संघ में अनुयायी नहीं, सहयोगी तैयार किए जाते हैं – अनिरुद्ध देशपांडे

जयपुर (विसंकें). ‘संघ के संस्कार’ ध्यान में रखकर पाथेय रूप से, प्रेम सरलता से डॉ. पां.रा. किनरे ने लेख संग्रह किया है. डॉ. पांडुरंग रा. किनरे लिखित, 14 श्रेष्ठ व्यक्तियों के शब्द चित्र तथा एक लेख से सर्वसामावेशक ‘तृप्तीची तीर्थोदके’ पुस्तक का विमोचन बुधवार 13 फरवरी को ठाणे स्थित सहयोग मंदिर सभागृह में हुआ.

कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख अनिरुद्ध जी मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित थे. सद्साहित्य के अभ्यासक, महाराष्ट्र राज्य साहित्य संस्कृति मंडल के अध्यक्ष डॉ. सदानंद मोरे की उपस्थिति में पुस्तक का विमोचन हुआ. छत्तीसगढ़ के गुरु घासीदास केंद्रीय विवि के कुलाधिपति, विधायक डॉ. अशोक मोडक कार्यक्रम के अध्यक्ष थे.

‘तृप्तीची तीर्थोदके’ पुस्तक में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर, दादाभाई नोरोजी, कामगार नेता बागराम तुळपुळे के साथ रा. स्व. संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार,  द्वितीय सरसंघचालक गोळवलकर श्रीगुरुजी, तृतीय सरसंघचालक बालासाहेब देवरस, एकात्म मानवदर्शन के प्रणेता पं. दीनदयाल उपाध्याय, भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक दत्तोपंत ठेंगडी, राष्ट्रीय छात्र आंदोलन के शिल्पकार यशवंत केलकर, संघ के ज्येष्ठ प्रचारक नाना पालकर, मुकुंदराव पणशीकर, सुरेशराव केतकर, जनसंघ के ज्येष्ठ नेता प्रेमजीभाई आसर, और केशवसृष्टि के निर्माण में अग्रणी कार्यकर्ता जनार्दन नलावडे का व्यक्तित्व और उनके कार्य का उल्लेख किया गया है. तथा ‘स्वातंत्र्य, समरसता और बंधुता’ इस लेख के माध्यम से सामाजिक सेवा की भूमिका बताई गई है.

उन्होंने कहा कि ‘स्वातंत्र्य, समरसता और बंधुता’ इस लेख में संघ की समरसता लाने में भूमिका स्पष्ट की गई है. इसी अनुसार समता और समरसता में जो विभिन्नता है, इसे भी स्पष्ट किया गया है. “कानून के माध्यम से समता स्थापित की गई. पर, समरसता के बिना समता अशक्य है. समरसता अंतरंग से प्रकट होती है, उसमें अपनेपन का भाव रहता है, यह सीख संघ में दी जाती है. संघ प्रथम कार्यकर्ताओं से परिचित होता है, बाद में तत्त्वज्ञान से. तथा संघ नेताओं से नहीं, बल्कि कार्यकर्ता के माध्यम से चलता है. एकात्म भावना, देशभक्ति, नि:स्वार्थ वृत्ति, इस पुस्तक में पढ़ने को मिलता है. “संघ में कोई सदस्य नहीं है, बल्कि सब घटक हैं. संघ में अनुयायी नहीं, सहयोगी तैयार किए जाते हैं.”

डॉ. अशोक मोडक जी ने कहा कि “अनुभव और चिंतनशील व्यक्तित्व से लिखे हुए लेखों का संग्रह का मतलब यह पुस्तक है. जिस तरह से फल से वृक्ष की पहचान होती है, उसी प्रकार डॉ. हेडगेवार के चरित्र से होती है. डॉ. हेडगेवार ने मानवीय पूंजी में निवेश किया था. संघ में चरित्रवान व्यक्ति तैयार किए जाते हैं.

डॉ. सदानंद मोरे ने कहा कि कठिन काल में भी संघ का काम करने वाले अनेक लोग हैं. ध्येय सफल होने तक कार्य करते रहना, मात्र उसका हिसाब न रखना, यह सीख संघ में दी जाती है. संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं के व्यक्तित्व को पुस्तक में बताया गया है. यह लेख संग्रह मतलब समुद्र मंथन से निकले हुए 14 रत्न हैं. डॉ. किनरे ने इन रत्नों के साथ रहते हुए आए अपने अनुभवों शब्दबद्ध किया है.

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