जिंदगी व मौत को सबसे पास से देखने वाले डाक्टर हर दिन एक नई परीक्षा से गुजरते हैं. किंतु आज तो डाक्टर ॠषि के जीवन की सबसे बड़ी परीक्षा थी. 23 नौनिहालों की जिंदगी दांव पर लगी थी. वार्ड में आग लग गई थी व अग्निशामक सिलेंडर की गैस से आग बुझाने की कोशिश भी नाकाम हो चुकी थी. मध्य प्रदेश के छतरपुर जिला अस्पताल के नवजात शिशु गहन चिकित्सा वार्ड के एसी में लगी आग ने सभी नवजात बच्चों का जीवन संकट में डाल दिया था. तब ड्यूटी पर मौजूद संघ के प्रथम वर्ष शिक्षित स्वयंसेवक डाक्टर ऋषि द्विवेदी ने अपनी जान की परवाह न करते हुए अपने साहस व त्वरित बुद्धि से इन मासूमों को आग की भेंट चढ़ने से बचा लिया.
11 जुलाई शाम सात बजे तक छतरपुर के जिला चिकित्सालय में सबकुछ ठीक था. बच्चों के वार्ड से बीच- बीच में शिशु क्रंदन के स्वर भी सुनाई पड़ जाते थे. तभी वार्ड के एसी में आग लग गई. एसी में आग लगने से बिजली चली गई व घुप्प अंधेरा छा गया. इससे पहले कि आग विकराल रूप धारण करती, वहाँ मौजूद चिकित्सा अधिकारी डॉ. ऋषि द्ववेदी ने अग्निशामक सिलेंडर से आग बुझाने के प्रयास शुरू कर दिए. किंतु सिलेंडर की गैस खत्म होने के बाद भी जब आग नहीं बुझी तो वार्ड में दमघोंटू धुंआ फैल गया. ड्यूटी पर तैनात नर्सों संगीता व जया की हिम्मत भी जवाब देने लगी, वे उन्हें अपनी जान बचाकर बाहर निकलने की गुहार लगाने लगीं. किंतु ऋषि के भीतर का स्वयंसेवक इन बच्चों को खतरे में छोड़कर जाने को तैयार नहीं था. शाखा में दोहराए गीत कानों में गूंज रहे थे “जीवन बन तू दीप समान जल-जल कर सर्वस्व मिटा दे बन कर्तव्य प्रधान “. वे नर्सों की मदद से बच्चों को गोद में उठा उठा कर दूसरे वार्ड में शिफ्ट करने लगे, तब तक परिजन भी मदद के लिए आ गए और सभी नवजात सकुशल बाहर निकाल लिए गए.
डाक्टर ॠषि की मानें तो इस कठिन परिस्थिति में जो कुछ वो कर पाए, उस सब में संघ संस्कारों का ही प्रभाव है. वे बताते हैं कि उनके पिता विपिन बिहारी जी महोबा में संघ के जिला बौद्धिक प्रमुख रहे हैं, बड़े भाई रजनीश पाँच वर्ष प्रचारक रहे हैं.