परम पूजनीय स्वामी महेश्वरानंद ने अपने उद्बोधन में कहा कि आज का दिन हमारे भारतीय संस्कृति के लिए गौरव का दिन है। सभी विदेशी संस्कृति भारतीय संस्कृति का केवल एक अंश है। संघ, शक्ति व शुर तीनों के कारण से हमारे देश का सिर ऊँचा है। उन्होंने कहा कि उन्हें अपनी भाषा में बोलने में आनन्द आता है हमें अपने बच्चों में मानवता व देश की गौरवशाली संस्कृति की शिक्षा देनी चाहिए क्योंकि हमारी संस्कृति वर्तमान समय में दुषित हो रही है और भारत के लोग गलत दिशा में जा रहे है। विश्व का सर्वश्रेष्ठ ज्ञान भारत में हीे है और मंच इस पुनित कार्याें को अपनी गतिविधियों द्वारा बढा रहा है।
सम्मेलन के स्वागताध्यक्ष पुरूषोतम हिसारिया ने अपने स्वागत उद्बोधन में कहा कि मंच अपने कार्यों द्वारा स्वदेशी संस्कृति व ज्ञान की गंगा बहा रही है। सुदुर क्षेत्रों से आए सभी कार्यकर्ता विषम परिस्थितियों में स्वदेश प्रेम, अपनी संस्कृति का रक्षण करते हुए लोगों को जगाने का कार्य कर रही है।
मंच के राजस्थान संयोजक भागीरथ चौधरी ने बताया कि इस राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान तीन दिनों तक सभी स्वदेशी कार्यकर्ता विभिन्न ज्वलंत विषयों पर चर्चा करेंगे तथा नैराबी व पैरीस सम्मेलन के दौरान लिए गए निर्णयांे पर गहन मंथन करेगें व केन्द्र और प्रदेश सरकार के सम्मुख अपने पक्ष का प्रस्ताव भेजेगें।
राष्ट्रीय सम्मेलन के द्वितीय सत्र में सतत विकास-समय की मांग विषयक प्रस्ताव पारित किया गया। ग्लोबल वार्मिगं और जलवायु परिवर्तन हर बीतते वर्ष के साथ बहुत तेजी से क्रूर एवं नुकसानदेह होता जा रहा है। WMO ने अभी हाल ही में ही कहा है कि सन 2015 अभिलेखों के अनुसार अभी तक का सबसे गर्म वर्ष था। यदि हम गत 150 वर्षों के सबसे गर्म 15 वर्षों की सूची बनाएं तो वे समस्त 15 वर्ष सन 2000 के बाद अर्थात 21वीं शताब्दी के ही वर्ष होगें। यह तथ्य 21वीं शताब्दी में ग्लोबल वार्मिगं की समस्या की गंभीरता को दर्षाता है। भूमंडल के बढ़ते हुए तापमान से गंभीर मौसमी आपदाएं जैसे कि कुछ सीमित क्षेत्रों में तेज और भारी वर्षा, जैसाकि नवम्बर एवं दिसम्बर माह में चैन्नई और इसके आस पास के इलाके में देखी गयी एवं देष के बाकी हिस्सों में गंभीर सूखे की समस्या के प्रकोप में लगातार वृद्धि के आसार दिखायी दे रहे हैं। चैन्नई में आई बाढ़ ने प्रकृति के रोष के समक्ष मानव की लाचारी एवं मानवीय संस्थाओं की असफलता को हमें दृष्टिगत कराया है। अगर साल दर साल, इसी प्रकार से अनेक नगर एक साथ प्राकृतिक आपदा के कारण मुष्किल में आते हैं, तब कौन किसकी सहायता कर पायेगा?
सम्पूर्ण विश्व अपनी ही गल्तियों का स्वंय ही शिकार बन चुका है। अस्थायी विकास का माॅडल जोकि पश्चिमी देशों में सन 1850 से प्रारम्भ हुआ और जिसका विश्व के सभी देशों ने बिना सोचे समझे अनुसरण किया, यही इस वैष्विक जलवायु संकट का प्रमुख कारण है। विकास का पष्चिमी माॅडल टिकाऊ नहीं है क्यूंकि 160 वर्षों के छोटे से कालखंड में ही, सन 1850 जबसे यह प्रारम्भ हुआ, सम्पूर्ण विष्व को इस विनाश के कगार बिन्दु पर ले आया है। आज के वैश्विक तापमान में औद्यौगिक क्रान्ति से पूर्व के वैश्विक तापमान से मात्र 1° की वृद्धि ही हुई है। जलवायु स्थिति हमारे नियन्त्रण से बाहर होती है, जैसाकि केवल 1°ब् पर हुआ है, तो भविष्य में वैश्विक तापमान में यदि 2° या अधिक की वृद्धि होती है, तो क्या होगा?
विकास का पश्चिमी माॅडल उसी प्रकार के लचर असीमित उपभोग के माॅडल पर आधारित है और इस पर ही मजबूती से निर्भर करता है। यह लालच और अदूरदर्षिता है। WWF के द्वारा तैयार की गई लिविगं प्लेनेट रिपोर्ट – 2014 का स्पष्ट कहना है कि सन 1970 से विश्व के जंगली जानवरों की आधे से अधिक संख्या उनका अधिक और अवैद्य शिकार किए जाने, उनकी मारे जाने और उनके रहने के स्थान में आए संकुचन के चलते कम हुई है। उसका आगे कहना है कि यदि सम्पूर्ण विश्व अमेरिका की भांति संसाधनों के अत्यधिक उपभोग के स्तर को बनाऐ रखता है तो हमें संसाधनों की आपूर्ति के लिए चार और पृथ्वियों की आवश्यकता पड़ेगी। इससे सिर्फ पश्चिमी जीवन शैली का खोखलापन सिद्ध होता है।
स्वदेशी विकास की अवधारणा भविष्य में आने वाली पीढि़यों की भी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए औचित्यपूर्ण उपभोग की वकालत होती है। आज समय की मांग है कि न केवल भारत अपितु पूरे विश्व को विनाश से बचाने के लिए सहस्राब्दी से प्रमाणित एवं सफलतापूर्वक संचालित स्वदेशी की विकास की अवधारणा और जीवन शैली को अपनाया जाए।
मांग
1. टिकाऊ विकास का भारतीय माॅडल एवं जीवन शैली से संबंधित विभिन्न आयामों पर विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों के द्वारा व्यापक एवं स्तरीय शोध कार्य को प्रोत्साहन दें।
2. विशेषकर विश्वविद्यालद्यों एवं विषय पर स्वयंभू तज्ञयों के बीच शोध के परिणामों को व्यापक रूप से प्रचारित और प्रसारित करें।
3. शोध के परिणामों के आलोक में सरकार की विकास प्राथमिकता निश्चित हो।
4. COP 21 को भारत सरकार द्वारा सौंपी गई INDC के अनुरूप अक्षुण ऊर्जा स्रोतों को प्राथमिकता दी जाए।
5. जैविक खेती एवं पशुपालन को प्रचारित एवं प्रसारित करने हेतु योग्य कदम उढाया जाए।
6. वृक्षारोपण, विशेषकर स्वदेशी किस्म के फलदार वृक्षों का व्यापक आंदोलन चलाया जाए, ताकि वन जीव-जंतुओं को पर्याप्त मात्रा में भोजन उपलब्ध रहे।
स्वदेशी जागरण मंच देश की जनता से भी विशेषकर स्वदेशी कार्यकर्ताओं से अनुरोध करता है कि वे प्रकृति के प्रति संवेदनशील उद्यमता एवं जीवन शैली को अपनाए।