बिहार के कटिहार जिले के आजमनगर घोरदाह गाँव में एक समुदाय के लोगों ने एक दलित परिवार के चार लोगों को जिन्दा जला दिया. इस क्रूर घटना का बहाना जमीन का छोटा सा हिस्सा बना. घोरदोह गाँव में 35 वर्षीय पंचम दास अपनी 32 वर्षीय दिव्यांग पत्नी मंजुला देवी और दो बेटियों प्रीति और किरण के साथ रहते थे. दोनों बेटियों की उम्र मात्र चार वर्ष और दो वर्ष थी. पंचम दास चाय की दुकान चलाकर अपने परिवार के लिए दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करता था.
11 जून, 2018 रात को पंचम दास अपनी चाय की दुकान बंद कर खाना खाकर अपनी पत्नी और दो बेटियों के साथ थे. दो वक्त की रोटी के जुगाड़ में काम करते-करते पंचम दास थक चुके थे. इस कारण वह सोने की तैयारी कर रहे थे. उनकी पत्नी अपनी दोनों बेटियों को सुलाने का प्रयास कर रही थी. तभी पड़ोस में रहने वाले अब्दुल रहमान अपने सालों के साथ पेट्रोल और माचिस लेकर आता है और सभी को घर में रखे चौकी में बांध कर जिन्दा जला देता है.
स्थानीय लोगों का कहना है कि शाम में अब्दुल रहमान और उसका साला पंचम दास को धमकी देकर गए थे कि अगर जगह को खाली नहीं किया तो जिन्दा जला दिये जाओगे. ठीक उसी रात अब्दुल रहमान अपने सालों के साथ पंचम के घर आया और पंचम सहित पत्नी और दोनों मासूम बच्चियों को चौकी में बांध कर पेट्रोल डाल कर जला दिया. दोनों बच्चों प्रीति और किरण की मौत घटना स्थल पर ही हो गई. पंचम की पत्नी मंजुला लगभग 70 प्रतिशत जल चुकी थी और पंचम दास का शरीर 90 प्रतिशत तक जल चुका था. जब दोनों दंपति को उचित ईलाज के लिए कटिहार से भागलपुर स्थित अस्पताल रेफर किया गया तो मंजुला ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया. पंचम दास जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा है.
घटना की सूचना मिलने पर कटिहार के आरक्षी अधीक्षक ने घटना स्थल पर पहुँचकर मामले की जाँच शुरू कर दी थी. पुलिस ने दो आरोपियों अबदुल रहमान और मोकिम अखतरी को गिरफ्तार कर लिया है, शेष सात आरोपी पुलिस गिरफ्त से बाहर बताए जा रहे हैं. दलित परिवार को जिन्दा जला देना और आदिवासियों को प्रताड़ित करना शांतिप्रिय समुदाय के लोगों की एक आदत बन चुकी है.