डॉक्टर हेडगेवार, संघ और स्वतंत्रता संग्राम – 3
भारत को ब्रिटिश साम्राज्यवाद के क्रूर पंजे से मुक्त करवाने के लिए समस्त भारत में एक संगठित सशस्त्र क्रांति का आधार तैयार करने हेतु केशवराव हेडगेवार को तत्कालीन राष्ट्रवादी नेताओं विशेषतया लोकमान्य तिलक ने कलकत्ता भेजा था. तिलक की सांस्कृतिक राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रभावित केशवराव नागपुर में सक्रिय रहते हुए बंगाल के क्रांतिकारी दल ‘अनुशीलन समिति’ से भी जुड़ गए थे. केशवराव ने बंगाल के कई क्रांतिकारियों को नागपुर में गुप्त रूप से रहने और उग्र गतिविधियों को संचालित करने में सहयोग दिया था. कलकत्ता में जाकर रहने के पीछे एक बड़ा उद्देश्य यह भी था कि महाराष्ट्र के गुप्त क्रांतिकारी आंदोलन को बंगाल की सबसे बड़ी क्रांतिकारी संस्था से जोड़ दिया जाए. 1910 में केशवराव ने कलकत्ता के लिए प्रस्थान किया. इनके पास डॉक्टर मुंजे द्वारा दिए गए परिचय पत्र के अलावा और कुछ भी नहीं था. डॉक्टर मुंजे के प्रभाव, परिचय और प्रखर व्यक्तित्व के कारण केशवराव को कलकत्ता के नेशनल मेडिकल कॉलेज में प्रवेश मिल गया. इस कॉलेज के प्रबंधक तथा प्राध्यापक भी राष्ट्रीय विचारों से ओतप्रोत थे. प्रायः अधिकांश लोग लोकमान्य तिलक एवं विपिनचंद्र पाल द्वारा संचालित होने वाले स्वदेशी/स्वराज्य के आंदोलनों में गुप्त रूप से भागीदारी भी करते थे. केशवराव के कालकत्ता में आने का मुख्य उद्देश्य सशस्त्र क्रांति का प्रशिक्षण लेना और पूरे देश में अंग्रेजों के विरुद्ध 1857 जैसी महाक्रांति का आगाज करना था. डॉक्टरी की अपनी पढ़ाई के साथ-साथ केशवराव हेडगेवार ने युवाओं के हाथों में सशस्त्र क्रांति की मशाल थमाने के उद्देश्य को क्षणभर के लिए भी आंखों से ओझल नहीं किया.
केशवराव हेडगेवार की एक खास पहचान यह थी कि वह संपर्क में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को मित्र बनाकर उसे अनुशीलन समिति के कार्य में लगा लेते थे. नेशनल मेडिकल कॉलेज में देश के प्रायः प्रत्येक प्रांत के विद्यार्थी अध्ययन के लिए आते थे. केशवराव ने उन सबके माध्यम से शीघ्र ही देशभर में भविष्य के महाविप्लव के लिए युवाओं को तैयार करने की तत्परता दिखाई और सफलता भी प्राप्त की. डॉक्टर श्यामाप्रसाद मुखर्जी के पिता डॉक्टर आशुतोष मुखर्जी, मोतीलाल घोष, विपिनचंद्र पाल तथा रासबिहारी बोस जैसे राष्ट्रवादी/हिन्दुत्वनिस्ठ नेताओं के साथ भी केशवराव ने घनिष्ठ संपर्क स्थापित कर लिया.
