स्वतंत्र भारत का पहला आतंकी हिन्दू था और उसका नाम था – नाथूराम गोडसे, यह आकाशवाणी कमल हासन की….
हासन एक चुनावी सभा में 1948 में हुई महात्मा गाँधी की हत्या का सन्दर्भ दे रहे थे…अर्थात् उनके शब्दों में सारी आफत की जड़ हिन्दू ही हैं….आतंकवाद के लिए हिन्दुओं को पहले स्थान पर रखकर उन्होंने एक झटके से उन सबको अलग कर दिया, जिन्होंने असंख्य निर्दोष लोगों की जान लेकर कत्लगाह खड़े किये हुए थे, इस शातिराना एकांगी वक्तव्य के क्या मायने हैं.
गोडसे को उसी दिन गिरफ्तार कर लिया था, जब गांधी की हत्या हुयी थी. 01 नवम्बर 1949 तक सारी जांच प्रक्रिया पूरी हुई और एक हफ्ते के अंदर ही उसे फांसी की सजा दे दी गई. इस प्रकरण की यदि अफजल गुरु वाले मामले से तुलना करें तो यह समझ में आ जाएगा कि एक आतंकी वास्तव में कानूनी प्रक्रिया का किस तरह उपयोग करता है.. अफजल गुरु बहुत देर बाद क़ानून के चंगुल में आता दिखाई पड़ता है, सर्वोच्च न्यायलय द्वारा दोष सिद्ध किये जाने के बावजूद 8 वर्ष बाद और संसद पर हमले के पूरे 15 वर्ष बाद उस पर कानूनी शिकंजा कसता है.. परिस्थितियों के अनुसार ही कई बार क़ानून काम करता है..
गोडसे को जिस तरह उनके कर्म के चलते आतंक का नायक बनाने का दुष्प्रचार चलाया गया, हत्या की एक बड़ी योजना की बात कही गयी, भारत में इस मामले को दुष्प्रचारित करने के समय-समय पर प्रयास हुए. लेकिन दूसरा पक्ष यह भी है कि महात्मा गांधी की मृत्यु के बाद देश में कहीं भी कोई हत्या नहीं हुई. इसलिए हिन्दू आतंकी की अवधारणा वहीं खत्म हो जाती है..यदि आतंक को नाम ही देना है तो उन पैमानों पर उसे उतारना होगा, जहां आतंक मानवता के लिए शर्मसार करने वाली अवधारणा है. आइएसआइएस की पहुँच आज 21 से अधिक देशों तक है, अल कायदा कई देशों से सैन्य संघर्ष कर रहा है और कई महाद्वीपों में उसके पदचिन्ह मिल जाएंगे.. लश्कर दोनों ही समूहों से जुड़ा है और समन्वय का काम करता है.. चाहे 4 दिनों तक मुंबई में जारी आतंकी हमला हो अथवा हाल-फिलहाल का पुलवामा हमला .. जैश को वैश्विक आतंकी मसूद अजहर चलाता है तो आतंकी मामलों में ईसाई समुदाय भी कई जगह सक्रिय दिखाई पड़ता है..
अब फिर उन हिन्दुओं पर नजर डालिये, जिन्हें आप पहला आतंकी कह रहे हैं. देश के पहले आतंकी होने के बावजूद (हासन के अनुसार), हिन्दुओं का कश्मीर से सफाया कर दिया गया है.. यह भी शर्मनाक ही कहा जाएगा कि देश में चल रहे 800 आतंकी सेल का हिस्सा हिन्दू नहीं हैं..और भारत का कोई भी ऐसा आतंक प्रभावित जिला नहीं है जो हिन्दू बाहुल्य हो..
वास्तव में यदि देश ने पहला आतंकी स्वयं को दिया तो क्यों नहीं इसका ज्यादा प्रभाव दिखा…देश ने स्वयं को एक लिखित संविधान दिया है जो विश्व के सामने घोषित करता है कि भारत एक लोकतांत्रिक गणराज्य होगा और अपने नागरिकों को न्याय, समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व को सुदृढ़ करेगा. 26 नवम्बर 1949 को संविधान को स्वीकार कर लिया था और 11 दिन बाद ही 15 नवम्बर 1949 को गोडसे को फांसी दी गई थी.
यह एक प्रकार से कमल हासन द्वारा उठाया गया अतार्किक मामला है, जिसमें उन्होंने जानबूझकर हिन्दू आतंक पर ज्यादा जोर दिया.
हासन के वक्तव्य ने मेरे जैसे व्यक्ति को याद दिला दिया है कि किस तरह एक षड्यंत्र के तहत हिन्दू राष्ट्रवादियों को हमेशा निशाने पर लिया गया. गांधी जी की हत्या के समय उपस्थित स्थितियों-परिस्थितियों और अन्य प्रभावों पर विचार विश्लेषण किये बिना एक ऐसे समन्वयवादी और सर्वसमावेशी समुदाय का नाम लेना दुखद है जो सारे संकटों में भी शांति व समन्वय के साथ आगे बढ़ने में विश्वास करता है और प्रासंगिकता व प्रामाणिकता के साथ खड़ा दिखाई देता है.. सारी सच्चाई को जानने के बावजूद नैतिक शक्ति की कमी के चलते ये लोग ऐसा कहते हैं…
यह सच है कि हिन्दुओं को कई क्षेत्रों में पहले क्रम में होने का गौरव प्राप्त है, लेकिन उस सूची में आतंकवाद नहीं आता और न ही कभी आएगा…
अमन लेखी