अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर बहस चल रही है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के खिलाफ टिप्पणी करने वाले पत्रकार प्रशांत कनौजिया की गिरफ्तारी पर काफी शोर मचाया जा रहा है. वामपंथी गैंग अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नारा देकर प्रदर्शन कर रहे हैं. लेकिन, केरल या अन्य किसी प्रदेश की बात आने पर उनके होंठ सिल जाते हैं.
केरल की वर्तमान सरकार ने अब तक 119 व्यक्तियों पर सोशल मीडिया पर मुख्यमंत्री के खिलाफ आपत्तिजनक लिखने पर केस दर्ज किया है. यह मनगढ़ंत आंकड़ा नहीं है, बल्कि केरल के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने राज्य विधानसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में स्वयं बताया है कि सरकार में आने के बाद से अब तक 119 लोगों पर सोशल मीडिया पर सीएम को लेकर आपत्तिजनक पोस्ट लिखने वालों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए हैं. कुल 150 लोगों के खिलाफ कानूनी या अनुशासनात्मक कार्रवाई चल रही है.
इस मामले में मीडिया के किसी भी धड़े को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में नज़र नहीं आई और न ही कोई हो हल्ला हुआ. सब कुछ ऐसा रहा, जैसे कुछ हुआ ही नहीं. मीडिया गिरोह के किसी भी सदस्य ने बताया कि केरल में आपातकाल आ गया है, वहां सोशल मीडिया पर कुछ भी सत्ता के खिलाफ लिखने पर केस दर्ज़ हो जा रहा है. मीडिया के विशेष धड़े ने इसे चुपचाप गुज़र जाने दिया.
अभी हाल ही में फेसबुक पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के खिलाफ एक वीडियो पोस्ट कर आपत्तिजनक टिप्पणी की गई थी, और पूरा गिरोह शेयर-कमेंट करता पाया गया. द वायर से जुड़े रहे पत्रकार प्रशान्त कन्नौजिया की गिरफ़्तारी हुई तो गिरोह के सदस्य सोशल मीडिया शोर मचाने लगे.
इसमें एक बार फिर से इस पूरे मीडिया गिरोह का दोहरा चेहरा आपके सामने है, जो गालियों और आपत्तिजनक टिप्पणियों पर अभिव्यक्ति के नाम पर पूरी छूट चाहते हैं. वहीं वामपंथियों के गढ़ केरल में या कोलकाता में जब अभिव्यक्ति का गला घोंटा जाता है तो यह बगलें झांकते हैं. छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल के खिलाफ सोशल मीडिया पर अभद्र टिप्पणी करने के आरोप में पुलिस ने ललित यादव को गिरफ्तार किया है. लेकिन इस पर कोई शोर शराबा नहीं है.
हालांकि, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की परिभाषा यह नहीं है कि किसी के भी व्यक्तित्व पर लांछन लगाने या, जब चाहे कीचड़ उछालने की स्वतंत्रता मिली गई है.