का भी राजा बना देगा।तब वीरवर सूर्यवंशी राजपूत गौरव राव जयमल राठौड़ मेड़तिया का उत्तर था—–
है गढ़ म्हारो म्है धणी,असुर फ़िर किम आण |
कुंच्यां जे चित्रकोट री दिधी मोहिं दीवाण ||
जयमल लिखे जबाब यूँ सुनिए अकबर शाह |
आण फिरै गढ़ उपरा पडियो धड पातशाह ||
अर्थात अकबर ने कहा जयमल मेड़तिया तू अपने प्राण चित्तोड और महाराणा के लिए क्यों लूटा रहा है ?
तू मेरा कब्ज़ा होने दे में तुझे तेरा मूल प्रदेश मेड़ता और मेवाड़ दोनों का राजा बना दूंगा ।
पर जयमल ने इस बात को नकार कर उत्तर दिया मै अपने स्वामी के साथ विश्वासघात नही कर सकता।
मेरे जीते जी तू अकबर तुर्क यहाँ प्रवेश नही कर सकता मुझे महाराणा यहाँ का सेनापति बनाकर गए है।
“मरण ने मेड़तिया अर राज करण नै जोधा,मरण ने दुदा उर जान(बारात) में उदा”
?जय एकलिंग जी, जय मेवाड़, जय राजपुताना???