गीता जयंती विशेष
— गीता श्लोक पथ प्रदर्शक के रूप में प्रासंगिक
— एक सार्वभौम धर्मग्रन्थ हैं ‘गीता’
जयपुर।
गीता के महत्व को समझने से पहले ‘गीता’ अर्थ को समझना बहुत जरूरी हैं। विशेषतौर पर आज के युवाओं में इसके कथन, अर्थ और जीवन के परिप्रेक्ष्य में इसके उपयोग की जानकारी का होना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि आज की पीढ़ी बहुत ‘प्रेक्टिकल’ हो रही हैं ऐसे में गीता के संदर्भ उनके जीवन को सही दिशा देकर उनकी दशा बदलने की पूरी ताकत रखते हैं। इसी बात को भगवद् गीता के दूसरे अध्याय के 47वें श्लोक में बड़े ही सुंदर ढंग से कृष्ण ने समझाया है,
”कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥”
इसका सीधा अर्थ ये है कि, केवल कर्म पर ही मानव का अधिकार है उसके फलों पर नहीं। ऐसे में वही व्यक्ति अपने जीवन में सफलता हासिल कर सकता है जो बिना फल की चिंता किए बस कर्म करता रहे। आज दिशाविहिन युवाओं के लिए ये श्लोक एक जीवन पथ प्रदर्शक के रूप में प्रासंगिक हैं।
यदि पूरे विश्व के ग्रंथों को खंगाला जाए, उन्हें पढ़ा जाए तब गहन विद्वानों के तथ्य स्पष्ट रूप से इस बात को स्वीकारते हैं कि गीता ही एकमात्र ऐसा ग्रंथ है, जिसकी हर साल जयंती मनाई जाती है। इसकी वजह हैं गीता के उपदेश, जिनका अनुसरण करने मात्र से ही सभी कठिनाइयों और शंकाओं का निवारण हो जाता है। गीता में श्रीकृष्ण द्वारा बताए गए उपदेशों पर चलने से व्यक्ति को कठिन से कठिन परिस्थितियों में सही निर्णय लेने की क्षमता का विकास होता है। गीता के उपदेश में जीवन को जीने की कला, प्रबंधन और कर्म सब कुछ है। गीता आज भी प्रासंगिक हैं।
जहां तक जयंती मनाए जाने की बात हैं तब मार्गशीर्ष महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन गीता जयंती मनाई जाती है। मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। तब ये माना जाता है कि, गीता ग्रंथ का जन्म भगवान श्रीकृष्ण के मुख से हुआ है इसलिए इसके जन्म प्रतीक के रूप में इसे मनाया जाता है।
जीवन जीने का ढंग सीखाती ‘गीता’—
हिन्दू धर्म का पवित्र ग्रंथ भगवद्गीता भारत के महान महाकाव्य महाभारत का एक छोटा अंग है। महाभारत प्राचीन भारत के इतिहास की एक गाथा है जिसमें मानव जीवन के महत्वपूर्ण पक्षों को विस्तार के साथ वर्णन किया गया है। महाभारत विश्व के महाकाव्य ग्रंथ इलियड और ओडिसी संयुक्त से सात गुना बड़ा है। इसमें करीब एक लाख से अधिक श्लोक है। भगवद गीता हिंदू धर्म की सबसे लोकप्रिय पुस्तकों में से एक है, जो विश्व भर के लाखों लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत है। मूलतः संस्कृत भाषा में लिखी गई गीता में 700 श्लोक हैं। कुरुक्षेत्र की रणभूमि में अर्जुन के सारथी बने भगवान श्रीकृष्ण के बीच हुआ संवाद ही श्रीमद्भगवद्गीता है। जो आज भी लोगों को सही-गलत में फर्क समझने एवं जीवन जीने का ढंग सीखाती है।
धर्म का खंडन नहीं—
गीता एक सार्वभौम धर्मग्रन्थ है। सभी धर्म सम्प्रदाय और मत-मतान्तर के लोग इसका आदर करते हैं, क्योंकि इसमें किसी के धर्म का खंडन नहीं है। इसलिए प्रायः सभी प्रमुख सम्प्रदायों की इस पर टीकाएँ मिलती हैं। श्रीकृष्ण का कहना है कि “स्वधर्मे निधनं श्रेय: परधर्मो भयावह:”। भगवद्गीता की यह दृष्टि कन्वर्जन का निषेध करती है।
