गोगाजी राजस्थान के प्रमुख लोक देवता में से एक हैं। उन्हें वीर गोगाजी चौहान के नाम से भी जाना जाता है। उनका जन्म विक्रम संवत 1003 की भादव शुक्लपक्ष की नवमी को चूरू जिले के ददरेवा गाँव में हुआ। उनके पिता का नाम जैबर (जेवरसिंह) तथा माता का नाम बाछल था। सैकडों सालों बाद भी गोगादेव की जन्मभूमि पर उनके घोड़े का अस्तबल है और घोड़े की रकाब अभी भी वहीं पर विद्यमान है। चौहान वंश में राजा पृथ्वीराज चौहान के बाद गोगाजी वीर और ख्याति प्राप्त राजा थे। गोगाजी का राज्य सतलुज सें हांसी (हरियाणा) तक था।
उक्त जन्म स्थान पर गुरु गोरक्षनाथ का आश्रम भी है और वहीं है गोगादेव की घोड़े पर सवार मूर्ति। भक्तजन इस स्थान पर कीर्तन करते हुए आते हैं और जन्म स्थान पर बने मंदिर पर मत्था टेककर मन्नत माँगते हैं। हनुमानगढ़ जिले के गोगामेड़ी में भादव शुक्लपक्ष की नवमी को गोगाजी का मेला भरता है। आज भी सर्पदंश से मुक्ति के लिए गोगाजी की पूजा की जाती है। गोगाजी के प्रतीक के रूप में पत्थर या लकडी पर सर्प मूर्ती उत्कीर्ण की जाती है। लोक धारणा है कि सर्प दंश से प्रभावित व्यक्ति को यदि गोगाजी की मेडी तक लाया जाये तो वह व्यक्ति सर्प विष से मुक्त हो जाता है। भादवा माह के शुक्ल पक्ष तथा कृष्ण पक्ष की नवमियों को गोगाजी की स्मृति में मेला लगता है।