नागौर, जोधपुर (विसंकें). राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश भय्याजी जोशी ने कहा कि समाज के अंदर भेदभावपूर्ण वातावरण चिंतनीय है. मीरा की धरती से अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने एक प्रस्ताव पारित कर समाज में समरसता लाने का आह्वान किया है कि प्रत्येक व्यक्ति को दैनंदिन जीवन में व्यक्तिगत, पारिवारिक, तथा सामाजिक स्तर पर समरसता पूर्ण आचरण करना चाहिए.
भय्याजी जोशी प्रतिनिधि सभा की बैठक के तीसरे दिन रविवार को पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे. उन्होंने कहा कि भारत का तत्व ज्ञान जो मनीषियों ने दिया है, हिन्दू चिंतन के नाम से जाना जाता है वो श्रेष्ठ है. समाज जीवन में कुछ गलत परंपराओं के कारण मनुष्य मनुष्य में भेद करना ठीक नहीं है. समाज के अंदर भेदभावपूर्ण वातावरण अपने ही बंधुओं के कारण आया है, जो उचित नहीं है. पिछड़े समाज की वेदनाओं को समझकर सबके साथ समानता का व्यवहार हो, परिस्थितियों को आधार बनाकर किसी के साथ भेदभाव नहीं होना चाहिए. समाज में जाति भेद, अस्पृश्यता हटाकर शोषण मुक्त, एकात्म और समरस जीवन का निर्माण करना है. भेदभाव जैसी कुप्रथा का जड़ मूल से समाप्त होनी चाहिए. उन्होंने कहा व्यक्तिगत तथा सामूहिक आचरण में देशकाल परिस्थिति के अनुसार सुसंगत परिवर्तन होना चाहिए. इसके लिए समाज में कार्यरत धार्मिक एवं सामाजिक संस्थाओं को भी आगे आना होगा. प्रस्ताव में पूज्य संतों, प्रवचनकारों, विद्वजनों, तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं को समाज प्रबोधन हेतु सक्रिय सहयोग देने का अनुरोध किया है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह भय्याजी जोशी ने कहा कि संघ जड़वादी नहीं अपितु काल के अनुसार चलने वाला संगठन है, इसलिए समय समय पर हम परिवर्तन करते आए हैं. संघ की पहचान केवल निक्कर ही नहीं बल्कि दूसरे कारणों से भी है, पेंट भी आने वाले समय में संघ की पहचान बन जाएगा. पेंट का डिजायन ऐसा तैयार किया जाएगा, जिससे शारीरिक कार्यक्रमों में बाधा न आए. वैसे भी आज योग, क्रिकेट, कराटे समेत कई खेलों में ट्राउजर पहने जाते हैं. नया गणवेश लागू करने में चार से छह माह का समय लगेगा.
सरकार के कारण संघ कार्य नहीं बढ़ा है. पिछले एक साल में साढ़े 5500 शाखाएं बढ़ने के सवाल पर उन्होंने कहा कि यह सतत चलने वाली प्रक्रिया है. समाज के बीच में संघ की स्वीकार्यता बढ़ी है, देशभर में 58000 हजार गांवों तक संघ की पहुंच है. करीब ढाई लाख गांवों में संघ की विभिन्न जागरण पत्र- पत्रिकाएं जाती हैं. पिछले वर्ष घर से दूर रहकर विस्तारक के रूप में संघ कार्य करने वाले 14500 कार्यकर्ता रहे. संघ से आईएस तुलना करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि ऐसा बयान देने वाले की जानकारी का स्तर देखकर पीड़ा होती है. उन्होंने अपने राजनीतिक अज्ञान को व्यक्त किया है.
हरियाणा और गुजरात में आरक्षण की मांग को लेकर हुए हिंसक आंदोलन पर कहा कि वास्तव में यह हम सबके लिए सोचने का विषय है. डॉ. बाबा साहब आम्बेडकर ने संविधान में आरक्षण का प्रावधान किया था यह न्योचित था. इससे देश के वंचित वर्ग का बड़ा तबका लाभान्वित हुआ. दलितों में शिक्षा का स्तर बढ़ा. सम्पन्न वर्ग द्वारा आरक्षण की मांग करना उचित दिशा में सोच नहीं है, जो सम्पन्न हैं उन्हें समाज के दुर्बल वर्ग के लिए अधिकार छोड़ने चाहिए. क्रिमीलेयर को आरक्षण के लाभ पर कहा कि इस पर शास्त्र शुद्ध अध्ययन और सामाजिक स्तर पर विचार विमर्श की आवश्यकता है. किन व्यक्तियों और किन जातियों को अभी तक इसका लाभ मिला, नहीं मिला है और वे पिछड़े हुए हैं, इसका अध्ययन होना चाहिए.
श्रीश्री रविशंकर के कार्यक्रम में बाधाएं क्यों
श्रीश्री रविशंकर के कार्यक्रम पर कहा कि इसके कई पहलु हो सकते हैं. हो सकता है पर्यावरण को लेकर कुछ कमियां रही होंगी. सरकार ने उन्हें सचेत किया और करना भी चाहिए. ऐसे विशाल और गरिमामय कार्यक्रम के लिए कोई मार्ग निकालना चाहिए. लेकिन कानून बताकार दंडित करते रहेंगे तो समाज जीवन में परिवर्तन लाने वाली संस्थाएं दुर्बल होंगी. पर्यावरण नियमों का पालन सभी संस्थाओं को करने की आवश्यकता है.
जेएनयू प्रकरण पर कहा कि देशभक्त नागरिकों के लिए यह चिंता का विषय है. देशद्रोहियों के प्रति श्रद्धा प्रकट करने वाली मानसिकता को हम क्या मानें. कानून अपना काम करेगा. भले ही ये लोग कानून के दायरे से बाहर आ जाएं, लेकिन परिसर में ऐसे वातावरण का पोषण किसने किया, इस पर प्रबुद्ध वर्ग को सोचना चाहिए. इस विषय पर राजनीति नहीं होनी चाहिए. सत्ता में चाहे जो भी बैठे, सबसे पहले देश हित, राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता का विचार करना ही सर्वश्रेष्ठ है. इस मामले में जागरूक नागरिकों द्वारा इस घटना पर दी गई प्रतिक्रिया का उन्होंने स्वागत किया.
भारत में हजारों मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश पर कोई रोक नहीं रही है. हमारे यहां महिलाएं वेदाध्ययन और पौरोहित्य कार्य कर रही हैं, सन्यासी और प्रवचनकार हैं. कुछ स्थानों पर प्रवेश को लेकर विवाद हुए, वहां के प्रबंधन ने किसी कारण से ऐसा किया होगा. अनुचित प्रथा को संवाद, समझदारी व आपसी विचार विमर्श से दूर किया जाना चाहिए. ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर राजनीति से प्रेरित आंदोलन चलाना अनुचित है.
मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा विश्वविद्यालयों को बजट स्वयं सृजित करने के सवाल पर कहा कि यह तकनीकी विषय है. हमारा यह मानना है कि आर्थिक दुर्बलता के कारण कोई शिक्षा से वंचित नहीं रहे, इसके लिए समाज और सरकार को भी आगे आना चाहिए.