-स्वामी विवेकानंद के खेतड़ी में आने के 125 वर्ष पूर्ण
जयपुर। स्वामी विवेकानंद के खेतड़ी में आने के 125 वर्ष पूरे होने पर 13वां ‘खेतड़ी विरासत दिवस’ समारोह मंगलवार को खेतड़ी के अजीत विवेक संग्रहालय परिसर में मनाया गया। आज ही के दिन यानी 12 दिसंबर 1897 को स्वामी विवेकानंद खेतड़ी वापस आए थे। तब उनका भव्य स्वागत किया गया था। ऐसा कहा जाता है कि उस दिन देशी घी के दीए प्रज्जवलित किए गए थे। पूरा खेतड़ी दीपक की रोशनी से जगमगा उठा था, मानो दिवाली हो।
राजा अजीत सिंह के सहयोग से स्वामी विवेकानंद 1893 में शिकागो धर्म सम्मेलन में पहुंचे थे, जहां उन्होंने सनातन धर्म संस्कृति की ध्वजा लहराते हुए देश को विश्व में विख्यात कर दिया था। राजा अजीत सिंह और स्वामी विवेकानंद की गहरी मित्रता के चलते खेतड़ी को अलग पहचान मिल पाई थी, जिसकी बदौलत खेतड़ी आज भी दो महान विभूतियों की दोस्ती ओर उनकी यादों को चिरस्थाई बनाने के लिए इस दिवस को बड़े ही धूमधाम और उत्साह के साथ मनाता है।
अजीतसिंह एक धार्मिक व आध्यात्मिक प्रवृत्ति वाले शासक थे। ऐसा कहा जाता है कि, गर्मी के दिन थे और अजीतसिंह माऊन्ट आबू स्थित अपने खेतड़ी महल में ठहरे हुए थे। उसी दौरान 4 जून 1891 को युवा सन्यासी विवेकानन्द से उनकी पहली बार भेंट हुई। इस भेंट से अजीतसिंह उस युवा सन्यासी से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उस युवा सन्यासी को अपना गुरू बना लिया। तथा अपने साथ खेतड़ी चलने का आग्रह किया जिसे स्वामीजी ठुकरा नहीं सके। इस प्रकार स्वामी विवेकानन्द 7 अगस्त 1891 को पहली बार खेतड़ी आए। खेतड़ी में विवेकानन्द जी 27 अक्टूबर 1891 तक रहे। खेतड़ी प्रवास के दौरान स्वामीजी प्रतिदिन राजा अजीतसिंह से आध्यात्मिकता पर चर्चा करते थे। स्वामी विवेकानन्द जी के कहने पर ही राजा अजीत सिंह ने खेतड़ी में शिक्षा के प्रसार के लिए जयसिंह स्कूल की स्थापना की थी।
‘अष्टाध्यायी’ व ‘महाभाष्य’ का अध्ययन
स्वामीजी ने न सिर्फ राजा अजीतसिंह को आधुनिक विज्ञान के महत्व को समझाया बल्कि खेतड़ी में ही विवेकानन्द ने राजपंडित नारायणदास शास्त्री के सहयोग से पाणिनी का ‘अष्टाध्यायी’ व पातंजलि का ‘महाभाष्य’ का भी अध्ययन किया। स्वामीजी ने व्याकरणाचार्य और पाण्डित्य के लिए विख्यात नारायणदास शास्त्री को लिखे पत्रों में उन्हें मेरे गुरु कहकर सम्बोधित किया था।
विविदिषानन्द से बनें “स्वामी विवेकानन्द”
स्वामीजी का “स्वामी विवेकानन्द” नाम भी राजा अजीतसिंह ने रखा था। इससे पूर्व स्वामीजी का अपना नाम विविदिषानन्द था। शिकागो जाने से पूर्व राजा अजीतसिंह ने स्वामीजी से कहा आपका नाम बड़ा कठिन है। विदेश के लोगो के लिए इसका उच्चारण कठिन होगा। उसी दिन राजा अजीतसिंह ने उनके सिर पर भगवा साफा बांधा व भगवा चोगा पहना कर नया वेश व नया नाम स्वामी विवेकानन्द प्रदान किया।
अपने मित्र के लिए स्वामी जी का कथन
स्वामी विवेकानन्द जी ने एक स्थान पर स्वंय स्वीकार किया था कि ”यदि खेतड़ी के राजा अजीत सिंह जी से उनकी भेंट नही हुई होती तो भारत की उन्नति के लिए उनके द्वारा जो थोड़ा बहुत प्रयास किया गया उसे वे कभी नहीं कर पाते।” राजा अजीतसिंह और स्वामी विवेकानन्द के अटूट सम्बन्धों की अनेक कथाएं आज भी खेतड़ी के लोगों की जुबान पर सहज ही सुनने को मिल जाती है।
उल्लेखनीय है कि खेतड़ी विरासत दिवस की तैयारी को लेकर अजीत विवेक संग्रहालय को हर साल भव्य रूप से सजाया जाता है। इस वर्ष भी स्वामी विवेकानंद व राजा अजीत सिंह की झांकियां सजाकर पूरे कस्बे में नगर भ्रमण करवाया गया। खेतड़ी में विरासत दिवस पर होने वाले कार्यक्रम भारतीय संस्कृति को बढ़ावा देने में अपनी अलग पहचान रखते हैं। वहीं क्षेत्र की जनता को भी धर्म व संस्कृति के प्रति आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती है।