पाकिस्तान की जेलों में बंद 54 युद्धबंदियों की गुनहगार कांग्रेस

1971 में समर्पण करते पाकिस्तानी सैनिक

विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान का अभिनंदन है. वह दुनिया के उन चंद खुशनसीब सैन्य पायलटों में से हैं, जो 48 घंटे के अंदर ही दुश्मन की गिरफ्त से छूटकर स्वदेश लौट रहे हैं. केंद्र सरकार की इस सफलता पर पाकिस्तान के लिए ताली बजाने वाली कांग्रेस क्या जवाब दे सकती है कि 93000 युद्धबंदियों को रिहा करके महान बनने के चक्कर में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भारत के 54 युद्धबंदियों को क्यों नहीं छ़ुड़वाया. आज सैन्य बलों की हिमायती बनने की कोशिश कर रही कांग्रेस को ये भी बताना चाहिए कि उसकी सरकार ने 1965 व 1971 के युद्ध बंदियों को रिहा कराने के लिए क्या किया. सवाल पाकिस्तान की इमरान खान सरकार से भी ….इमरान शांति दूत बन रहे हैं, तो इन युद्धबंदियों को पाकिस्तानी कैद से आजाद करें.

आरटीआई से ये भी पूछा गया कि सरकार युद्धबंदियों की रिहाई के लिए क्या कर रही है. वर्ष 1971 के बाद युद्धबंदियों को छुड़ाया क्यों नहीं जा सका. रक्षा मंत्रालय ने इतना ही जवाब दिया कि सरकार लगातार पाकिस्तान के साथ मुद्दे को उठाती रही है, लेकिन वह युद्धबंदियों की मौजूदगी को स्वीकार नहीं कर रहा. रक्षा मंत्रालय ने बताया कि 2007 में युद्धबंदियों के रिश्तेदारों को पाकिस्तान की जेलों में ले जाया गया. लेकिन इस दौरे से भी सुनिश्चित नहीं हो सका कि पाकिस्तानी जेलों में भारतीय युद्धबंदी कहां हैं. इसी आरटीआई के जवाब में विदेश मंत्रालय ने बताया कि पाकिस्तान की जेलों में 1965 युद्ध के छह बंदी हैं. लेफ्टिनेंट वीके आजाद, गनर मदन मोहन, गनर सुज्जन सिंह, फ्लाइट लेफ्टिनेंट बाबुल गुहा, फ्लाइंग अफसर तेजिंदर सिंह सेठी और स्क्वाड्रन लीडर देव प्रसाद चटर्जी के पाकिस्तान की जेल में होने की जानकारी कांग्रेस को 1965 से ही है. ताशकंद समझौते के समय तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद कांग्रेस ने इन जांबाजों को पाकिस्तान की जेल में सड़ने के लिए छोड़ दिया. विदेश मंत्रालय के मुताबिक 1971 युद्ध के 48 युद्धबंदी वहां की जेलों में हैं. रक्षा मंत्रालय के अनुसार, इस मामले को देखने के लिए तीन सेवा समितियां बनाई गई हैं. लेकिन ये समितियां कभी किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचीं.

विंग कमांडर अभिनंदन को लेकर शोर मचा रही कांग्रेस की घातक भूलों का नतीजा है कि 54 जवान कभी अपने परिवारों से नहीं मिल सके. इनमें से अधिकतर टार्चर के दौरान मर-खप गए, जो बचे हैं पाकिस्तानी जेलों में मौत का इंतजार कर रहे हैं.

1971 के युद्ध के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी चाहती, तो भारतीय सेना का हर लाल वापस लौट सकता था. हमारे पास पाकिस्तान के 93 हजार से ज्यादा युद्ध बंदी थे. लेकिन इंदिरा गांधी ने बिना शर्त इन बंदियों को रिहा किया, जीती हुई जमीन पाकिस्तान को लौटा दी. एक बार भी अपने युद्धबंदियों की रिहाई का जिक्र तक नहीं किया. जबकि युद्धबंदियों की सूचना सरकार के पास थी.

पुख्ता थे सुबूत

05 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी अखबार आब्जर्वर ने फ्लाइट लेफ्टिनेंट का नाम युद्ध बंदी के तौर पर छापा. इसी रिपोर्ट में अखबार ने कहा था कि पांच भारतीय पायलट पाकिस्तान के कब्जे में हैं.

27 दिसंबर 1971 को टाइम मैगजीन ने मेजर ए.के. घोष की पाकिस्तानी जेल में बंदी के रूप में तस्वीर छापी.

1988 में पाकिस्तानी जेल से रिहा हुए दलजीत सिंह ने बताया कि फ्लाइट लेफ्टिनेंट वीवी तांबे को लाहौर जेल में देखा था.

एक अन्य रिहा बंदी मुख्तार सिंह ने बताया था कि कैप्टन गिरिराज सिंह कोट लखपत जेल में कैद हैं.

फ्लाइंग आफिसर सुधीर त्यागी का विमान विमानभेदी तोपों ने पेशावर में गिरा दिया था. पाकिस्तानी मीडिया ने फ्लाइंग आफिसर की गिरफ्तारी की घोषणा भी कर दी थी.

मृदुल त्यागी

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