श्रीराम का जीवन सभी के लिए समरसता का श्रेष्ठ उदाहरण हैं – दत्तात्रेय होसबाले जी

अजयमेरु. शरद पूर्णिमा व महर्षि वाल्मीकि जयंती के अवसर पर स्थानीय डी.ए.वी कॉलेज के खेल मैदान  में आयोजित महानगर एकत्रीकरण में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी ने कहा कि स्वयंसेवकों की सोच साधारण व्यक्तियों से अलग होती है. उनमें चुनौतियों व संकटों को झेलने व विपरीत परिस्थितियों में भी साहस से सामना करने की सोच हमेशा रहती है. संघ एक अभियान है, प्रयास है, राष्ट्रीय एकीकरण का, हिन्दुत्व का.

उन्होंने कहा कि समाज में संघ के प्रति स्वीकार्यता बढ़ी है. संघ भारत की आत्मा अर्थात हिन्दुत्व को अपना कर आगे बढ़ रहा है. हिमालय से हिन्द महासागर तक “वसुधैव कुटुम्बकम्” का विचार स्वयंसेवकों में संचारित रहता है. डॉ. हेडगेवार जी व श्री गुरु जी ने अपने व्यक्तित्व व कर्तृत्व से संघ को दिशा दी. विषम परिस्थितियों में भी नियत समय पर कार्यक्रम में पहुँच कर कार्य को सम्पन्न किया. डॉ. जी द्वारा अढ़े गाँव से नागपुर तक 40 किलोमीटर पैदल चलना तथा श्री गुरु जी द्वारा क्षतिग्रस्त पुल को पैदल पार करना, कार्यकर्ताओं की संभाल करना, भीषण गर्मी में भी पैदल चल कर कुशलक्षेम पूछना, सामान्य जन के यहाँ चाय पीना, आदि हमारे सामने प्रस्तुत कुछ आदर्श उदाहरण हैं.

संघ की कार्य पद्धति सरल तो है, किन्तु उसकी निरंतरता बनाए रखना कठिन है. कार्यकर्ताओं का संघानुकूल जीवन निर्माण ही संघ का ध्येय रहता है. यहाँ मिलता कुछ नहीं, बल्कि जो है वो भी खोने के लिए कार्यकर्ता समर्पित रहता है. स्वयं के आचरण द्वारा हिन्दू धर्म में व्याप्त कुरीतियों का निवारण करना, “हिंदवः सहोदरा सर्वे, न पतितो भवेत” छुआछूत भेदभाव, जाति-पाति के भाव से ऊपर उठ कर संघ कार्य ही हमारा एक आदर्श प्रस्तुतिकरण है.

महर्षि वाल्मीकि ने अपने साहित्य से भारत को शाश्वत चीजें दी हैं. रामायण के माध्यम से मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जीवन-आदर्श को, सम्पूर्ण भारतवासियों के सम्मुख रखा. श्री राम ने सभी जाति-वर्गों के साथ समरसता का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत किया – जैसे केवट के साथ नदी पार जाना, शबरी के झूठे बेर खाना, हनुमान जी को गले लगाना, रावण के भाई को अपना बनाना व लंका जीत कर उसे अपने अयोध्या राज्य में शामिल न कर, वापिस विभीषण को सौंप देना.

संघ के स्वयंसेवक आयातित कार्यकर्ता नहीं, अपितु इसी समाज के हैं, समाज के दोषों का निवारण करते हुए, अस्पृश्यता, जातिभेद, मतभेद समाज रूपी शरीर के विकारों को दूर करने का कार्य स्वयंसेवक कर रहे हैं. साथ ही अपने सकारात्मक दृष्टिकोण तथा प्रेम से सब को जोड़ते हुए सर्वसमाज को साथ लेकर आगे बढ़ते जा रहे हैं. संघ में स्वयंसेवक को लेने के लिए कुछ नहीं, अपितु देने के लिए बहुत कुछ है.

उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति है – “अतिथि देवो भव:” की है. समर्पण के लिए स्वयंसेवक हमेशा तत्पर रहते हैं. स्वदेशी उत्पादों को भी बढ़ावा देने के लिए हमें विचार करना चाहिए. भारत के उत्थान में प्रत्येक स्वयंसेवक की भूमिका है. इसके लिए हमारे सम्पूर्ण जीवन में स्वयंसेवकत्व का प्रकटीकरण, हमारे कर्तृत्व में, व्यक्तित्व में, स्पष्ट दृष्टिगोचर रहे. स्वयंसेवक अपनी प्रतिभा अनुसार प्रत्येक क्षेत्र में कार्य करेगा.

सरकार्यवाह जी ने कहा कि शताब्दी वर्ष, 2025 से पूर्व प्रत्येक बस्ती, उप बस्ती, ग्राम में संघ कार्य पहुंचे, यही हमारा ध्येय रहना चाहिए.

ज्ञात रहे पिछले दो दिन से हो रही वर्षा के बाद भी खुले मैदान में प्रातः 7.30 बजे महानगर एकत्रीकरण में 2069 संख्या रही.

 

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