भगवा आतंकवाद जैसे शब्द मूलतः कांग्रेस की देन है। इन शब्दों का प्रयोग सर्वप्रथम 2002 में फ्रंटलाइन पत्रिका में छपे एक लेख में किया गया था। 29 सिम्बर 2008 में मालेगॉंव में हुए बम विस्फोट के बाद कांगे्रसी नेताओं जैसे दि ग्विजय सिंह, पी. चिदम्बरम, सुशील कुमार शिंदे ने इसका बार-बार प्रयोग किया। मीडिया ने भी कांग्रेसी एजेंडा को बढ़ावा देते हुए इसे खूब उछाला।
क्या आपको भी लगता है उपर्युक्त शीर्षक में कुछ सच्चाई है। यदि आप कांग्रेस एवं कांग्रेस समर्थित पार्टियों और बिकाऊ मीडिया की नज़रों से देखेंगे तो आपको लगेगा ही और यदि आप समाज एवं देश—प्रेम से जुड़कर अपनी नज़रों से आरएसएस के कार्यों को देखेंगे तो आपका उत्तर होगा ना। ऐसा सोचने के लिए आपको आरएसएस की विचारधारा को समझना होगा। कांग्रेस ने आरम्भ से ही वोट बैंक की राजनीति की फिर चाहे वह हिन्दू समाज को बांटकर कमजोर करना हो या मुस्लिम समुदाय का राजनीतिक तुष्टीकरण हो। आरएसएस की विचारधारा सामाजिक समरसता की रही है। आरएसएस किसी भी पंथ का विरोध नहीं करता पर सनातन धर्म का समर्थन करता है। हिन्दुओं की एकता का समर्थन करता है।
मुस्लिम एक हो सकते हैं, ईसाई एक हो सकते है, फिर हिन्दुओं की एकता सांप्रदायिक कैसे हो सकती है?
आरएसएस कभी किसी को मारने या हिंसा की बात नहीं करता। आरएसएस की ओर से आज तक कोई प्लेन हाईजैक नहीं किया। नकाब पहन कर खुले आम किसी का गला नहीं रेता। निर्दोषों के हाथ पीछे से बांधकर उन्हें गोलियों से नहीं भूना। जैसा कि विभिन्न इस्लामिक संगठन आए दिन करते हैं फिर भी आरएसएस आतंकवादी संगठन कैसे हो गया।
यहां आरएसएस अपने स्वयंसेवकों को पहला पाठ ही निस्वार्थ देश सेवा का सिखाया जाता है। देश प्रेम इतना कि प्रत्येक स्वयंसेवक की नज़र में भारत माता ही सर्वोपरि है। जब भी देश में कोई प्राकृतिक आपदा आती है या कोई सार्वजनिक दुघर्टना से त्रासदी होती है, तो आप वहां पर स्वयंसेवकों को दिन-रात सेवा कार्य करते हुए देख सकते हैं। उस समय कोई स्वयंसेवक यह नहीं देखता कि पीड़ित किस देश, धर्म या समुदाय का है, वह सिर्फ वहां पर मानवता के धर्म से उसकी सेवा कर रहा होता है।
इस संगठन से जुड़े अधिकतर लोग व्यवसायी/नौकरीपेशा या कामकाजी हैं, जो अपने व्यक्तिगत, पारिवारिक कर्तव्यों का निवार्ह करते हुए देश सेवा में किसी न किसी तरह से अपना योगदान दे रहे है। आप समग्रता से देखेंगे तो अस्पतालों में मरीजों की निस्वार्थ सेवा के साथ ही जरूरत पडनें पर खून देते हुए, उनके परिजनों की सहायता करते हुए , सुबह-सुबह सड़कों, बगीचों की सफाई करते हुए, पौधे लगा कर उनकी देखभाल करते हुए
और कचरा उठाते हुए स्वयं सेवक आपको दिख जाएंगे। इनकी क्या मजबूरी है? इनका क्या लालच है? क्या इन्हें इस काम के लिए कोई पैसा मिलता है। नहीं !! यह तो इनके शहर और देश से लगाव की भावना है।
मिडिया कभी आपको यह सब नहीं दिखायेगा क्योंकि ऐसा करने से उसने आरएसएस की जो सांप्रदायिक छवि बनाई है वह धूमिल होती है। कांग्रेस का वोट बैंक कमज़ोर होता है। दोस्तों समय है सही और गलत की पहचान करने का। अपने विवेकशीलता का परिचय देने का। यह देश हमारा है। हम इस देश के हैं।
—डा. शुचि चौहान, जयपुर, राजस्थान
Sangh shakti kaloyug