पाठयक्रम हो समयानुकूल व देशानुकूल—श्री हनुमान सिंह

7959facc-dea1-4408-ba9e-d651bf618a8a—’कैसा हो पाठ्यक्रम’ विषय पर व्याख्यान 

विसंकेजयपुर
जयपुर, 3 जुलाई। शैक्षिक मंथन संस्थान की ओर से रविवार को न्यू सांगानेर रोड स्थित संत विल्फ्रेड कॉलेज सभागार में ‘कैसा हो पाठ्यक्रम’ विषयक व्याख्यान आयोजित किया गया। व्याख्यान के मुख्य वक्ता शैक्षिक प्रौद्योगिकी विभाग के अनुसंधान अधिकारी श्री हनुमानसिंह राठौड.ने थे।
उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए श्री हनुमान सिंह ने कहा कि देश में दो प्रकार की विचार प्रणाली चल रही है जिनमें प्रथम अपनों को इस देश की जडों से जोडने वाली राष्ट्रीय विचार प्रणाली है। यह विचार प्रणाली प्राचीन राष्ट्र की सभ्यता—संस्कृति और इतिहास से अनुराग रखने वाली है और वह चाहती है कि आने वाली पीढियां श्रेष्ठ जीवन मूल्यों से युक्त तथा राष्ट्र भक्त बने। विचारों की दूसरी धारा सेकुलरता के आवरण में इस देश की प्रत्येक परम्परा को हेय, मिथक व पुराणपंथी मानती है। वह केवल और केवल पाश्चात्य भोगवादी व कम्यूनिष्ट विचारधारा को ही आधुनिक मानती है।
श्री सिंह ने कहा कि शिक्षा व उसके पाठ्यक्रम के लिए प्रत्येक शिक्षा आयोग ने मूल्यपरक राष्ट्रीय शिक्षा की सिफारिश की है, किन्तु क्रियान्वयन का अवसर आने पर अंतत अब तक सेकुलरता के नाम पर विकृत की जाती रही है। राष्ट्रवादी शक्तियों को जब अवसर मिलता है तो वे अपने देश की जडों को तलाशने, स्वाभिमान जागरण करने तथा विस्मृत जन-ंनायकों के स्मरण का पाठयक्रम में परिवर्तन करने का प्रयत्न करते है। पाठयक्रम में परिवर्तन के संबंध में इन दोनों विचार पद्धतियों का द्ववंद चल रहा है। इसका कारण भारत में केन्द्रीय व प्रान्त स्तर पर संवैधानिक अधिकार प्राप्त ‘शिक्षा नियामक आयोग‘ का नहीं होना है। अखिल भारतीय राष्ट्रीय महासंघ व अन्य राष्ट्रीय विचार के शैक्षिक संगठन लंबे समय से यह मांग कर रहे हैं। यह आयोग शिक्षाविदों से निर्मित हो और राजनैतिक हस्तक्षेप से मुक्त हो। इसमें न केवल आम लोग सुझाव दे सके बल्कि समय-समय पर पाठ्यक्रमों की समीक्षा और समयानुकूल परिवर्तन करे सके। परिवर्तन का आधार हमारे देश की सभ्यता एवं संस्कृति, हमारे जीवन मूल्य, राष्ट्र की वर्तमान आवश्यकता व आकांक्षा होना चाहिए। विद्यार्थी का सर्वांगिण शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक व आध्यात्मिक विकास सुनिश्चित कर राष्ट्रभक्त एवं सुयोग्य नागरिक बनाना ही पाठयक्रम का उद्देश्य होना चाहिए। जब हम स्वामी विवेकानंद के शब्दों में कहते है कि ‘शिक्षित युवक अपने पैरों पर खडा होना चाहिए।’ तो इसका तात्पर्य है कि वह पराश्रित, अंधानुकरण करने वाला नहीं होकर अपनी जडों के दृढ—आधार पर सभी परिवर्तन स्वीकार करने वाला होना चाहिए। संसार में जहां भी, जो भी अच्छा तथा अपने देश के अनुकुल हो उसे स्वीकार करने वाला नागरिक शिक्षा के माध्यम से बनना चाहिए न कि आधुनिकता के नाम पर संसार का कचरा या गंदगी यहां लाने वाला। ‘भारत तेरे टुकडे होंगे इसां अल्लाह इसां अल्लाह’ के नारे लगाने वाला युवक यदि वर्तमान शिक्षा प्रणाली का उत्पाद है तो हमें समय रहते सचेत हो जाना चाहिए।
पाठयक्रम का भारतीय दृष्टिकोण—प्रो.चौधरी33376853-ec6e-49da-b83c-303d3b991e00
व्याख्यान के मुख्य अतिथि एवं माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष डाॅ. बी. एल.चौधरी ने कहा कि पाठ्यक्रम में शिक्षा ज्ञान देने वाली, सृजनात्मकता देने वाली एवं नवाचारों को प्रोत्साहित करने वाली होनी चाहिए। पाठ्यक्रमों का दृष्टिकोण भारतीय होना चाहिए। पाठ्यक्रमों का उद्देश्य स्वावलम्बी बनाने वाली शिक्षा होनी चाहिए। शिक्षा चरित्र निर्माण एवं मानव निर्माण आधारित होनी चाहिए। शिक्षा में कौशल विकास का होना नितान्त आवश्यक है जिससे विद्यार्थी अपना जीवन चला सके।

संस्थान के अध्यक्ष डाॅ. विमल प्रसाद अग्रवाल ने बताया कि भावी पाठ्यक्रम में ऐसी विषय वस्तु दी जाए, जिससे बालकों में चरित्र निर्माण के साथ उत्तरदायी नागरिक बनने की भावना का विकास हो साथ ही कौशल विकास एवं ज्ञानार्जन से वो राष्ट्र का नाम उंचा कर सके। पाठ्यक्रम में विद्यार्थी के मन में गर्व एवं गौरव का भाव जगे ऐसी पाठ्य सामग्री का समावेश होना चाहिए। पाठ्यक्रम परिस्थिति एवं देश के अनुरूप होना चाहिए। इस अवसर पर राजस्थान विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. जे.पी.सिंघल, संस्थान के सचिव श्री महेन्द्र कपूर, रा.स्वयंसेवक संघ, राजस्थान क्षेत्र के सेवा प्रमुख श्री शिवलहरी जी, जयपुर प्रांत प्रचारक श्री निम्बाराम जी, सह—प्रांत प्रचारक श्री शैलेन्द्र जी आदि गणमान्य नागरिक भी उपस्थित थे।

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