विसंके जयपुर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि देश में भाषा, प्रान्त, पंथ-संप्रदाय, समूहों की स्थानीय तथा समूहगत महत्वाकांक्षाओं को हवा देकर समाज में राष्ट्र विरोधी शक्तियाँ अराजकता निर्माण करने का प्रयास कर रही हैं, समाज को संगठित और सक्रिय होकर इस संकट का सामना करना होगा। तब ही इस समस्या से सफलतापूर्वक निपटा जा सकेगा। सरसंघचालक जी विजयादशमी उत्सव में संबोधित कर रहे थे। रेशीमबाग मैदान में आयोजित कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री गुरु रविदास साधुसंत सोसायटी जालंधर के प्रधान बाबा निर्मलदास का स्वास्थ बिगड़ने के कारण चिकित्सक ने उन्हें यात्रा करने की अनुमति नहीं दी, इसलिए वे दिल्ली में ही रुक गये। उन्होंने कार्यक्रम के लिये अपना संदेश भेजा।
सरसंघचालक जी ने कहा कि पिछले कुछ दिनों से बंगाल और केरल में वहां का प्रशासन इस स्थिति से निर्माण हुए गंभीर राष्ट्रीय संकट के प्रति न केवल उदासीन है, बल्कि अपने संकुचित राजनीतिक स्वार्थ के लिए अराजकता निर्माण करने वाली राष्ट्रविरोधी शक्तियों की सहायता कर रहा है। देश में पहले ही बांग्लादेशी घुसपैठियों के कारण समस्या निर्माण हुई है। अब म्यांमार से खदेड़े गए रोहिंगिया भी आये है और हजारों आने की तैयारी में हैं। इनकी म्यांमार में अलगाववादी, हिंसक और अपराधी गतिविधियों में लिप्त गुटों से साँठगाँठ थी, इस कारण उन्हें वहाँ से खदेड़ा गया है। वे यहाँ आकर देश की सुरक्षा और एकता पर संकट बनेंगे, यह ध्यान में रखकर ही उनके बारे में निर्णय लेना चाहिए।
आर्थिक स्थिति पर डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि जनधन योजना, मुद्रा, गैस सब्सिडी, कृषि बीमा यह लोक कल्याणकारी और साहसी योजनाएं हैं। लेकिन अभी भी एकात्म व समग्र दृष्टि से देश की विविधताओं और आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर उद्योग, व्यापार, कृषि, पर्यावरण के अनुकूल तथा देश के बड़े-मध्यम-छोटे उद्योगों, खुदरा व्यापारियों, कृषकों और खेतिहर मजदूरों – इन सबके हितों को ध्यान में रखने वाली समन्वित नीति की आवश्यकता है। साथ ही स्वदेशी पर भी बल देना होगा। हमारी अर्थव्यवस्था में लघु, मध्यम, कुटीर उद्योग, खुदरा व्यापार, सहकार, कृषि और कृषि आधारित उद्योगों का भी बहुत महत्व है। विश्व व्यापार में होने वाले उतार – चढ़ाव तथा आर्थिक गिरावट के समय इन उद्योगों ने हमारी अर्थव्यवस्था टिकाए रखने में बड़ी भूमिका निभाई है। महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराया है।
उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था के सुधार और स्वच्छता के उपायों में सर्वत्र थोड़ी – बहुत उथलपुथल, अस्थिरता तो अपेक्षित है, लेकिन इसके परिणाम न्यूनतम हों और दीर्घकाल में इससे आर्थिक व्यवस्था को बल मिले, इस बात का ध्यान रखना होगा। हमारे देश में कृषि का क्षेत्र बहुत बड़ा है। लेकिन आज किसान दु:खी है, बाढ़, अकाल, आयात-निर्यात नीति, फसल अच्छी हुई तो भाव गिरना और कर्ज से वह परेशान है, निराश होने लगा है।किसानों की कर्ज माफी जैसे कदम शासन की संवेदना और सद्भावना के परिचायक हैं, किंतु इस समस्या का स्थायी उपाय नहीं। किसानों को उनके उत्पादन का लाभप्रद मूल्य मिलने के लिए समर्थन मूल्य पर कृषि उत्पादन खरीदने की व्यवस्था करनी होगी। अन्न, जल, जमीन को विषाक्त बनाने वाली, किसानों का खर्च बढ़ाने वाली रासायनिक खेती धीरे-धीरे बंद करनी होगी।
सरसंघचालक जी ने गौरक्षा पर कहा कि ऐसे बहुचर्चित हिंसा और अत्याचार के मामलों में पाया गया है कि आरोपित कार्यकर्ता निर्दोष थे। पिछले कुछ दिनों में तो अहिंसक रीति से गौरक्षा करने वाले गौरक्षकों की ही हत्या हुई है. लेकिन इसकी न कोई चर्चा हुई और न इस पर कोई कार्रवाई। वस्तुस्थिति न जानते हुए या उसकी अनदेखी कर गौरक्षा और गौरक्षकों को हिंसक घटनाओं के साथ जोड़ना तथा सांप्रदायिक दृष्टि से इस पर प्रश्नचिन्ह लगाना उचित नहीं है। अनेक मुस्लिम भी गौरक्षा, गौपालन और गौशालाओं का बहुत अच्छा संचालन करते हैं, यह भी ध्यान में रखना होगा। गौरक्षा के विरोध में होने वाला कुत्सित प्रचार अकारण ही विभिन्न समुदायों में तनाव निर्माण करता है।
उन्होंने कहा कि विदेशी शासकों द्वारा शिक्षा व्यवस्था की रचना, पाठ्यक्रम और संचालन में लाए गए अनिष्टकारी परिवर्तन बदलने होंगे। नई शिक्षा नीति देश के सुदूर वनों, ग्रामों में बसने वाले बालकों और युवकों को भी शिक्षा का अवसर प्रदान करने वाली सस्ती और सुलभ होनी चाहिए।
बाबाजी का संदेश संघचालक श्रीधर गाडगे जी ने पढ़ा –
उन्होंने लिखा कि देश में सब लोग मिलजुलकर रहें। सब को रोटी, कपड़ा, मकान और आरोग्य की मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध हों, यह आदर्श राज्य की कल्पना है। भारत में यह स्थिति यथाशीघ्र निर्माण हो, यह अपेक्षा है. देश उस दिशा में प्रगति कर रहा है, यह संतोष की बात है।
कार्यक्रम में गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे:-