एक युग की समाप्ति

इक्कीसवीं सदी में जिनधर्म के मूर्तिमान स्वरूप, जिनवाणी के अनन्य साधक, अनेकांत एवं स्याद्वाद के दिव्य प्रवर्तक, जैन आदर्शों को अपनी चर्या से प्रतिपादित करने वाले युग दृष्टा, संत शिरोमणि आचार्य प्रवर श्री विद्यासागर जी महामुनिराज 17 फरवरी, 2024 शनिवार तदनुसार माघ शुक्ल अष्टमी पर्वराज के अंतर्गत उत्तम सत्य धर्म के दिन रात्रि में 2:35 बजे ब्रह्म में लीन हो गए.

“इंडिया नहीं भारत कहिये” का राष्ट्रघोष करने वाले राष्ट्रसंत, राष्ट्रवाद के प्रखर प्रणेता परम पूज्य गुरुदेव ने विधिवत सल्लेखना सम्यक भाव से धारण कर ली थी एवं पूर्ण जागृतावस्था में आचार्य पद का त्याग करते हुए तीन दिवस के उपवास गृहण करते हुए आहार एवं संघ का प्रत्याख्यान कर दिया था और अखंड मौन धारण कर लिया था. 6 फरवरी मंगलवार को दोपहर शौच से लौटने के उपरांत साथ के मुनिराजों को अलग भेज कर निर्यापक श्रमण मुनिश्री योग सागर जी से चर्चा करते हुए संघ संबंधी कार्यों से निवृत्ति ली और आचार्य पद का त्याग करते हुए प्रथम मुनि शिष्य निर्यापक श्रमण मुनि श्री समयसागर जी महाराज को आचार्य पद सौंपने की घोषणा कर दी.

परमपूज्य गुरूदेव ने पूरी जागृत अवस्था में अंत समय तक प्रभु स्मरण के साथ उपस्थित निर्यापक श्रमण मुनि श्री योगसागर जी, निर्यापक श्रमण मुनि श्री समतासागर जी, निर्यापक श्रमण मुनि श्री प्रसादसागर जी, मुनिश्री चन्द्रप्रभसागर जी, मुनिश्रीपूज्यसागर जी, मुनि श्री निरामयसागर जी, मुनिश्री निस्सीमसागर जी, ऐलक श्री निश्चयसागर जी, ऐलक श्री धैर्यसागर जी की उपस्थिति और संबोधन के दौरान नश्वर देह का चन्द्रगिरि तीर्थ पर त्याग कर दिया.

गुरुवरश्री जी का डोला चंद्रगिरी तीर्थ डोंगरगढ में दोपहर 1 बजे से निकाला जाएगा एवं चन्द्रगिरि तीर्थ पर ही पंचतत्व में विलीन किया जाएगा.

ऐसे युगपुरुष के चरणों में विनम्र प्रणाम !

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