अपने जुझारू स्वभाव, निरंतर परिश्रम तथा लोकसंग्रही वृत्ति होने के कारण केशवराव शीघ्र ही अन्य प्रांतों में चल रही क्रांतिकारी गतिविधियों की मुख्य कड़ी बन गए. बंगाल के कई स्थानों पर हथियारों की गुप्त फैक्ट्रियां सफलतापूर्वक चल रही थीं. यहीं से देशभर के क्रांतिकारियों को हथियारों की सप्लाई होती थी. केशवराव हेडगेवार ने इस कार्य को भी बहुत सतर्कता के साथ निभाया. विशेषतया मध्य प्रांत में क्रांतिकारियों तक हथियारों को पहुंचाना केशवराव की मेहनत का ही प्रतिफल था. मध्य प्रांत के तत्कालीन सरकारी दस्तावेजों में भी स्वीकार किया गया है कि हेडगेवार ने नागपुर और बंगाल के क्रांतिकारियों के बीच तालमेल बनाने में एक बड़ी सफलता प्राप्त कर ली. अनुशीलन समिति द्वारा संचालित क्रांतिकारी क्रियाकलापों को सफलतापूर्वक अंजाम देने के कार्य के साथ केशवराव अन्य संस्थाओं द्वारा संचालित आंदोलनों और समाज सुधार के कार्यक्रमों में भी भाग लेते रहते थे. इन आंदोलनों तथा सेवा-प्रकल्पों में भाग लेने के उनके दो उद्देश्य होते थे. प्रथम- देश की स्वतंत्रता के लिए हो रहे प्रत्येक प्रयास को बल प्रदान करना, द्वितीय- युवकों के साथ सम्बन्ध बनाकर उनको अपने साथ जोड़ लेना. परिणामस्वरूप क्रांतिकारी देशभक्तों की एक लम्बी श्रृंखला तैयार हो गई.
सरकारी गुप्तचर विभाग के अधिकारियों ने केशवराव हेडगेवार को एक सफल क्रांतिकारी बताते हुए इनके खिलाफ लम्बी-लम्बी रपटें सरकार के पास भेजीं, परन्तु इस अति सतर्क युवा राष्ट्रभक्त के क्रियाकलापों के ठोस सबूत जुटा पाने में गुप्तचर विभाग को कभी सफलता नहीं मिली. काम हो जाने के बाद ही काम का पता चलता था. लाख सर पटकने के बाद भी क्रांतिकारी गतिविधियों के स्थान, नेता, तौर तरीकों और मददगारों की जानकारी कुछ भी हाथ नहीं लगता था. अनेक गुणसम्पन्न केशवराव हेडगेवार ने कलकत्ता में रहते हुए तीन प्रमुख कार्य सफलतापूर्वक सम्पन्न कर लिए. डॉक्टरी का अपना अध्ययन, कक्षा के अध्यापकों द्वारा पढ़ाया गया पाठ अथवा प्रयोगशाला में करवाए गए प्रयोगों पर ही निर्भर रहते हुए वह प्रत्येक वर्ष प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होते रहे. कक्षा के बाहर आकर तो वह अपने वास्तविक उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही जुटे रहते थे. अनुशीलन समिति के एक प्रमुख सदस्य के नाते उन्हें जो काम दिया गया उसे उन्होंने पूरी ताकत के साथ सम्पन्न कर दिया. शस्त्रों की तैयारी, उनका वितरण, ऐक्शन की योजना और कार्यान्वयन, क्रांतिकारियों को गुप्त स्थान पर रखना और गुप्तचर विभाग की नजरों से भी बचा रहना आदि जोखिम भरे काम वह कक्षा के बाहर आकर करने लगे. इन्हीं दिनों गुप्तचर विभाग ने एक युवा को केशवराव की गतिविधियों का जायजा लेने के लिए नियुक्त किया. इसे केशवराव और उनके साथियों के साथ ही छात्रावास में रहने की व्यवस्था भी कर दी गई. केशवराव ने अपनी पैनी दृष्टि से इस गुप्तचर की हलचलों को पहचान लिया और एक दिन उसकी अनुपस्थिति में उसके बक्से में से सभी गुप्त कागज निकालकर उसकी पोलपट्टी खोली और अपने साथियों को सतर्क कर दिया. इस तरह केशवराव ने उस गुप्तचर की ही गुप्तचरी करनी शुरु कर दी.
