“गौ कृपा अमृतम” किसानों के लिए होगा वरदान साबित
वागड़ में गौपालन व गौ आधारित जैविक कृषि के प्रसार हेतु श्री राधा कृष्ण गौशाला वमासा में किसान सम्मेलन एवं प्रशिक्षण शिविर संपन्न हुआ. देश के नामी गौ विशेषज्ञों एवं कृषि विज्ञानिको ने 2000 हजार से ज्यादा कृषकों को संबोधित किया.
कार्यक्रम के प्रारंभ में भूमि सुपोषण अभियान के तहत भूमि पूजन मिट्टी पूजन एवं गौपूजन किया गया.
कार्यक्रम में अतिथि वक्ता भारत सरकार द्वारा कामधेनु पुरस्कार विजेता प्रसिध्द गौ पालक गोपाल भाई सुतरीया एवम जाने माने कृषि वैज्ञानिक जीव जंतु कल्याण बोर्ड के सदस्य अजीत शरद केलकर रहैं।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए गोपाल सुतरिया ने बताया कि “गौ कृपा अमृतम” किसानों के लिए वरदान साबित होगा कृषक इसको उपयोग में लायें, 7 दिन के अंदर यूरिया डीएपी पेस्टिसाइट बंद हो सकता है भले ही आपने 30 सालों से केमिकल डाला हों, केमिकल से भी ज्यादा उत्पादन दो गुना कुछ कुछ फसलों में हमने तीन-तीन गुना उत्पादन लिया हुआ है वो भी पहले सीजन में ही, यही उदाहरण व प्रत्यक्षदर्शी प्रजेंटेशन के माध्यम से गोपाल भाई ने समझाया व कार्यक्रम में उपस्थित सभी कृषको को बताया की 6 सालों में देश के 22 राज्यों में 7 लाख किसानों से भी ज्यादा के साथ काम कर चुके हैं यह अति परिणाम लक्ष्यी कार्य है।
गोपाल भाई ने बताया कि सरकार को गौ आधारित जैविक कृषि व गोपालन को बढ़ावा देने व हमारे पैतृक व्यवसाय कृषि व पशुपालन के क्षेत्र में किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए आर्थिक सम्बलन हेतु सरकार को योजनाएं बनाने की आवश्यकता है जिसमें सरकार ने पूर्व में ट्रैक्टर मशीनरी के उपयोग, युरीया डीएपी पर सरकार के वित्तिय बजटों में अनुदान योजनाएं बना रखी है इस रूप में जैविक कृषि करने वाले किसानों को अनुदान जारी करने की योजनाऐं हो, जो कृषक भारतीय नस्ल के नंदी गौवंश का संरक्षण कर खेती में उपयोग कर रहे हैं उन कृषकों को अनुदान देने की योजनाएं बनाने की आवश्यकता है।
अजीत केलकर ने बताया की गोवंश की उपयोगिता को जानने की आवश्यकता है गोवंश हमारे खेतों में होना चाहिए हमारे घरों में होना चाहिए लेकिन आज अगर गौवंश गौशालाओं में आ रहा है बेसहारा सड़कों पर विचरण कर रहा है तो हम सब की जिम्मेदारी बनती है कि भारतीय नस्ल की गोवंश का गोबर व गोमुत्र हम हमारे खेतों तक कैसे उपयोग में लाएं क्योंकि परमेश्वर ने धरती मां को संजीव बनाए रखने के लिए गौ माता की रचना की थी गौ वंश के गोबर गोमूत्र से केंचुओं का निर्माण होगा सूक्ष्मजीवों का संचार होगा ग्रामीण क्षेत्रों में 25 साल पहले केंचुए थे अभी देखने को नहीं मिलते केंचुए दो प्रकार के काम करते थे एक धरती के अंदर लाखों छिद्र बनाते थे जब बारिश होती हैं बारिश का पानी उन छिद्रों के माध्यम से भूमि के अंदर वाटर बैंक तक पहुंचता था दूसरी हर किसान के खेत के नीचे हजारों टन खाद का भंडार है चट्टान के रूप में जो केंचुए नीचे से जो खाद का भंडार है उसको खाकर ऊपर लाकर खेत में छोड़ने का काम करते थे सूक्ष्मजीवों का मानव जीवन व प्रकृति में काफी योगदान है सूक्ष्मजीव पाचन करने में सहायक थे पर कीटनाशक जहरीले खाद्यान्न व भोजन के उपयोग से हमारे सूक्ष्मजीव कम होते जा रहे हैं।
हमारे देश में प्रकृति का पूजन प्रेम का संबंध रहा हैं,इसलिए देश मैं धरती को मां कहते हैं नदियों की पूजा,वृक्षों की पूजा करते हैं प्रकृति के प्रत्येक तत्व की पूजा करते हैं हमारे संस्कार अद्भुत रहे थे क्योंकि हमने प्रकृति से प्रेम का भाव रखा सभी जीवो का यहां तक कि हम सर्प की भी पूजा करने वाले लोग हैं।
कृषि वैज्ञानिक अलबर्ड हावर्ड (1905-1931) जिनको अंग्रेजों ने भारत में खेती सिखाने भेजा पर जब इन्होंने भारतीय किसानों की खेती देखीं समझी तो इन्होंने कहा कि भारतीय किसानों को खेती सीखानें की आवश्यकता नहीं है इनसे इनकी पद्धति की खेती सीखने की आवश्यकता है।
1966-68 मैं मार्केट आधारित उत्पादन पद्धति आई जो कीटनाशक दवाईयों का जहर लेकर आई जिसने हमारे प्रकृति से हमारा जुड़ाव कम कर दिया।
FAO ने भी माना की मृदा का शरण इसी तरह चलता रहा कृषि में किसानों द्वारा रासायनिक कृषि का चलन चलता रहा तो 2050 तक हमारे विश्व की 90% मिट्टी खराब हो जाएगी।
अजीत जी ने बताया कि केमिकल्स रासायनिक के इस्तेमाल से पिछले 10 वर्षों से मौसम भी किसानों का साथ नहीं दे पा रहा है हमारे देश की मृदा का जैविक कार्बन धीरे-धीरे दशमलव पांच से भी नीचे चला गया है।
पर्यावरण का ध्यान रखते हुए किसानों को बादाम के पत्तों से बने हुए दोने पत्तों में भोजन करवाया गया।
कार्यक्रम को बड़ी स्क्रीन पर देश के 22 राज्यों के आत्मनिर्भर प्रगतिशील जैविक पद्धति से खेती करने वाले कृषको की अब तक की उपलब्धियों को उदाहरण के आधार पर चलचित्र के माध्यय बताया गया।
आगंतुक किसानों को गौ कृपा अमृतम व नेपियर हरा चारा भी निःशुल्क किसानों को वितरित किया गया।
इस आयोजन में 2000 से भी ज्यादा किसानों ने भाग लिया कार्यक्रम का किसानों को इतना प्रभावी लगा कि सुबह से लेकर शाम तक किसानों ने अनुसरण व सीखने के भाव से पूरा कार्यक्रम एकाग्रता से सुना