बांसवाड़ा. जनजातीय समाज में सामाजिक उत्थान के लिए प्रयासरत जनजातीय समाज के प्रबुद्धजनों की गोष्ठी आयोजित की गई. जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य भय्याजी जोशी के सान्निध्य में जनजाति कार्यकर्ताओं की संगोष्ठी का आयोजन हुआ.
भय्याजी जोशी ने कहा कि जनजाति समाज ऐतिहासिक काल से ही विभिन्न महापुरुषों के साथ में सनातन संस्कृति, सनातन धर्म एवं सभ्यता के लिए संघर्षरत रहा. मध्यकालीन समय में देखें तो छत्रपति शिवाजी महाराज के साथ में मावलों, महाराणा प्रताप के साथ भील समाज, गोविन्द गुरु ने आजादी के लिये संघर्ष किया. बिरसा मुंडा, रानी गाइदिन्ल्यू, टंट्या भील ने सांस्कृतिक विरासत को बचाने के लिए अपना सर्वस्व समर्पित किया.
अपनी ऐतिहासिक विरासत एवं पूर्वजों के बलिदान को ध्यान में रखकर इस विरासत को बचाने के लिए संघर्षशील रही है. पहनावे के भेद को लेकर अलग-अलग बताने का प्रयास हुआ… फिर भी जनजाति समाज ने इन विचारों को ना मानते हुए राष्ट्रदेव भव को चरितार्थ किया है. राणा पूंजा भील जैसे योद्धाओं ने महाराणा प्रताप का तन-मन से सहयोग किया था. देश में जनजाति समाज के योद्धाओं के कई उदाहरण देखने को मिलेंगे और सनातन संस्कृति को बचाए रखा था. आदि अनादि काल से जनजाति समाज सनातन संस्कृति से जुड़ा हुआ है. आज कुछ लोग भेष बदलकर समाज में दूरियां बनाने के लिए, समाज को भटकाने के लिए नए तरीके अपना रहा है और राष्ट्रहित व देशहित के लिए जनजाति समाज हमेशा ही सनातन संस्कृति को मुख्य अंग रहा है.
आज समाज में राम भक्ति और भारत भक्ति ही समाज को जोड़कर रख सकती है. इस देश में रहने वाले सभी लोगों की दो समानता यही है कि वह इस देश में रहता है, और भारत माता की जय का उद्घोष करता है. यही समानता ही देश को जोड़कर रखती है.