आयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने के विरोध में आतंकियों ने योजना बनाई थी कि श्री राम जन्मभूमि पर बम विस्फोट करके मंदिर को क्षति पहुंचाई जाएगी और घटना के बाद पूरे हिन्दुस्थान में कानून एवं व्यवस्था बिगड़ जाएगी. घटना को अंजाम देकर देश को एक बड़े दंगे की आग में झोंकने की साजिश कई वर्षों से रची जा रही थी. इस साजिश को मूर्त रूप देने के लिए 05 जुलाई वर्ष 2005 को 6 आतंकी मार्शल जीप से अयोध्या पहुंचे तथा विस्फोट करके जीप को उड़ा दिया. इस विस्फोट में एक फिदायीन वहीं पर मारा गया था. घटना के 14 साल बाद अब इनमें से चार को आजीवन कारावास की सजा सुनायी गयी है.
धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए वाहन में विस्फोट करने के बाद आतंकी मंदिर परिसर की तरफ बढ़ने लगे थे. विस्फोट की आवाज सुनते ही सी.आर.पी.एफ. और पी.ए.सी. के जवानों ने तत्परता से उन पांचों आतंकियों को ढूंढ निकाला. आमने-सामने की मुठभेड़ हुई, जिसमें पांच आतंकी और तीन आम नागरिक मारे गए. मारे गए आतंकियों के कब्जे से राइफल, चीन की बनी हुई पिस्टल, ग्रेनेड, राकेट लॉंचर एवं नोकिया मोबाइल बरामद हुआ था. नोकिया फोन को सर्विलांस पर लगाया गया. संदिग्ध लोगों से पूछताछ की गई. इस मामले में षड्यंत्र रचने वाले पांच और आतंकवादियों को गिरफ्तार किया गया.
अयोध्या जनपद के थाना राम जन्मभूमि में 11वीं वाहिनी पी.ए.सी के दल नायक, कृष्ण चन्द्र सिंह ने घटना की एफआईआर दर्ज कराई थी. एफआईआर के अनुसार “करीब सवा नौ बजे सफ़ेद मार्शल जिसका नंबर UP- 42 T- 0618 था. राम मंदिर के थोड़ा पहले जहां जैन मंदिर स्थित है. वहां पर आकर रुकी. इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता जोरदार धमाका हुआ. जीप के परखचे उड़ गए. बैरीकेडिंग भी तितर – बितर हो चुकी थी. इस हमले में एक फिदायीन मर चुका था.”
फैजाबाद जनपद न्यायालय में अभियोजन पक्ष ने आरोप पत्र दायर किया. 08 दिसंबर 2006 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मुकदमे को इलाहाबाद जनपद न्यायालय में भेजने का आदेश दिया. इसके बाद इन पांचों आतंकियों को प्रयागराज के नैनी सेंट्रल जेल में लाया गया. मुकदमे की पूरी सुनवाई नैनी सेन्ट्रल जेल के अन्दर बनी विशेष अदालत में की गयी. इलाहाबाद जनपद न्यायालय के अपर जिला जज एवं अधिवक्तागण जेल के अन्दर जा कर सुनवाई करते थे. फैसला भी जेल के अन्दर बनी विशेष अदालत में सुनाया गया.
कोर्ट ने अपने फैसले में आसिफ उर्फ़ इकबाल को मुख्य साजिशकर्ता माना. दूसरे आतंकी, डॉ. इरफ़ान पर यह दोष सिद्ध हुआ कि उसने हमला करने आए पांचों आंतकियों को अपने यहां शरण दी थी. तीसरे आतंकी, मोहमद नसीम ने सिम कार्ड और ए.के-47 खरीदी थी. चौथे आतंकी शकील ने वाहन मुहैया कराया था, जिसमें गोला बारूद ले जाया गया था. ट्रायल कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में मो. अज़ीज़ को बरी कर दिया. अज़ीज़ पर आरोप था कि लश्कर-ए-तैयबा का आतंकी इनके घर पर आता था.
मो. अज़ीज़ के बरी होने पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि “सरकार इस मामले का विधिक परिक्षण कराएगी और ऊपर की अदालत में इस फैसले के खिलाफ अपील करेगी. इसके साथ ही इस मुक़दमें की पैरवी पर सरकार नजर बनाए रखेगी.”