अनुकूलता में नहीं हो किसी प्रकार की असावधानी : डॉ. भागवत

 स्वयंसेवकों संबोधित करते हुए प.पू.सरसंघचालक जी।

स्वयंसेवकों संबोधित करते हुए प.पू.सरसंघचालक जी।-फोटो विसंके

mco_8080पानीपत। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक माननीय डॉ. मोहन भावगत जी ने कहा कि अनुकूलता में सावधानी ज्यादा आवश्यक है। जब मनुष्य कठिन परिस्थितियों में होता है तो वह सावधान रहता है लेकिन जब परिस्थितियां अनुकूल होती हैं तो वह असावधान हो जाता है और यह असावधानी ही उसके पतन का कारण बनती है। डॉ. भागवत जी ने स्वयंसेवकों को आगाह करते हुए कहा कि आज समाज में माहौल स्वयंसेवकों के लिए अनुकूल है। इसलिए स्वयंसेवकों को इस अनुकूल माहौल में सावधान रहने की जरूरत है। डॉ. भागवत जी शुक्रवार प्रात: आर्य स्कूल के मैदान में पानीपत जिले के स्वयंसेवकों को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर उनके साथ कुरुक्षेत्र विभाग के संघचालक डॉ. गोपाल कृष्ण एवं पानीपत जिले के संघचालक अनूप कुमार मंच पर उपस्थित रहे।

