चुनाव के बाद, इस वर्ग का प्रारंभ हुआ और समापन हो रहा है। संयोग की बात है, पांच वर्ष पूर्व 2014 में भी ऐसा ही हुआ था और उस समय जो तिथिमान बना वर्ष का, उसमें संयोग ऐसा हुआ कि हिन्दू साम्राज्य दिवस की तिथि शिविर समापन के पहले दिन थी, और इस बार भी हिन्दू साम्राज्य दिवस की तिथि वर्ग समापन से एक दिन पहले है।
चुनाव में स्पर्द्धा होती ही है। प्रजातंत्र है, राजनीतिक दलों को चुनाव लड़ने ही पड़ते हैं। स्पर्द्धा होने के कारण कई प्रकार की बातें चलती हैं, चुनाव वातावरण में खलबली रहती है। थोड़ा विक्षोभ भी आ जाता है। कुछ को ही चुनकर आना है, बाकी को पराजित होना है, ये तो स्वाभाविक प्रक्रिया है।
पिछली बार जो राजनीतिक दल जीता था, वह इस बार अधिक शक्ति के साथ विजयी हुए हैं। समाज ने ऐसा दिखा दिया है, कि उनका काम शायद समाज को पसंद आया है। इसलिए एक ओर अवसर दिया। कुछ अपेक्षाएं पूरी हो गईं, कुछ ओर हैं। समाज को लगा कि एक अवसर ओर देने से उन अपेक्षाओं को पूरा करेंगे। तो उनका संख्याबल बढ़ा। लेकिन उनके लिए समझने की भी एक बात है कि सारी अपेक्षाएं जल्दी पूरी हों, ये उनका अधिक दायित्व बन गया है।
देश की जनता अधिक सीख रही है, स्वार्थ और भेदों से ऊपर उठकर, व्यवहारिक सूझबूझ व दृढ़ता के साथ, देश की एकात्मता अंखंडता, देश का विकास व राजनीति में शासन-प्रशासन के क्रियाकलापों में पारदर्शिता के पक्ष में मतदान कर रही है। प्रचार के सब हथकंडे अपनाने के बाद, प्रचार से कोई ढकोसला उनके आगे खड़ा करे, कितनी भी मीठी बात करे तो भी अब कोई भरमा नहीं सकता, जनता को ठगा नहीं जा सकता, यह शुभ शगुन है। प्रत्येक चुनाव में हमारे देश की जनता अधिक सीख रही है। बड़ी सूझबूझ के साथ देश की एकता और एकात्मता को ध्यान में रखकर हर चुनाव में समझदारी दिखा रही है।
अब चुनाव समाप्त हो गए हैं, सभी को अब देश के लिए मिलकर ठीक काम करना है, चुनाव तो सिर्फ एक स्पर्द्धा है। जीत-हार हो गयी है जो होना था, वो हो गया। देश धर्म की रक्षा के हित मिलकर साथ चलें, ये केवल स्वयंसेवकों का विषय नहीं है, समस्त प्रजा के लिए हैं।
जीत वाले जीत के गुमान में और हार वाले अपनी भड़ास निकालने के लिए अमर्यादित व्यवहार करेंगे तो उसमें देश का नुकसान है। आज क्या चल रहा है बंगाल में, चुनाव बाद ऐसा कहीं होता है, कहीं किसी और प्रांत में हो रहा है। नहीं होना चाहिए, और यदि किन्हीं गुंडा प्रवृत्ति वाले लोगों के कारण होता है तो शासन प्रशासन को आगे बढ़कर बंदोबस्त करना चाहिए, उसकी उपेक्षा नहीं कर सकते।
सामान्य व्यक्ति नासमझ हो सकता है, मर्यादा तोड़कर व्यवहार कर सकता है। किंतु शासन का कर्तव्य है कि देश की एकात्मता अखंडता के लिये, कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए दंड शक्ति से व्यवस्था बनाए। एक अनुभवी, संघर्ष का अनुभव रखने वाला व्यक्ति यदि कुर्सी के लिए ऐसा कर रहा है तो वह गलत है। ऐसा नहीं होना चाहिये।
संविधान सभा के अपने भाषण में डॉ. भीमराव आंबेडकर साहब ने हम सबको सावधान किया था. उन्होंने कहा था कि अपनी ताकत के बलबूते पर किसी विदेशी ने हमको जीता नहीं है, हमारे आपस के भेदों के कारण, झगड़ों के कारण उसको सहायता मिली। इसके कारण हम परतंत्र हुए।
व्यक्ति का अपना चरित्र जितना शुद्ध होना चाहिए, उतना ही राष्ट्रीय चरित्र भी शुद्ध होना चाहिए।
संचलन, सहज होता है। पर सब को एक साथ ले कर एक लय में चलना ही राष्ट्रीय प्रवृति है। कभी गलत कदम आगे बढ़े, तो उसे सुधारकर चलना पड़ता है। यही संघ सिखाता है।
भारत आगे बढ़ता है, हिन्दू आगे बढ़ता है, इसका अर्थ है कि जितना हम आगे बढ़ेंगे, स्वार्थ की पूर्ति करने वाली ताकतों के रास्ते बंद हो जाएंगे। आज देश आगे बढ़ रहा है, इसे आगे न बढ़ने देने वाली शक्तियां ऐसा नहीं चाहतीं, हमारा हिन्दू समाज, भारतीय समाज आगे बढ़ेगा तो दुनिया की स्वार्थ वाली दुकानें बंद हो जाएंगी।
चरित्र प्रेरणा देने वाला शील है। एकपत्नी व्रत रखने वाले श्रीराम हमारे आदर्श हैं तथा १६१०८ स्त्रियों की रक्षा करने वाले श्रीकृष्ण भी हमारे आदर्श हैं।
हम कितने भी पराक्रमी हों, हमारे परतंत्रता के काल में भी हमारे पास गुणवंत लोग थे, परंतु व्यक्तिगत चारित्र्य होने के साथ-साथ राष्ट्रीय चारित्र्य होना भी आवश्यक है।
विविधता को एकता मानना, बंधुभाव ही मानवता है। हमें समाज में बंधुभाव करने का प्रयास करना होगा। भारत बलवान हुआ, इसलिए हमें अन्य देशों से समर्थन मिल रहा है।
कार्यक्रम में उपस्थित विशेष आमंत्रित अतिथि पू. चितरंजन जी महाराज (अगरतला), डॉ कृष्णास्वामी जी (कोयम्बतूर), श्री श्रीनिवास जी (गोवा), गोपालकृष्ण जी (बंगलुरु), सेवानिवृत्त आईएफएस रमेश चंद्र जी (जालंधर), श्री यशराज जी एवं श्री युवराज जी (दिल्ली)।