पत्रकारिता का धर्म राष्ट्र की रक्षा करना है। देश में पत्रकारिता का उदय राष्ट्र जागरण के लिए ही हुआ था। आपातकाल के दौरान आम लोगों की आवाज कुचलने की पूरी कोशिश की गई थी। उस समय के अखबारों को लिखने की आजादी नहीं थी। उक्त विचार सोमवार को नोएडा के सेक्टर-62 स्थित प्रेरणा शोध संस्थान में उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान लखनऊ व प्रेरणा शोध संस्थान न्यास के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित ‘आपातकाल की साहित्य सर्जना’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी में नेशनल बुक ट्रस्ट (एनबीटी) के अध्यक्ष बल्देव भाई शर्मा ने व्यक्त किए।
श्री बल्देव भाई शर्मा उद्घाटन सत्र के विषय ‘आपातकाल की पत्रकारिता’ पर विचार रखते हुए कहा कि आज भी लोग उस आपातकाल के दौर को नहीं भूले हैं। उस समय के दर्द की कसक जाती नहीं है और जानी भी नहीं चाहिए। सरकार ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए राष्ट्र को चुनौतियों में झोक दिया। उ न्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ उस लड़ाई में आगे था। स्वयंसेवक परिवार की परवाह किए बिना देशहित के लिए आगे आए। आज पत्रकारिता को नए कीर्तिमान स्थापित करने की आवश्यकता है।
कार्यक्रम के प्रथम सत्र में प्रो. अरुण कुमार भगत ने अपने उद्बोधन में कहा कि आपातकाल के दौरान प्रेस पर अंकुश लगाया गया और उसकी आवाज दबाने की कोशिश की गई। आपातकाल को लगाना गैर जरूरी था। उन्होंने स्वीकार किया कि आपातकाल में जनता के मौलिक अधिकारों का हनन हुआ। उन्होंने बताया के विपक्ष की सारी गतिविधियों पर रोक लगा दी गई थी। 25 जून 1975 की तिथि बड़ा भयावह हो गई। डा. सुन्दर लाल कथूरिया ने कहा कि पत्रकार को निर्भीक होना चाहिए और उसे किसी भी प्रकार के प्रलोभन में नहीं आना चाहिए। यदि आप राष्ट्रहित से विचलित हो जाते हैं तो आप पत्रकार नहीं है।
कार्यक्रम के द्वितीय सत्र में विषय ‘आपातकाल की साहित्य सर्जना’ पर डा. राम शरण गौड ने अपने उद्बोधन में कहा कि पत्रकार प्रतिकार के लिए लिए नहीं होना चाहिए। उसमें त्याग करने की भावना होनी चाहिए। उसे भय का त्याग कर आग बढ़ना चाहिए। शंकर शरण झा ने कहा कि आपातकाल की सारी त्रासदी को लोगों ने झेल लिया और संविधान एक तरफ खड़ा रहा।
इसी सत्र में कृपाशंकर जी (सुप्रसिद्ध चिंतक और विचारक) ने अपने उद्बोधन में कहा कि आपात काल के दौरान समाचार पत्रों को बंद कर दिया गया था। उस समय कुछ लोग जेल चले गए, कुछ भूमिगत हो गए और कुछ सरकार के साथ हो गए। उन्होंने बताया कि उस समय देश में भय का माहौल था।
कार्यक्रम के तृतीय सत्र में विषय आपातकाल: लोकतंत्र की हत्या पर अजय मित्तल जी ने बताया कि कोर्ट ने इंदिरा जी के चुनाव को निरस्त कर दिया था। संकट इंदिरा जी पर था, लेकिन उन्होंने देश का संकट बना दिया। उन्होंने लोगों के मूलभूत अधिकारों को नष्ट कर दिया। डा. महेश शर्मा ने कहा कि सत्ता का परिवर्तन लोगों की त्याग और तपस्या के कारण हुआ। आजादी के बारे में बहुत कुछ किताबों के में मिलेगा, लेकिन आपातकाल के बारे में ज्यादा नहीं मिलेगा। पदम जी (सुप्रसिद्ध चिंतक और विचारक) ने ने अपने संबोधन में कहा कि इंदिरा जी ने इस देश पर आपातकाल थोपा। कांग्रेस को इस देश से माफी मागनी चाहिए। उनकी महत्वाकांक्षा के कारण से ही देश को आपातकाल झेलना पड़ा। इस अवसर पर प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र प्रदान किए गए। इस अवसर पर कार्यक्रम के संयोजक पंकज राणा, प्रेरणा शोध संस्थान न्यास के सचिव रमन चावला, अरुण सिन्हा, प्रभाकर वर्मा, डा. सुनेत्री, अंकुर त्यागी, रवि श्रीवास्तव जी आदि गणमान्य लोग उपस्थित थे।
कार्यक्रम के अलग-अलग सत्रों का संचालन सुभाष सिंह, आदित्य देव त्यागी, डा. प्रदीप कुमार, डा. अखिलेश कुमार आदि ने किया