विसंके जयपुर, 15 सितम्बर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने कहा की हमारे समाज में विद्यमान सभी प्रकार के भेदभाव को निर्मूल करते हुए कार्यकर्ता सब के मित्र बने, परिवारों की आपस में मित्रता हो, हम प्रचारक इस मित्रता निर्माण में संलग्न हो, स्वस्थ समाज व सफल राष्ट्र के लिए सामाजिक समरसता प्रथम आवश्यक है। सहज दोस्ताना व्यवहार से समरसता बढ़ेगी, समाज तोड़ने वाले लोगों के प्रयास निष्फल होंगे। डॉ. भागवत शुक्रवार को भारती भवन में राजस्थान क्षेत्र के प्रचारको की बैठक को सम्बोधित कर रहे थे। बैठक में जिला, विभाग, प्रान्त व क्षेत्र स्तर के सभी प्रचारक उपस्थित थे।
डॉ. भागवत ने कहा कि प्रचारक एक सामाजिक साधना का प्रकार है। प्रचारक को समाज में रहकर र्निलिप्त भाव से देश और समाज के हित के लिए कार्य करना होता है। उल्लेखनीय है कि संघ में प्रचारक वह होते हैं जो अपना घर.परिवार छोड़कर पूरी तरह से अपने आप को संघ कार्य में समर्पित कर देते है। जब तक वह प्रचारक है तब तक उनको पूरा समय संघ की योजना के अनुसार बताए गए स्थान एवं कार्य में ही लगाते हैं। जो योजक का कार्य करके क्षेत्र में परिस्थितियों के अनुसार अपने को ढालकर सभी को साथ लेकर काम करते हैं। वह स्वयं का परिवार छोड़ समाज को ही अपना परिवार मानते है। इस समय राजस्थान में करीब 200 प्रचारक है।
उन्होनें माननीय अशोक जी सिंघल का उदाहरण देते हुए कहा कि मन में ईश्वर के प्रति श्रद्धा और विश्वास रखकर अपना कार्य करना चाहिए करना चाहिए। कार्य की आवश्यकता अनुसार विविध संगठनों में भी प्रचारक भेजे जाते है जो वहां संगठन मंत्री कहलाते है। समाज और देश के लिए पूर्ण जीवन देने वाले स्वयंसेवक प्रारंभ में विस्तारक कहलाते हैं। दो वर्ष के बाद यदि वह निरंतर समय देना जारी रखते हैं तब वह प्रचारक कहलाते है। कोई भी स्वयंसेवक विस्तारक प्रचारक तब बन सकता है जब वह अपना अध्ययन पूर्ण कर चुका हो।
डॉ. मोहनराव भागवत ने कहां की कार्य विस्तार के साथ कार्य का दृढ़ीकरण होना चाहिए. दृढ़ीकरण यानि टोली, टोली सभी प्रकार के कार्यों का समग्रता के साथ चिंतन कर निर्णय करे, प्रचारकों को कार्य की दृढ़ता व इस हेतु टोली निर्माण पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा विवेकशीलता के साथ पूरा चित्र देखकर निर्णय करना चाहिए। हमारा कार्य से समाज का सामाजिक बल बड़ा है उन्होंने दृढ़ केंद्र का अर्थ बताते हुए कहा कि जो नीचे के दो स्थानों का, रक्षण, पोषण व संरक्षण कर सके।
उन्होंने बताया कि अनौपचारिकता व सहजता संघ कार्य की विशेषता है, हम सभी प्रचारक अधिक परिश्रम कर सकते हैं इसके लिए नित्य व्यायाम दीर्घश्वसन क्रिया करने से स्वस्थ रहेंगे स्वाध्याय व ईशस्मरण, आध्यात्मिकता का विकास करना चाहिए, आत्मीयता के साथ सम्पूर्ण समाज को जोड़े, पूर्वजों का गौरव बढ़ाकर भारत भक्ति बढ़ाना, अपना कार्य ईश्वरीय कार्य है।