अस्सी भाषाओं में उपलब्ध ‘गीता’—
दुनिया की महान विभूतियों द्वारा प्रायः गीता का उल्लेख किया जाता है। कई महान हस्तियों का मानना है कि गीता के माध्यम से उन्हें अपने जीवन में मार्गदर्शन मिलता है। भगवद गीता ने अनगिनत लोगों को प्रेरणा दी है और उनके जीवन को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसी प्रेरणा का परिणाम है कि भगवद गीता को 80 भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है।
सीमा पार भी गीता की गुंज—
21वीं सदी में गीता सिर्फ एक धर्म ग्रंथ के रूप में ही नहीं देखी जाती है, बल्कि वह कई मंचों पर दर्शनशास्त्र और उच्च प्रबंधन का हिस्सा बन गई है। भगवद गीता की लोकप्रियता का परिणाम है कि वह भारत की सीमाओं से परे अपनी लोकप्रियता के झंडे गाड़ चुकी है, वह विश्व के सभी प्रमुख देशों में लोकप्रिय है।
‘गीता’ ने दिया सुनीता विलियम्स को सबक—
भारतीय मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष वैज्ञानिक और नौसेना अधिकारी सुनीता विलियम्स भी जब अंतरिक्ष मिशन के लिए जा रही थीं, तो उस वक्त अपने साथ भगवान गणेश की मूर्ति और भगवद् गीता लेकर गईं थी। उस वक्त उनसे जब यह पूछा गया था कि वह अंतरिक्ष में गीता और भगवान गणेश की मूर्ति क्यों लेकर गई थीं? उन्होंने जवाब दिया था, ”ये आध्यात्मिक चीजें हैं जो अपने आप को, जीवन को, आस-पास की दुनिया को प्रतिबिंबित करने और चीजों को दूसरे तरीके से देखने के लिए हैं। मुझे लगा कि ऐसे समय में यह काफी उपयुक्त है।”
उन्होंने कहा कि गीता के जरिए उन चीजों को समझने में मदद मिली है जो वह कर रही हैं। इसके अलावा मुझे अपने आपको जमीन से जुड़े रहने का भी सबक मिला है।
सच्चे कर्तव्य का पालन सीखाती है गीता—
“गीता रहस्य” में बाल गंगाधर तिलक लिखते हैं, गीता का संदेश उन लोगों के लिए मनोरंजन के रूप में नहीं किया गया था जो स्वार्थी उद्देश्यों की खोज में सांसारिक जीवन जीने के बाद थक गए हों और न ही ऐसे सांसारिक जीवन जीने के लिए एक प्रारंभिक पाठ के रूप में, बल्कि किसी को अपना सांसारिक जीवन कैसे जीना चाहिए जिससे वो मुक्त हो सके और सांसारिक जीवन में मनुष्य के रूप में अपने सच्चे कर्तव्य का पालन कर सके। इसका उपयोग दार्शनिक सलाह के रूप में था।
कठिन परिश्रम के लिए गीता से प्रेरित हुए आइंसटीन—
सापेक्षता का सिद्धांत प्रतिपादित करने वाले जर्मनी में जन्मे भौतिक विज्ञानी अल्बर्ट आइंसटीन भगवद् गीता के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण द्वारा दिए गए उपदेशों से प्रभावित थे। उन्होंने कहा कि “जब मैंने भगवद् गीता को पढ़ा तो मुझे पता चला कि ईश्वर ने कैसे दुनिया को बनाया है और मुझे यह अनुभव हुआ कि प्रकृति ने हर वस्तु कितनी प्रचुरता में प्रदान की है। गीता ने मुझे कठिन परिश्रम करने के लिए प्रेरित किया है।”
ये स्पष्ट रूप से समझने वाली बात है कि, गीता के उपदेश में जीवन जीने, धर्म का अनुसरण करने और कर्म के महत्व को समझाया गया है।