जयपुर (विसंकें) , 13 जुलाई , 2019 । जम्मू कश्मीर विचार मंच एवं भारत नीति प्रतिष्ठान के तत्वावधान में कांस्टीट्यूशन क्लब में कश्मीरी पंडितों की घर वापसी के प्रयोजन से ‘‘ रीक्लेमिंग कश्मीर , द सैक्रेड लैंड ’ विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गई ।
प्रसिद्ध विचारक एवं भाजपा प्रवक्ता डॉ. सुधांधु त्रिवेदी ने बताया कि अक्टूबर 1947 में महाराजा हरिसिंह ने विलय के समझौते पर जब हस्ताक्षर किए थे तब इसमें एक भी विशेष प्रावधान नहीं था। कश्मीर को हथियाने के लिए युद्ध पाकिस्तान ने शुरु किया लेकिन हमने जब जीतना शुरु किया तो हमारी जीतती हुई फौज से युद्ध विराम करवा दिया गया , यह विचित्र स्थिति कश्मीर के साथ हुई। युनाइटेड नेशन में इस स्थिति में वो देश जाता है जो छोटा , कमजोर हो और युद्ध हार रहा हो लेकिन यहां हम जीत रहे थे तब भी हम युनाइटेड नेशन में गए , दूसरा आत्मघात हमने यह किया।
उन्होंने बताया कि हमारे ज्ञान विज्ञान के संस्थानों का केन्द्र कश्मीर था। कश्मीरियत , जम्हूरियत और इंसानियत के फार्मूले से कश्मीर समस्या का समाधान निकालना चाहते हैं लेकिन जो कश्मीरियत है उसमें अगर हजरतबल है तो अमरनाथ भी है। अमरनाथ पर हमला करना कश्मीरियत नहीं हो सकती। जम्हूरियत में जो कहते हैं लेकर रहेंगे आजादी बंदूक के बल पर जो जम्हूरियत की बात नहीं है। सुरक्षाबलों के मारे जाने पर जो जश्न मनाते हैं , यह हैवानियत है इंसानियत नहीं। जो वार्ता के लिए आना चाहता है वह कश्मीरित , जम्हूरियत और इंसानियत के साथ आए तो जरूर कश्मीर समस्या का समाधान मिलेगा। लेकिन जहां पर खलीफत , हैवानियत और दहशत की बात होगी तो समाधान नहीं निकल सकता। सभ्यताओं के टकराव से बचाव केवल वही कर सकता है जिसको विविधताओं में सामन्जस्य बिठाना आता हो और वह केवल भारत ही कर सकता है। भारत दुनिया का एकतात्र देश है जिसने दुनिया के किसी देश पर आक्रमण नहीं किया। हम एकमात्र रिलीजन है जो कन्वर्जन में विश्वास नहीं करता। इसलिए हमारे यहां सभ्यताओं का टकराव नहीं है। कश्मीर में शैव मत का बहुत प्रभाव रहा है , बहुत विष पी लिया है भगवान शंकर की तरह , जब पराक्रम दिखाएंगे तो सब आ कर के झुकेंगे।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज के अध्यक्ष डॉ. कपिल कपूर ने कहा कि शस्त्र और शास्त्र दोनों चाहिए , हिन्दू प्रकृति है कि जब हम शक्तिशाली हो जाते हैं तो शत्रुबोध हमारा कम हो जाता है और फिर हमारा शत्रु की तरफ थोड़ा दया वाला भाव बन जाता है। यह एक कमजोरी है जिसके कारण हिन्दुओं ने बहुत बड़ी कीमत चुकाई है। जिन कारणों से आज का कश्मीरी अपनी मूल संस्कृति से कट गया है उसका पहला कारण वहां की वर्तमान शिक्षा है। 1988 के आतंकवाद के भयावह दौर में भी वहां की लड़कियां युनिवर्सिटी में बुरका नहीं पहनती थीं , सांस्कृतिक नृत्य करती थीं यह स्थिति उनकी ग्रंथ आधारित शिक्षा के आने से बदली , उन्होंने कश्मीरी भाषा और संस्कृत को निकाल दिया। ऐसे लोगों को शिक्षक बना दिया जो शिक्षक कम और धर्म परिवर्तक ज्यादा दिखाई देते हैं। कश्मीर के विषय में 1987-88 तक इस समस्या के समाधान के लिए बात भी कर सकते थे लेकिन अब वहां हमारे प्रति इतना द्वेष , वैमनस्य पैदा कर दिया गया है कि अब तो एक बार सशक्त तरीके से पूरे दृढ़ निश्चय के साथ शस्त्र से उनको काबू में करके फिर शास्त्र से उनको बदलना पड़ेगा , यह अभिनव गुप्त का शास्त्र उन्हीं का है जिसकी गुफा उन्होंने बंद कर दी है।
