स्वयंसेवकों द्वारा देशभर में पौने दो लाख सेवा कार्य चलाए जा रहे – आलोक कुमार जी

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ मेरठ प्रान्त द्वारा तीन स्थानों पर प्रथम वर्ष संघ शिक्षा वर्ग का आयोजन किया गया. बिजनौर, रामपुर और मवाना में लगे इन वर्गों में 735 कार्यकर्ताओं ने 20 दिन का शिक्षण प्राप्त किया. द्वितीय वर्ष के प्रशिक्षण के लिये प्रान्त से 164 कार्यकर्ता शाहजीपुर (शाहजहाँपुर) गए. 40 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के कार्यकर्ताओं के विशेष वर्गों में भी 213 कार्यकर्ताओं ने प्रशिक्षण लिया. कुल मिलाकर इस वर्ष 1132 कार्यकर्ताओं ने संघ का प्रशिक्षण प्राप्त किया.

विवेक कॉलेज बिजनौर में चल रहे संघ शिक्षा वर्ग प्रथम वर्ष सामान्य के समापन में स्वयंसेवकों को क्षेत्र प्रचारक आलोक कुमार जी ने संबोधित किया. उन्होंने कहा कि संघ समाज को संगठित करना चाहता है, किसी से भेदभाव का व्यवहार नहीं करता और सभी से विचार की समानता रखना चाहता है. इसका उदाहरण है कि नागपुर में आयोजित संघ शिक्षा वर्ग तृतीय वर्ष के समापन समारोह में पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को आमंत्रित किया.

संघ के सभी कार्य अनुशासन, समयबद्ध एवं व्यवस्थित होते हैं. ऐसी प्रतिबद्धता का पालन पूरे देश में आना चाहिए. संघ मानता है कि सभी शत-प्रतिशत नागरिक ऐसे नहीं हो सकते, परंतु समाज में यदि पांच से छह प्रतिशत व्यक्ति समय और अनुशासन का पालन करें तो शेष समाज उसका अनुसरण करने लगेगा. उन्होंने कहा कि संघ ने समाज परिवर्तन के लिये अनेक गतिविधियों की रचना की है. जिसमें ग्राम्य विकास, परिवार प्रबोधन, गौ सेवा, सामाजिक समरसता शामिल है. व्यवस्था परिवर्तन के लिये संघ के स्वयंसेवक 42 संगठनों में कार्य कर रहे हैं. संघ के स्वयंसेवक देशभर में बिना सरकारी सहायता के पौने दो लाख सेवा कार्य कर रहे हैं. समाज के पिछड़े वर्ग जैसे वनवासी व अनुसूचित वर्ग में सेवा कर रहे हैं.

संघ यह भी चाहता है कि हिन्दू समाज में जो दुर्गुण वह खत्म होना चाहिए. जाति के आधार पर छुआछूत, कन्या भ्रूण हत्या व दहेज की बुराई समाप्त होनी चाहिए, तभी समाज मजबूत व संगठित होगा तथा देश परमवैभव की ओर अग्रसर हो सकेगा.

सभी वर्गों में स्थानीय समाज का विशेष रूप से सहयोग प्राप्त हुआ. प्रत्येक दिन दोनों समय आसपास के नगरों एवं गांवों से रोटियां बनकर आती थीं, एक दिन का भोजन परिवार की माता-बहनों ने स्वयं आकर अपने हाथों से परोसा. ‘मातृहस्त भोजन’ कार्यक्रम में शिक्षार्थियों को अपने ही परिवार जैसा स्नेह प्राप्त हुआ.

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