जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली में आयोजित समरसता के अग्रदूत महाराजा छत्रसाल विषय पर आयोजित संगोष्ठी में विद्या भारती महाकौशल प्रांत के संगठन मंत्री डॉ. पवन तिवारी ने कहा कि बुंदेलखंड केसरी महाराजा छत्रसाल ने बुन्देलखण्ड राज्य में सुशासन को अपने राजकाज का मूलमंत्र बनाया. महाराजा छत्रसाल जी की वीरता, साहस, पराक्रम की खूब चर्चा होती रही है, लेकिन उनके “विशाल बुंदेलखंड राज्य – जिसकी सीमा चम्बल-नर्मदा-बेतवा-टोंस नदियों की जल सीमा में विस्तारित थी” के शासन प्रबंध पर ज्यादा प्रकाश नहीं डाला गया है. राजी सब रैयत रहे, ताजी रहे सिपाही. छत्रसाल के राज्य में बाल न बांका जाई, इस दोहे में उनके राजकाज का दर्शन झलकता है.
अपने जीवन काल में मुगलों से 52 लड़ाईयां जीतकर अजेय बने रहे. अपने आध्यात्मिक गुरू महामति प्राणनाथ जी की कृपा से उनको अपनी भूमि में हीरा प्राप्त हुआ. छत्ता तेरे राज में धरती धक धक हो. जित, जित घोड़ा पग धरे उत, उत हीरा होए. मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में महामति प्राणनाथ जी के आशीर्वाद से आज भी हीरा निकल रहा है. राज्य, भूमि, धन, बाहुबल, साहस, पराक्रम प्राप्त होने के बाद अजेय छत्रसाल जी ने अपने राज्य को प्रजा प्रेमी बनाया. उनके राज्य में प्रजा को केंद्र में रखकर शासन प्रणाली विकसित की गई. किसानों के लिए तालाब, नहरें, पेयजल प्रणाली, शिक्षा के लिए विद्यालय, मंदिर, सड़कें बनाई गईं. पन्ना, छतरपुर, नौगांव, सागर, जैसे शहर बसाए गए. आधुनिक चिकित्सा और आयुर्वेद को सहज उपलब्ध कराया गया. छत्रसाल के राज में कानून व्यवस्था चाक चौबंद थी. हिन्दू और मुसलमान दोनों सद्भाव से रहते थे. छत्रसाल के राज्य का शासन कौशल एवं प्रजा का सामाजिक सद्भाव समरसता का एक बड़ा उदाहरण है.
सामान्य सन्दर्भ में समरसता का अर्थ सामाजिक समानता है, परंतु समरसता मात्र समानता नहीं है. इसका निहतार्थ है ‘आत्मवत सर्वभूतेषु’. इसका अर्थ है, सभी को अपना समझ कर किया जाने वाला व्यवहार (आत्मीयता या आत्मीयता का व्यवहार). सामाजिक समरसता की अंतर्वस्तु में संघर्ष के स्थान पर सह अस्तित्व, विषमता के स्थान पर समता और समानता, वर्ग चेतना के स्थान पर सर्वमंगल की कामना (सर्वहित की मंगल कामना) निहित होती है.
उन्होंने विंध्याचल पर्वत के पर्यावरण के अनुरूप संसाधन अपनाए और विकास को नई दिशा दी. अपनी सेना को आधुनिक बनाया. सैनिक चिंतामुक्त होकर अपना दायित्व निभाए, इसके लिए उन्हें और उनके परिवार को साधन संपन्न किया गया. स्वयं पूर्णब्रह्म श्री कृष्ण के परम भक्त होने के बाद भी उनके राज्य में धार्मिक आजादी थी.
डॉ. पवन ने सभागार में उपस्थित सभी युवाओं एवं समाज के प्रबुद्धजनों से महाराजा छत्रसाल के जीवन के बारे में जानने एवं उनके जीवन से प्रेरणा लेने का आह्वान किया.