जीवनशैली में बदलाव से ही होगा पर्यावरण संरक्षण संभव – दत्तात्रेय होसबाले जी

कोल्हापुर. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी ने कहा कि हम वर्तमान में कमोडिटी कल्चर में जी रहे हैं. इसलिए जीवन उपभोगवादी बन चुका है. अपने उपभोग के लिए हम सृष्टि का संहार कर रहे हैं. हमारी जीवनशैली बदली तो ही पर्यावरण का संरक्षण संभव होगा. वह कोल्हापुर (महाराष्ट्र) के समीप कणेरी स्थित सिद्धगिरी मठ में आयोजित सुमंगल लोकोत्सव के समापन समारोह में संबोधित कर रहे थे.

सरकार्यवाह जी ने कहा कि आत्मा को मोक्ष मिले, इसके लिए कुछ लोग धार्मिक अनुष्ठानों में सहभागी होते हैं. लेकिन विश्व के कल्याण की मनीषा रखते हुए सर्वस्व का परित्याग कर जीवन जीने वाले साधु-संत हमारे देश में हैं. हिन्दू धर्म उनसे यह अपेक्षा करता है कि वे विश्व का मार्गदर्शन करें. इसी दृष्टिकोण के साथ काडसिद्धेश्वर स्वामी जी ने पंचमहाभूत सुमंगल लोकोत्सव की संकल्पना रखी थी. हमारा शरीर पंचतत्वों से बना है. मनुष्यों ने तपश्चर्या कर अपने अस्तित्व का अनुसंधान किया. तब जाकर इन पंचमहाभूतों के अस्तित्व का बोध हुआ. भूमि, वायु, जल, अग्नि व आकाश पांच तत्व हैं, जिनसे सृष्टि का निर्माण हुआ है.

उन्होंने कहा कि मनुष्य की उपभोगवादी जीवनशैली के कारण इन पंचतत्वों का संहार हो रहा है. पश्चिमी जगत में पर्यावरण का तेजी से संहार हो रहा है. फिर भी वे हमें प्रदूषण नियंत्रण के संदर्भ में निर्देश देते हैं. उनके कमोडिटी कल्चर के कारण ही पर्यावरण पर खतरा मंडरा रहा है. हम भी उसी राह पर चल रहे हैं. भारतीय संस्कृति में सृष्टि के सूक्ष्म से सूक्ष्म घटक का विचार किया गया है. इस विचार का अंगीकार करते हुए अगर हम अपनी जीवनशैली बदलें, तभी पर्यावरण का संरक्षण हो सकेगा. इसी दृष्टि के साथ सुमंगल लोकोत्सव की प्रस्तुति की गई है. इसमें से हर प्रयोग का विचार करते हुए अपने-अपने स्थान पर अमल किया जाए तो हम पर्यावरण के संदर्भ में निश्चय ही कुछ महान कार्य कर सकते हैं.

केंद्रीय मंत्री नारायण राणे ने कहा कि ‘काडसिद्धेश्वर स्वामी हमेशा लोगों की मौलिक बातों को लेकर काम करते हैं. गाय, कृषि और स्वास्थ्य के क्षेत्र में उन्होंने बड़ा कार्य किया है. सुमंगल लोकोत्सव के विचार घर-घर पहुंचाने के लिए केंद्र व राज्य सरकार प्रतिबद्ध है.

मठ के प्रमुख काडसिद्धेश्वर स्वामी ने कहा कि ‘जमीन, जंगल और जल के संरक्षण के लिए हमें भारतीय संस्कृति का अंगीकार करना होगा. पूर्व में हमारा जीवन प्रकृति पर निर्भर था, लेकिन अब हम प्रकृति पर मात करने के प्रयास कर रहे हैं. इसी कारण सुनामी, बाढ़ और भूस्खलन जैसी समस्याओं का हमें सामना करना पड़ रहा है. पंचतत्वों के संरक्षण के लिए हर घर से प्रयास होना चाहिए, प्लास्टिक का प्रयोग बंद होना चाहिए. हर व्यक्ति को वृक्षारोपण करना चाहिए और पानी का सीमित प्रयोग करना चाहिए. ऐसा करने पर ही इस उत्सव की सफलता रेखांकित होगी. किसानों को प्राकृतिक कृषि का स्वीकार करना होगा, जिसके लिए देश के सभी मठ और अखाड़ों को किसानों को प्रोत्साहन तथा आवश्यक सामग्री देनी चाहिए.

इस अवसर पर कर्नाटक विधान परिषद के सभापति बसवराज होराटी, गोवा विधानसभा के सभापति रमेश तवडकर, कर्नाटक की मंत्री शशिकला जोल्ले, सांसद अण्णासाहेब जोल्ले सहित वरिष्ठ सरकारी अधिकारी तथा संत-महंत बड़ी संख्या में उपस्थित थे.

 

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