उदयपुर । संचार व प्रसार माध्यमों में भारत व भारत के राष्ट्रीय विचारों के संगठनों के विरुद्ध लंबे समय से चलाए जा रहे दुष्प्रचार का तर्कसंगत एवं तथ्यात्मक उत्तर देने तथा यथार्थ को जनमानस में प्रसारित करने के उद्देश्य से विश्व संवाद केंद्र की स्थापना की गई है। यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उत्तर पश्चिम क्षेत्र के सह क्षेत्र प्रचार प्रमुख मनोज कुमार ने शनिवार को उदयपुर में चित्तौड़ प्रांत के विश्व संवाद केंद्र के 21वें स्थापना दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में कही ,साथ ही यही पर पुस्तक ‘युद्ध में अयोध्या’ की समीक्षा भी हुई
उन्होंने बताया कि 13 फरवरी 2000 को उदयपुर में विश्व संवाद केंद्र की स्थापना हुई थी जिसका उद्घाटन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन अखिल भारतीय सह प्रचार प्रमुख सुरेश सोनी ने किया था। ‘आज के वैचारिक युग में विश्व संवाद केंद्र की भूमिका’ विषय पर उन्होंने कहा कि हिंदू विचार एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा अन्य राष्ट्रवादी संगठनों व राष्ट्रीय विचारधारा के विरुद्ध योजनागत षड्यंत्र के तहत दुष्प्रचार किया जाता रहा है। हिंदू दर्शन व जीवन मूल्यों को विकृत ढंग से पेश किया जाता है। संघ व अन्य संगठनों की गलत छवि बनाकर पेश की जाती है। तथ्यों को तोड़मरोड़ कर संदर्भों को काट-छांट कर प्रसारित किया जाता है। इस वजह से समाज भ्रमित होता है। उन्होंने कहा कि विश्व संवाद केंद्र समाज के चिंतन को यथार्थ दृष्टिकोण देने की दिशा में प्रबुद्धजनों व प्रचार प्रसार माध्यमों के बीच सेतु की तरह है। उन्होंने कहा कि आज देश में 38 संवाद केंद्र चल रहे हैं। विश्व संवाद केंद्र किसी भी समाचार के तथ्यों की जड़ तक जाकर उसके वास्तविक तथ्यों को प्रस्तुत करने का प्रयास करता है। उन्होंने कहा कि आज प्रसार माध्यमों में सोशल मीडिया पर फेक न्यूज व अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र को उजागर करने में विश्व संवाद केंद्र की अहम भूमिका है।
इस अवसर पर विश्व संवाद केंद्र प्रभारी कमल प्रकाश रोहिला ने संवाद केंद्र की विभिन्न गतिविधियों की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि संवाद केंद्र द्वारा समाचार संकलन कर मीडिया में प्रसारण, नागरिक पत्रकारिता व सोशल मीडिया के प्रशिक्षण, पत्रकार वार्ता का आयोजन, वैचारिक पत्रिका ‘राष्ट्रीय संवाद’ का प्रकाशन व राष्ट्रीय महत्व के विषयों पर अन्य पुस्तकों के प्रकाशन तथा आद्य संवाददाता देवर्षि नारद जयंती पर पत्रकार सम्मान समारोह आदि कार्यक्रमों का आयोजन करता है।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ चित्तौड़ प्रांत के प्रांत कार्यवाह दीपक शुक्ल ने कहा कि विश्व संवाद केंद्र राष्ट्रीय महत्व के विषयों को सही रूप से जनमानस तक पहुंचाने का एक सशक्त माध्यम है तथा आज के युग में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका है।
पुस्तक ‘युद्ध में अयोध्या’ की समीक्षा भी हुई
विश्व संवाद केंद्र के सरोज कुमार ने बताया कि युद्ध में अयोध्या पुस्तक समकालीन प्रखर पत्रकार हेमंत शर्मा द्वारा लिखित 2019 में प्रभात पेपरबेक्स द्वारा प्रकाशित हुई। इस पुस्तक की वर्तमान प्रासंगिकता इस बात में है कि यह राम जन्मभूमि पर बनने वाले मंदिर अभियान के बीच विवादित ढांचे के ध्वंस से लेकर ध्वंस की कथित राजनीति की आंतरिक बातों पर प्रकाश डालने का प्रयास करती है। प्रथम दृष्टया होने और प्रामाणिक होने का दावा करने वाली इस पुस्तक की शुरुआत ही ध्वंस से होती है। चित्रों की प्रचुरता से एकबारगी तो राम जन्मभूमि आंदोलन की स्मृतियाँ ताजा हो ही जाती है, पर यह पुस्तक कई स्थानों पर काफी अतिरंजित विश्लेषण भी करती प्रतीत होती है। पुस्तक में कुल दस अध्याय हैं और इन सभी में एक पत्रकार की रिपोर्टिंग की छाप दिखती है। यद्यपि, राम भक्ति भी अंतर्निहित प्रतीत होती है। शिलान्यास से ताला खुलने और फिर ढांचा गिराए जाने तक का तो एक रोचक बेबाक उल्लेख अवश्य मिलता है। ‘भए प्रगट कृपाला’ शीर्षक वाले अध्याय में 1949 की घटनाओं को विस्तार से बताया गया है और इस पर हुई राजनीति में राम मंदिर आंदोलन के मूल को भी खोजने की कोशिश की गई है। उस समय के उच्चस्तरीय पत्राचारों का उल्लेख कर हिन्दू भावनाओं के सम्मान की बात भी सामने आई जो बाद में चल कर भारतीय राजनीति में गेमचेंजर साबित हुई। भूमि के नीचे अयोध्या वाले अध्याय में लेखक ने जन्मस्थान पर मंदिर के विविध साक्ष्यों और इस संदर्भ में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्टों को भी सचित्र उल्लेखित किया है। संघर्ष अध्याय में लेखक ने इस लंबे विवाद के न्यायिक प्रकरणों और तदुपरंत जन अधीरता तथा वार्ताओं का भी विस्तार से उल्लेख किया। सरोज कुमार ने कहा कि कुल मिलाकर पुस्तक समकालीन अयोध्या विवाद के कई सवालों का उत्तर ढूंढने का प्रयास करती है। उन्होंने कहा कि संदर्भ सूची और भी विस्तृत हो सकती थी। पुस्तक में कंटेंट से ज्यादा चित्रों को दिया जाना संभवतः किसी भी पाठक को अखर सकता है। पुस्तक एक बौद्धिक नरेटिव की बजाय घटनाओं को ऐतिहासिक संदर्भ में देखने का प्रयास तो है पर इसमें राजनीतिक निहितार्थ को कुछ ज्यादा ही दर्शा दिया गया है