मेजर (से.नि.) गौरव आर्या ने बताया कि कश्मीर की समस्या राजनीतिक नहीं साम्प्रदायिक है। कश्मीर में मुस्लिम धार्मिक संक्रीणता , उन्माद इतना ज्यादा हो गया है कि वहां की पांच 7-8 साल की बच्ची यह कहती मिलती है कि जब वह बड़ी होगी तो अपने बच्चे को जेहाद के लिए भेजेगी। भारतीय सेना उस पांच साल की बच्ची से नहीं लड़ सकती। पाकिस्तान ने एक पूरी पीड़ी को इस तरह से हमारे खिलाफ खड़ा कर दिया है। कश्मीर से पंडितो का पलायन यकायक नहीं हुआ यह पाकिस्तान द्वारा वहां की जनसंख्या को कम्युनल बनाकर हिन्दुओं के प्रति तीव्र नफरत पैदा करने से हुआ। वहां की आतंकी वारदातें बिना स्थानीय मदद के सम्भव नहीं हो सकती। पंजाब में इसी तरह के आतंकवाद को मिलने वाले स्थानीय सहयोग को के.पी.एस गिल ने खत्म किया था। कश्मीर में आतंकवाद को भी इसी सर्जरी से खत्म करना होगा जिसमें थोड़ा दर्द तो होगा जिसके लिए देश को कान बंद करने पड़ेंगे क्योंकि कुछ चीखें तो निकलेंगी ही। एक देश का बंटवारा सिर्फ एक बार होता है और एक देश को आजादी सिर्फ एक बार मिलती है। कश्मीर को भी आजादी 1947 में मिल चुकी है , अब कोई आजादी के लिए जगह नहीं है। कश्मीर में पाकिस्तानी झंडा लहराने वाले अलगाववादियों बातचीत का अब कोई रास्ता नहीं बचा है , उनसे सख्ती से निपटना ही एकमात्र हल है।
डॉ. कुलदीप रत्नू ने बताया कि जब क्रिकेट में भारत हारता है तो कितने ही भारतीय रोने लगते हैं , फिल्म , टीवी सीरियल में किसी पात्र के साथ अन्याय होने पर हम उससे खुद को जुड़ा मानने लगते हैं कि कितना अन्याय हो रहा है उसके साथ , जोकि वास्तविक नहीं केवल एक्टिंग होती है लेकिन हकीकत में जब कश्मीर में हजारों कश्मीरियों को मार के बाहर निकाला गया , हमारे जवान मारे गए तब कितने भारतीयों की आंखों में आंसू आए , कितने भारतीय उनके साथ खड़े हुए ?
जम्मू कश्मीर विचार मंच के अध्यक्ष श्री जवाहर लाल कौल ने कहा कि कश्मीर केवल एक भूभाग नहीं है , कुछ लाख लोगों का समूह नहीं है यह एक संस्कृति है। यह भारतीय सभ्यता का वह अंग है जो उसको ऊर्जा देता है और उसको समकालीन बनाता है , उसे प्रासंगिक बनाता है। अपनी इज्जत , धर्म को बचाने के लिए हम वहां से पलायन कर गए थे इसमें कोई शर्मिंदगी नहीं होनी चाहिए , क्योंकि हम हथियारबंद लोग नहीं थे। हम ज्ञान की बातें करते थे हमने तलवार चलाना नहीं सीखा था , शिक्षा हमारा गहना माना जाता था। इसलिए हमारे यहां विद्वान तो हर जगह पलायन करते रहे हैं। हमको वह सभ्यता संस्कृति को जिंदा रखना है तो अपने इतिहास को याद रखना होगा। क्योंकि जो इतिहास को भूल जाता है , इतिहास उसे भूल जाता है।