खेती कभी भी हंसी – खेल नहीं रही. सदियों से किसान सदा ही फाकाजदा रहा है. छोटे जोत के किसानों के लिए तो खेती से गुजारा कर पाना भी मुश्किल होता है. रही सही कसर मानसून की अनियमितता व फसलों पर लगने वाली बीमारियां पूरी कर देती हैं. इस वास्तविकता को महाराष्ट्र के कोंघारा गांव की सुनीता जाधव से बेहतर कौन समझ सकता है. महाराष्ट्र के यवतमाल जिले के कोंघारा गांव की इस युवती के किसान पति ने खेती की बदहाली से त्रस्त होकर तब आत्महत्या कर ली थी, जब इसकी कोख से तीसरी बेटी ने जन्म लिया था. भारत में सैकड़ों किसान साल-दर-साल केवल इसलिए जीवन से मुँह मोड़ लेते हैं कि उनके खेत की फसल परिवार के पेट के जाले और कर्ज के फंदे के बीच का फासला पाटने के लिए कभी पूरी नहीं पड़ती. किसानों की आत्महत्या के बढ़ते ग्राफ से चिंतित होकर शेतकारी विकास प्रकल्प शुरू हुए. यवतमाल जिले में तत्कालीन विभाग प्रचारक सुनील देशपांडे जी (अब अखिल भारतीय सह संपर्क प्रमुख) के प्रयासों से 1997 में शुरू हुए इस प्रोजैक्ट के माध्यम से संस्था ने किसानों को जीरो बजट की खेती का प्रशिक्षण देकर मंझोले किसानों की आय बढ़ाई, वहीं दूसरी ओर आत्महत्या कर चुके किसानों के परिवार को रोजगार उपलब्ध कराकर उन्हें आत्मनिर्भर भी बनाया. संस्था द्वारा पीड़ित किसान परिवारों के बच्चों को पढ़ाने के लिए निःशुल्क छात्रावास भी चलाया जाता है. अभी इस होस्टल में 65 बच्चे हैं व पहले बैच के कुछ बच्चे इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी कर चुके हैं.
संस्था का पूरा नाम दीनदयाल बहुउद्देश्यीय प्रसार मंडल है, जिसका एक प्रोजेक्ट शेतकारी यानी खेती विकास प्रकल्प है. संस्था के समन्वयक गजानन जी परसोड़कर बताते हैं कि अभी तक विभिन्न स्तरों पर लगभग 400 गरीब कृषक परिवारों को आत्मनिर्भर बनाया जा चुका है. अब कोंघारा गांव की सुनीता जाधव को ही लें. पति की आत्महत्या व तीन बेटियों के पालनपोषण की जिम्मेदारी ने सुनीता के लिए जीवन ने सारे दरवाजे बंद कर दिए थे. तब शेतकारी परिवार उसकी मदद के लिए आगे आया. आज वो संस्था की सहायता से स्वयं का जनरल स्टोर चला रही है. सुनीता बताती हैं कि उनकी तीनों बेटियां आज संस्था की सहायता से अच्छे संस्थानों में पढ़ रही हैं.
गजानन जी के अनुसार किसानों की दशा सुधारने के लिए कई स्तर पर काम चल रहे हैं. संस्था ने निःशुल्क उत्तम बीज वितरण, सेंद्रीय खेती प्रशिक्षण, स्वयं सहायता समूहों का गठन कर व वाटर कन्जरवेशन के जरिए समग्र परिवर्तन की बुनियाद रखी है. वहीं संस्था ने आत्महत्या कर चुके किसानों के बच्चों को पढ़ाने के साथ ही परिवार के जिम्मेदार सदस्य को रोजगार देकर स्वावलंबी बनाने में मदद की है. हर वर्ष संस्था द्वारा 25 सितंबर को दीनदयाल उपाध्याय पुरस्कार समाज में निःस्वार्थ भाव से सेवा कर रहे लोगों को दिया जाता है.