रायसेन के ऐतिहासिक समरसता कुम्भ में हजारों लोग हुए सम्मिलित
विसंके जयपुर। देश मे अनेक स्थानों पर कुम्भ का आयोजन होता है। कुम्भ शब्द हिन्दू समाज के लिए नया नही है। कुंभ में सभी जाति, पंथ, बिरादरी के लोग बिना किसी भेदभाव के सम्मिलित होते है। सारा समाज भंडारों में एक साथ बैठकर भोजन करता है। ऐसा ही दृश्य आज रायसेन के दशहरे मैदान का भी है। जैसा कुम्भ में होता है वैसा ही हमारे गाँव मे हो, हमारे मोहल्ले में हो, हमारे घर मे हो, इसी भावना को लेकर यह आयोजन हो रहा है। यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह श्री सुरेश जी सोनी ने रायसेन में सम्पन्न हुए समरसता कुम्भ में अपने उद्बोधन में कहा।

समरसता कुम्भ रायसेन
सोनी ने कहा की आज पूरा रायसेन जिले के हर वर्ग, जाति समाज के महिला और पुरुष सिर्फ एक ही भाव से दशहरा मैदान में आ रहे थे कि हम सब एकरस हिन्दू समाज है, एक भारत माता की सन्तान है। सब जाति भाषा वर्ग भेद छोड़कर आज समरसता कुम्भ ने एक ओर इतिहास रचा है।
उन्होनें कहा कि हमारे यहां संतो की परंपरा ने जो हमको सिखाया की कण-कण में भगवान है। भगवान ने कश्यप, मत्स्य, नरसिंह के रूप में अवतार लिया है। हमारी परिवार व्यवस्था के कारण हमारी पहचान है। परिवार में कमजोर व्यक्ति की भी चिन्ता होती है। इस परिवार भावना का विस्तार ही वसधैव कुटुम्बकम के रूप में हम मानते है। ये मेरा ये तेरा है ये छोटी सोच हमारे यहां माना गया। हमने इस परिवार में पशु पक्षियों को भी स्थान दिया है। बिल्ली, चिड़िया, चाँद, सूरज सबसे हमने नाता जोड़ा.
इस विराट हिन्दू भावना को भूलने के कारण हमको कष्ट उठाने पड़े जिसके कारण हमारे देश का विभाजन हुआ। पूर्व में हमारे देश की सीमाएं गांधार (अफगानिस्तान) तक थी।
हिन्दू भाव को जब जब भूले आई विपद महान।
भाई छूटे धरती खोई, मिटे धर्म संस्थान।।
इसलिए हमें हिन्दू भाव को मजबूत करना पड़ेगा। इस देश मे रहने वाले सभी लोग हिन्दुओं की संतान है। मक्का में गए अब्दुल्ला बुखारी को वहाँ कहा गया कि तुम हिन्दू मुसलमान हो। विश्व मे भारत की पहचान हिन्दू है। इंडोनेशिया मुस्लिम देश होते हुए भी वहां रामायण होती है। वहां के मुसलमानों का मानना है कि हमने अपनी पूजा पद्धति बदली है पूर्वज नहीं बदले।

समरसता कुम्भ रायसेन
सुरेश जी ने वर्तमान परिस्थिति पर कहा कि आज अनेक प्रकार की शक्तियां हिन्दू समाज को तोड़ने का दुष्चक्र रच रही है। हमारी जनजातियों को कहा जा रहा है कि तुम हिन्दू नही हो। लिंगायत को कहा जा रहा है कि तुम हिन्दू नही हो। समाज को जातियों में बांटा जा रहा है। अरुणाचल की जनजातियां कृष्ण और रुक्मणि को अपना पूर्वज मानते है। मिजो जनजाति के लोग राम और लक्ष्मण की शपथ लेते है। नागालैण्ड में सूर्यदेव की उपासना करते है। भारत की शेष जनजातियां भगवान शंकर तथा हनुमान जी को अपना देवता मानते है। जनजाति समाज ने इस देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया है।
उन्होनें कहा कि हमारा तत्व ज्ञान महान है, किंतु हमने उसका व्यावहार भुला दिया। हम प्रण करें कि हमारे गांव मे एक कुआ, एक मन्दिर और एक श्मशान हो। जाति के आधार पर भेदभाव समाप्त हो। समाज मे आज नशे की प्रवृत्ति है, जिसके कारण पारिवारिक झगड़े व आर्थिक विपन्नता आती है। इसे समाप्त करना होगा। इसके लिए मातृशक्ति को आगे आना होगा। व्यसन की मुक्ति से समृद्धि आएगी। दहेज जैसी कुप्रथा आज भी समाज मे है। बेटी की ससुराल वाले गांव में पानी भी नही पीने वाला समाज आज कुरीतियों में जकड़ा है। आज की पीढ़ी को इसे तोड़ना है।
अगर संस्कार शून्य साक्षर हुआ तो पढ़ने वाला साक्षर का उल्टा राक्षस हो जाएगा। संस्कार नही होने से आदमी जानवर से भी बदतर हो रहा है।
सभी स्त्रियाँ तुम्हारी माँ है, यह पहले बच्चे को बताया जाता था। दूसरे का धन मिट्टी है, यह बताया गया। परन्तु शिक्षा में बदलाव आने के कारण संस्कार शून्यता आई। शिक्षा में जीवन मूल्य कम होने से अनेक दोष आये। आज सब प्रकार के भेदभाव भूलकर समाज एकजुट होकर अपने कौशल का विकास करे, अपने गाँव का जल संरक्षण करे। पर्यावरण के लिए कार्य करें। आज समाज के धनवान लोग समाज के गरीब वर्ग की भलाई के लिए आगे आवें। समरसता कुम्भ का यह कार्य ओर अधिक आगे बढ़ाने की आवश्यकता है। परमात्मा इसके लिए हमे सामर्थ्य दे।

समरसता कुम्भ रायसेन
इसके पूर्व अतिथियों साधु संतों ने ने भारत माता व भगवान शिव की विधि विधान से पूजा अर्चना की। आयोजन समिति की ओर से अतिथियों का स्वागत किया गया। समरसता आयोजन की अध्यक्षता कर रहे पूज्य श्रीराम महाराज ने कहा कि पहली बार मैं अपने सम्मुख इतना बड़ा आयोजन देख रहा हूँ। उन्होंने समाज को संगठित कर सबसे सत्य मार्ग पर चलने का आव्हान किया।
आयोजन समिति के अध्यक्ष भागचंद उइके जी ने कहा कि हमारे समाज मे जब तक सुमति रही समाज मे समरसता और सम्पन्नता रही। हमे पुनः समाज मे विभिन्न कार्यक्रमो के माध्यम से समरसता और मानव मूल्यों का निर्माण करना होगा।
आभार
प्रचार विभाग, समरसता कुम्भ आयोजन समिति रायसेन