कार्यक्रम का शुभारंभ ध्वजारोहण व संघ की प्रार्थना के साथ हुआ। लगभग साढ़े चार सौ स्वयंसेवकों ने योगासन, सूर्यनमस्कार, व्यायाम योग का प्रदर्शन किया। कार्यक्रम के दौरान जिलेभर से 1400 से अधिक स्वयंसेवक पूर्ण गणवेश में उपस्थित रहे।
डॉ. भागवत ने महात्मा बुद्ध द्वारा किए गए धर्म के वर्णन का जिक्र करते हुए कहा कि धर्म आरंभ से लेकर अंत तक परम आनंद देता है और ऐसे शाश्वत धर्म की खोज भारत में हुई है। उन्होंने कहा कि पूरी सृष्टि अपना कुटम्ब है और भारत वसुधैव कुटुम्बकम् की नीति पर चलते हुए पूरी सृष्टि को अपना परिवार मानता है। विश्व का उत्थान ही भारत का लक्ष्य है।  डॉ. भागवत जी ने कहा कि कभी हम शिखर पर थे तो कभी हम गुलाम भी रहे। यह उतार-चढ़ाव तो हमने झेले हैं। किसी भी विदेशी ने हमें अपनी ताकत से नहीं बल्कि हमारी आपसी फूट के कारण गुलाम बनाया है। इसलिए हमें प्रत्येक व्यक्ति को संस्कारित करना पड़ेगा।
स्वतंत्रता संग्राम के समय के नेताओं ने अपने जीवन में धर्म आधारित शैली को ही अपनाया था। राष्ट्र एक इकाई के रूप में कार्य करे यह उनके व्यवहार में दिखाई दे, शक्तियों का प्रयोग राष्ट्रहित में करें, इस हेतु हम सबको समाज हित में परिवर्तन करना होगा। डॉ. हेडगवार जन्मजात से राष्ट्रभक्त थे और क्रांतिकारियों से उनके काफी अच्छे संबंध थे। क्रांतिकारियों से चर्चा के दौरान डॉ. हेडगवार जी के सामने यह बात आई कि भारत को एकता के सूत्र में पिरोने और स्वतंत्र रखने के लिए देश के लिए जीने-मरने वाले समाज का निर्माण करना होगा। इसलिए लिए परम पूजनीय डॉ. हेडगेवार जी ने भी संगठन को एकता का यह स्वरूप देने के लिए कई प्रयोग किए। अंतत: नित्य शाखा संघ की शक्ति का आधार बनी, जिसका परिणाम है कि स्वयंसेवकों द्वारा समाज के सहयोग से बिना किसी सरकारी मदद के देशभर में एक लाख 60 हजार से अधिक समाज सेवा के कार्य चल रहे हैं। स्वयंसेवक जिस भी काम को हाथ में लेते हैं उसे पूरा करके ही छोड़ते हैं। आज स्वयंसेवकों पर समाज का विश्वास बढ़ा है लेकिन यह काम आसानी से नहीं हुआ। पहले समाज में इसका विरोध हुआ और फिर समाज ने इस पर विश्वास किया। विविधता में एकता देखने वाला राष्ट्र पूरे विश्व में हिंदू समाज ही है। हम सृष्टि का अंग बनकर कार्य करने वाले लोग हैं। हमारी पूजा पद्धति कोई भी हो किंतु प्यार और संयम सब के प्रति आत्मीयता, यही हमारे धर्म का रूप है। हमारे साहित्य में भी इसी का वर्णन है और सब स्वयंसेवक साधक बनकर इसी की साधना करते हैं। यही हमारी राष्ट्रीयता है। इसीलिए सारा विश्व हमें हिंदू कहता है। हमारा संविधान भी हमें इमोशनल इंटीग्रेशन शब्द वर्णित करके संवैधानिक निर्देश देता है। हमारे देश में जो स्वयं को हिंदू नहीं मानते, वे भी हिंदू पूर्वजों के ही वंशज हैं। इसलिए भारत माता उनकी भी माता है। उन पर भी भारतीय संस्कृति का प्रभाव है। हम उस संस्कृति की साधना करते हैं, इसीलिए हम राष्ट्रीय हैं। हम अपनी इच्छा से करते हैं, इसलिए हम स्वयंसेवक हैं। मेरा राष्ट्र है, मेरा समाज है, इस आत्मीय भाव से स्वप्रेरणा से संगठित होते हैं। यह जो समाज में समस्याएं दिखाई दे रही हैं वे समाज के प्रति कृत्रिम प्रेम के कारण खड़ी हुई हैं। स्वयंसेवक शाखा से संस्कार ग्रहण करता है और 24 घंटे की समीक्षा करता है। डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि आज अनुकूलता के समय में हमें संगठन को राष्ट्रव्यापी बनाना है जो भारत को ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व को सुख शांति की राह दिखाएगा। संघ के विचार से ही स्वयंसेवक बनते हैं। सतत साधना करना उनके जीवन में परम उद्देश्य है और उसी को वे अपने जीवन में कृति रूप से प्रदर्शन करते हैं। उन्होंने नेपोलियन का उदाहरण देते हुए कहा कि हमारे कार्य में जरा सी भी ढिलाई नहीं रहनी चाहिए। कुछ समय की देरी से पहुंचने के कारण ही नेपोलियन को वाटरलू की लड़ाई हारनी पड़ी और सारा जीवन निर्वासित व्यतीत करना पड़ा। इसलिए स्वयंसेवकों को समय और अनुशासन का सर्वथा पालन करना चाहिए। संघ की शाखाओं में शारीरिक कार्यक्रम साधना का केंद्र हैं। इससे समाज को योग्य बनाए रखना और समाज का विश्वास बनाए रखना, अपने अंदर अनुभूति पैदा कर सबके समक्ष रखना तथा राष्ट्र को परम वैभव संपन्न बनाना हमारा अंतिम लक्ष्य है। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हमें अधिक से अधिक उत्कटता के साथ खड़ा होना चाहिए।
बुजुर्ग स्वयंसेवकों में भी दिखा जोश
आर्य गल्र्स स्कूल के ग्राउंड में आयोजित कार्यक्रम के दौरान स्वयंसेवकों द्वारा संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन ाागवत के समुख शारीरिक व योग क्रियाओं का प्रदर्शन किया गया। इस प्रदर्शन में युवा स्वयंसेवकों के साथ-साथ बुजुर्ग स्वयंसेवकों भी शामिल हुए। शारीरिक व योग क्रियाओं के प्रदर्शन में बुजुर्ग स्वयंसेवकों ने भी युवा स्वयंसेवकों के साथ पूरे जोश के साथ अपनी प्रस्तुति दी।
स्वयंसेवकों ने संभाली कार्यक्रम की पूरी कमान
कार्यक्रम में किसी प्रकार की कोई दिक्कत सामने नहीं आए तथा कार्यक्रम सुचारू रूप से चले इसके लिए स्वयंसेवकों ने पूरी तैयारी की थी। कार्यक्रम में सुरक्षा, यातायात व्यवस्था, जलपान, आगंतुकों को बैठाने, साफ-सफाई इत्यादि की पूरी व्यवस्था स्वयंसेवकों द्वारा की गई थी।

You may also like...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

seventeen − sixteen =