अपने अध्ययन कार्य और अनुशीलन समिति के कामों के अतिरिक्त समाज सेवा के अन्य-अन्य कार्यों में भी वे सक्रियता से भाग लेते थे. सन् 1913 में दामोदर नदी में आई भयंकर बाढ़ ने बहुत तबाही मचाई थी. कई घर बाढ़ में नष्ट हो गए. लोगों के कारोबार चौपट हो गए. अनेक सामाजिक संस्थाएं लोगों को बाढ़ से निकालने तथा उन्हें सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने के काम करने लगी. रामकृष्ण मिशन के युवा सन्यासियों एवं भक्तों ने सबसे आगे रहकर सहायता कार्य को सम्भाला. केशवराव हेडगेवार ने अपने साथियों के साथ सेवा कार्य में हाथ बटाना शुरु किया. इन युवाओं ने अपने प्राणों को संकट में डालकर ऐसी जगह पर जाकर लोगों को सुरक्षित निकाला, जहां कोई जाने की हिम्मत भी नहीं करता था. केशवराव की टोली के सदस्य पानी और कीचड़ में मीलों चलकर दूरदराज के गांवों तक पहुंचकर खाद्य सामग्री का वितरण करते थे. भूखे, प्यासे और बिना सोये ये तरुण क्रांतिकारी दिनरात सेवा के कामों में जुटे रहे. इसी तरह कलकत्ता के निकटवर्ती एक शहर में हैजे की बीमारी फैलने पर केशवराव की टोली ने परिश्रमपूर्वक रोगियों की सेवा जैसा पवित्र कार्य भी किया.
केशवराव हेडगेवार ने कलकत्ता में सक्रिय सबसे बड़े क्रांतिकारी संगठन अनुशीलन समिति के भीतर रहकर इस संगठन के काम करने के ढंग और उद्देश्य को बहुत नजदीक से समझ लिया. विभिन्न समितियों/उप समितियों के माध्यम से काम का बंटवारा और काम को गुप्त रूप से सफल करने की विधि इत्यादि अनुभव केशव राव हेडगेवार के भावी जीवन की नींव के पत्थर साबित हुए. अनुशीलन समिति में रहकर क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने से केशवराव का देश के कई प्रांतों के युवाओं से सम्बन्ध आ गया. केशवराव की दृष्टि देश की स्वतंत्रता के लिए किसी भावी सशस्त्र आंदोलन पर टिकी रहती थी. कलकत्ता में पांच वर्ष रहकर डॉक्टर हेडगेवार ने अनुशलीन समिति के माध्यम से देश की धड़कती नब्ज को पहचाना. राष्ट्र-समर्पित विप्लवी जीवन का सम्पूर्ण प्रशिक्षण, भारत की सर्वांग स्वतंत्रता के लिए सर्वस्व अर्पण करने का संकल्प, संगठित राष्ट्रवादी शक्ति की जरूरत का आभास, समाजसेवा के अमिट संस्कार, अटल इच्छाशक्ति और डॉक्टरी की डिग्री लेकर 1915 में डॉक्टर केशवराव हेडगेवार नागपुर आ गए.
हालांकि यह सत्य है कि डॉक्टरी की डिग्री को छोड़कर शेष सभी संस्कार बीजरूप में उनके अंतर्मन में बालकाल से ही विराजमान थे, तो भी अखंड भारत की सर्वांग स्वतंत्रता के लिए एकमात्र अंतिम लक्ष्य पर आधारित अपने शेष जीवन की दिशा निर्धारित करने में कलकत्ता में 5 वर्ष का अनुभव अति महत्वपूर्ण रहा. इसलिए नागपुर वापस आने के बाद वे एक दिन भी चैन से नहीं सोए. देश को अंग्रेजों की गुलामी से छुड़ाने के लिए हो रहे तत्कालीन प्रयत्नों के सभी रास्ते उनके लिए खुले थे. डॉक्टर साहब किसी ऐसे सुदृढ़ रास्ते की तलाश में थे जो सीधे-सीधे ब्रिटिश साम्राज्यवाद की गर्दन तक पहुंचता हो.
…………………..शेष कल.
नरेंद्र सहगल